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स्थायी कार्बनिक प्रदूषक - एक वैश्विक संकट और भारत की प्रतिक्रिया

क्या हैं स्थायी कार्बनिक प्रदूषक (POPs)?

  • POPs ऐसे जहरीले रासायनिक पदार्थ होते हैं जो पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहते हैं।
  • ये खाद्य श्रृंखला के माध्यम से जीवों में एकत्रित होते हैं और मानव स्वास्थ्य व पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा बनते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने हाल ही में वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) के सहयोग से एक व्यापक अध्ययन किया, जिसमें POPs पर प्रगति और नई चिंताओं को रेखांकित किया गया।

POPs की प्रमुख विशेषताएँ:

  • ये कार्बन-आधारित रसायन होते हैं, जिनमें कीटनाशक, औद्योगिक रसायन या औद्योगिक प्रक्रियाओं के उप-उत्पाद शामिल हैं।
  • मुख्य गुण:
    • दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थायित्व
    • पानी में कम घुलनशील, लेकिन वसा में अधिक घुलनशील — शरीर की वसायुक्त ऊतकों में एकत्र होते हैं
    • अर्ध-वाष्पशील — वायुमंडल में लंबी दूरी तक यात्रा कर सकते हैं
    • धूप, जैविक गतिविधि और रासायनिक प्रक्रियाओं से विघटन के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी
    • उदाहरण: DDT, डील्ड्रिन, एंड्रिन, हेप्टाक्लोर आदि।

POPs के मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:

  • कैंसरविभिन्न प्रकार के कैंसर से संबंध
  •  यकृत (लिवर) क्षति लम्बे समय तक संपर्क से यकृत कार्य प्रभावित
  • प्रजनन समस्याएँप्रजनन क्षमता में गिरावट और भ्रूण विकास में बाधा
  •  श्वसन समस्याएँ अस्थमा व अन्य सांस की बीमारियों से संबंध
  • थायरॉइड विकार हार्मोनल संतुलन में अवरोध उत्पन्न

अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine) में व्यवधान:

  • POPs प्राकृतिक हार्मोनों की नकल या उन्हें अवरुद्ध कर देते हैं
  • इससे विकास, प्रजनन, प्रतिरक्षा प्रणाली और चयापचय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है

पर्यावरणीय प्रभाव:

  • बायोएक्यूम्युलेशन (Bioaccumulation) जीवों की वसायुक्त कोशिकाओं में संग्रह
  • बायोमैग्नीफिकेशन (Biomagnification) खाद्य श्रृंखला में ऊपर जाते हुए सांद्रता में वृद्धि
  • परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र में दीर्घकालिक विषाक्तता व जैव विविधता पर खतरा

UNEP अध्ययन की मुख्य बातें:

पुराने POPs में भारी गिरावट:

  • 2004 से 12 प्रमुख POPs के उपयोग में उल्लेखनीय कमी आई है
  • स्टॉकहोम कन्वेंशन जैसे वैश्विक उपायों के चलते यह संभव हो पाया

DDT स्तरों में गिरावट:

  • मानव दूध के नमूनों में DDT की सांद्रता में 70% से अधिक की गिरावट दर्ज
  • यह प्रभावी प्रतिबंध और मानव संपर्क में कमी को दर्शाता है

नए POPs की उपस्थिति:

  • PFAS जैसे प्रतिस्थापन रसायनों की अधिकता पाई गई
  • इनमें भी समान स्थायित्व और विषाक्तता है, जिससे नई स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं

स्टॉकहोम कन्वेंशन (Stockholm Convention) – 

  • 2001 में पारित, 2004 से लागू
  • POPs के उत्पादन व उपयोग को समाप्त या सीमित करने का प्रयास
  • भारत ने 2006 में इस संधि की पुष्टि की
  • “स्थायी कार्बनिक प्रदूषक नियम, 2018” को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित किया
  • GEF इस कन्वेंशन की अंतरिम वित्तीय व्यवस्था के रूप में कार्य करता है

भारत की भूमिका और चुनौतियाँ:

भारत के प्रयास:-

  • 2006 में स्टॉकहोम कन्वेंशन को स्वीकृति दी
  • 2018 में POPs को विनियमित करने हेतु नियम बनाए
  • सुरक्षित रसायन प्रबंधन के लिए जन-जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए

प्रमुख चुनौतियाँ:

  • पूर्ववर्ती प्रदूषण (Legacy Contamination):
    • पुराने औद्योगिक स्थलों, मिट्टी और जल में POPs की उपस्थिति बनी हुई है
  • निषिद्ध रसायनों का अवैध उपयोग:
    • कृषि में प्रतिबंधित POPs का अनधिकृत प्रयोग जारी है
  • कमजोर निगरानी व अवसंरचना:
    • ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में निगरानी, परीक्षण और नियमों के क्रियान्वयन हेतु क्षमता और संसाधनों की कमी है
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