(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य; शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष।) |
संदर्भ
भारत में बढ़ते न्यायिक लंबित मामलों को समाप्त करने और तेज़ व लागत-प्रभावी न्याय प्रदान करने के लिए सरकार ने मध्यस्थता, पंचनिर्णय और लोक अदालतों जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (ए.डी.आर.) तंत्रों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
ए.डी.आर. की अवधारणा
- यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें विवादित पक्षों को औपचारिक न्यायालय प्रणालियों के बाहर अपने विवादों को सुलझाने की सुविधा मिलती है। इसमें मध्यस्थता, सुलह, बातचीत और लोक अदालतें शामिल हैं।
- ए.डी.आर. का संवैधानिक आधार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(ए) में निहित है, जो राज्य को न्याय तक समान पहुँच और मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने का अधिकार देता है।
- एडीआर के लिए वैधानिक समर्थन सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी), 1908 की धारा 89 में मिलता है, जो अदालतों को विवादों को मध्यस्थता या लोक अदालतों के माध्यम से निपटाने का अधिकार देती है।
- मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (2021 में संशोधित) ने ए.डी.आर. को एक कानूनी ढांचा प्रदान किया, जिससे दीवानी और समझौता योग्य अपराधों को अधिकतम 180 दिनों में बाध्यकारी पंचाटों द्वारा सुलझाया जा सकता है।
- वर्ष 2021 के संशोधन के तहत भारतीय मध्यस्थता परिषद का गठन किया गया, जो प्रक्रियाओं का मानकीकरण और संस्थागत मध्यस्थता की गुणवत्ता को बढ़ाती है।
लोक अदालतों के बारे में
- भारत में सबसे प्रभावी ए.डी.आर. तंत्रों में से एक लोक अदालत है, जिसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत स्थापित किया गया था।
- लोक अदालतें विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए निःशुल्क, अनौपचारिक और त्वरित समाधान प्रदान करती हैं।
- पहली लोक अदालत वर्ष 1999 में गुजरात में आयोजित की गई थी, और तब से इसकी पहुँच और दक्षता का विस्तार हुआ है, जिसमें स्थायी लोक अदालत, राष्ट्रीय लोक अदालत और ई-लोक अदालत जैसे रूप शामिल हैं।
- लोक अदालतों का निर्णय अंतिम होता है, और इसके खिलाफ अपील की कोई व्यवस्था नहीं होती।
- हालांकि, असंतुष्ट पक्ष को नियमित अदालतों में जाने का अधिकार है, जिससे मनमानी पर रोक लगती है।
- ये मंच मुकदमेबाजी से पहले विवादों का निपटारा करने में मदद करते हैं, जिससे नियमित अदालतों में मामलों का प्रवाह रुकता है और न्यायिक कार्यभार कम होता है।
मध्यस्थता : सामाजिक परिवर्तन का साधन
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के अनुसार, मध्यस्थता केवल एक कानूनी साधन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का एक मंच है। यह सामाजिक मानदंडों को संवैधानिक मूल्यों के साथ जोड़ते हुए, विवादों को मुकदमेबाजी के बजाय आपसी समझ से हल करने में मदद करता है।
- मध्यस्थता का प्रमुख लाभ इसकी लचीलापन और पारस्परिक दृष्टिकोण में निहित है।
- यह पक्षों को सीधे संवाद करने, संबंध बनाए रखने और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधानों तक पहुँचने की अनुमति देती है।
- मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के तहत मुकदमे-पूर्व मध्यस्थता को अनिवार्य बनाकर, एडीआर की पहुँच को और बढ़ाया गया है।
- यह कदम दीवानी और वाणिज्यिक विवादों को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जो लंबित मामलों को कम करने और सामुदायिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
भारत में न्यायिक लंबित मामलों की स्थिति
- भारत न्याय रिपोर्ट (2024) भारत के न्यायिक लंबित मामलों की स्थिति को चिंताजनक रूप में प्रस्तुत करती है।
- 5 करोड़ से अधिक लंबित मामलों के साथ अदालतें भारी दबाव का सामना कर रही हैं, खासकर जिला स्तर पर जहाँ रिक्तियों की दर 20% से अधिक है।
- उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 33% पद रिक्त हैं, और उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों में लंबित मामलों की संख्या सबसे अधिक है।
- उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और केरल जैसे राज्यों में एक न्यायाधीश 4,000 से अधिक मामलों का कार्यभार संभालते हैं, जिससे समय पर निपटान कठिन हो जाता है।
- कई उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों में मामलों का लंबित रहना 10 वर्षों से अधिक हो चुका है।
- यह संरचनात्मक असंतुलन औपचारिक न्यायालय प्रणाली से विवादों को हटाने के लिए मजबूत ए.डी.आर. तंत्र की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- इस बढ़ती लंबितता ने न्याय की पहुँच, समयबद्धता और दक्षता को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न की हैं।
- इसके समाधान के रूप में, सरकार ने मध्यस्थता, सुलह और लोक अदालतों जैसे ए.डी.आर. तंत्रों को प्रभावी बनाने पर जोर दिया है।
- हाल ही में केंद्रीय विधि मंत्रालय ने पंच परमेश्वर के सिद्धांत से प्रेरणा लेते हुए, भारत के सभ्यतागत लोकाचार में निहित कानूनी सुधारों पर सरकार के फोकस को पुनः रेखांकित किया है। यह सिद्धांत सामूहिक सहमति से विवाद समाधान का प्रतीक है।
ए.डी.आर. को मज़बूत करने का महत्व
- ए.डी.आर. को मज़बूत करने से भारत की न्याय प्रणाली को तीन प्रमुख लाभ मिलते हैं:
- लंबित मामलों और देरी में कमी: ए.डी.आर. दीवानी और वाणिज्यिक विवादों को अदालतों से बाहर लेकर जाती है, जिससे न्यायाधीश जटिल मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
- पहुँच और समावेशिता को बढ़ावा: लोक अदालतें और सामुदायिक मध्यस्थता जैसे तंत्र न्याय को नागरिकों के और करीब लाते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिए के इलाकों में।
- वैश्विक विश्वास बढ़ाना: कुशल ए.डी.आर. ढाँचों द्वारा वाणिज्यिक विवादों का त्वरित समाधान भारत को एक निवेशक-अनुकूल गंतव्य के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे वैश्विक स्तर पर विश्वास बढ़ता है।