(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य; शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष) |
संदर्भ
देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था के रूप में सर्वोच्च न्यायालय का दायित्व नागरिकों को समयबद्ध न्याय प्रदान करना है किंतु हाल के वर्षों में न्यायालय में लंबित मामलों (Pendency) की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई है। यह समस्या न केवल न्याय व्यवस्था की गति पर प्रश्नचिह्न लगाती है बल्कि नागरिकों के न्याय पाने के अधिकार को भी प्रभावित करती है।
सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामले
- राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (NJDG) के अनुसार, सितंबर 2025 तक सर्वोच्च न्यायालय में कुल 88,417 मामले लंबित हैं।
- इनमें 69,553 दीवानी (Civil) और 18,864 आपराधिक (Criminal) मामले शामिल हैं। यह अब तक का सर्वाधिक स्तर है।
महत्त्वपूर्ण आँकड़े
- अगस्त 2025 में ही 7,080 नए मामले दायर किए गए, जबकि 5,667 मामले निपटाए जा सके। इसका अर्थ है कि निपटान दर केवल 80.04% रही है।
- वर्ष 2025 में अब तक 52,630 मामले दायर किए गए हैं, जिनमें से 46,309 (88%) का निपटान किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय वर्तमान में अपनी अधिकतम 34 न्यायधीशों की स्वीकृत शक्ति के साथ काम कर रहा है।
विलंबन के कारण
- मामलों की बढ़ती संख्या : प्रतिवर्ष नए मामलों की फाइलिंग निपटाए गए मामलों से अधिक है।
- जटिल व दीर्घकालिक मुकदमे : कई मामले तकनीकी एवं संवैधानिक मुद्दों से जुड़े होते हैं, जिनमें समय अधिक लगता है।
- सरकारी अपीलों की अधिकता : सरकारी विभागों द्वारा अत्यधिक अपील करने से बोझ बढ़ता है।
- प्रक्रियात्मक देरी : केस ट्रांसफर, दस्तावेजी औपचारिकताएँ और सुनवाई की तारीखों में अंतराल होता है।
- जनसंख्या व आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि : समाजिक-आर्थिक विवादों में वृद्धि के कारण न्यायालय पर दबाव बढ़ा है।
प्रभाव
- ‘न्याय में देरी, न्याय से वंचित होना’ है (Justice Delayed is Justice Denied)
- आम नागरिकों का न्यायपालिका पर भरोसा कमजोर हो सकता है।
- व्यापारिक एवं आर्थिक विवादों के समाधान में देरी से निवेश माहौल प्रभावित होता है।
- कैदियों के लिए लंबित आपराधिक मामलों का मतलब है कि वे लंबे समय तक जेल में रह सकते हैं, भले ही वे निर्दोष हों।
- न्यायधीशों एवं कर्मचारियों पर कार्यभार बढ़ता है जिससे गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
चुनौतियाँ
- मामलों का अत्यधिक बोझ : नियमित निपटान दर के बावजूद बैकलॉग कम नहीं हो पा रहा है।
- न्यायमूर्तियों सीमित की संख्या : 34 न्यायमूर्तियों की तुलना की अपेक्षा मामले अत्यधिक हैं।
- तकनीकी अवसंरचना की कमी : ई-कोर्ट एवं डिजिटलीकरण की प्रक्रिया अभी पूर्ण रूप से लागू नहीं हुई।
- वकीलों की बार-बार स्थगन मांग : यह सुनवाई में होने वाली देरी का प्रमुख कारण है जिससे मामलों के निपटान में विलंब होता है।
- नीतिगत बदलाव की धीमी गति : वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) को पर्याप्त बढ़ावा नहीं दिया गया है।
क्या किया जाना चाहिए
- न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि : संविधान के तहत अधिक न्यायमूर्ति नियुक्त करने पर विचार करना
- तकनीक का उपयोग : ई-कोर्ट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित मामला प्रबंधन व्यवस्था लागू करना
- फास्ट-ट्रैक बेंच : संवैधानिक एवं तात्कालिक मामलों के लिए अलग बेंच
- वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) को बढ़ावा : मध्यस्थता, सुलह एवं पंचाट को प्रोत्साहन
- सरकारी मुकदमेबाजी कम करना : अनावश्यक अपीलें कम करने के लिए सरकार को ‘फिल्टर मैकेनिज्म’ अपनाना
- प्रक्रिया का सरलीकरण : त्वरित सुनवाई और समयबद्ध निर्णय की व्यवस्था करना