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प्लास्टिक पार्क : नई पेट्रोकेमिकल्स योजना

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि)

संदर्भ

रसायन एवं पेट्रो-रसायन विभाग नई पेट्रोकेमिकल्स योजना के तहत प्लास्टिक पार्क स्थापित करने की योजना को लागू कर रहा है।

प्लास्टिक पार्क के बारे में

  • यह एक औद्योगिक क्षेत्र है जो विशेष रूप से प्लास्टिक से संबंधित व्यवसायों एवं उद्योगों के लिए बनाया गया है। 
  • इसका उद्देश्य प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग की क्षमताओं को समेकित एवं समन्वित करना, निवेश, उत्पादन व निर्यात को बढ़ावा देना तथा रोजगार सृजन करना है। 
  • ये पार्क अपशिष्ट प्रबंधन एवं पुनर्चक्रण पहल के माध्यम से पर्यावरणीय रूप से संधारणीय विकास प्राप्त करने पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • ये प्लास्टिक पार्क प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन, पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने और रासायनिक उद्योग को समर्थन देने की भारत की रणनीति का एक अभिन्न अंग बनकर उभरे हैं। 
  • अब तक विभिन्न राज्यों में 10 प्लास्टिक पार्कों को मंजूरी दी गई है। विगत पांच वर्षों के दौरान इन प्लास्टिक पार्कों का विवरण इस प्रकार है:

प्लास्टिक पार्क स्थान

स्वीकृति वर्ष

कुल परियोजना लागत (करोड़ रुपए)

तामोट, मध्य प्रदेश 

2013 

108.00

जगतसिंहपुर, ओडिशा 

2013

106.78

तिनसुकिया, असम

2014

93.65

बिलौआ, मध्य प्रदेश 

2018

68.72

देवघर, झारखण्ड 

2018 

67.33

तिरुवल्लूर, तमिलनाडु

2019

216.92

सितारगंज, उत्तराखंड

2020

67.73

रायपुर, छत्तीसगढ़

2021

42.09

गंजीमट्ट, कर्नाटक

2022

62.77

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

2022

69.58

plastic-park

पृष्ठभूमि

  • विश्व बैंक के वर्ष 2022 के अनुमान के अनुसार प्लास्टिक के विश्व निर्यात में भारत 12वें स्थान पर है। 
  • वर्ष 2014 से इसमें तेजी से वृद्धि हुई है, जब इसका मूल्य सिर्फ 8.2 मिलियन हजार डॉलर था, जबकि वर्ष 2022 के अनुमान के अनुसार यह 27 मिलियन हजार डॉलर तक पहुंच गया है।
  • यह वृद्धि प्लास्टिक के उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्लास्टिक पार्क स्थापित करने जैसे निरंतर प्रयासों का परिणाम है।
  • भारतीय प्लास्टिक उद्योग बड़ा है किंतु इसमें बहुत अधिक विखंडन है तथा इसमें छोटी, लघु एवं मध्यम इकाइयों का प्रभुत्व है और इस प्रकार इस अवसर का लाभ उठाने की क्षमता का अभाव है। 

नई पेट्रोकेमिकल्स योजना के बारे में

  • रसायन एवं पेट्रोरसायन विभाग ने क्लस्टर विकास के माध्यम से क्षमताओं को समन्वित व समेकित करने तथा भारत की प्लास्टिक उत्पादन और निर्यात क्षमताओं को बढ़ाने के उद्देश्य से यह योजना तैयार की है। 
  • यह योजना आवश्यकता आधारित प्लास्टिक पार्कों की स्थापना को समर्थन देती है जिसमें अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा एवं साझा सुविधाएँ क्लस्टर विकास के दृष्टिकोण से उपलब्ध कराई जाती हैं ताकि देश के डाउनस्ट्रीम प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग की क्षमताओं को समेकित किया जा सके।
  • डाउनस्ट्रीम प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग की क्षमताओं को समेकित एवं समन्वित करने से इस क्षेत्र में निवेश, उत्पादन व निर्यात में वृद्धि हो सके तथा रोजगार के नए अवसर सृजित किए जा सकें।
  • इस योजना के अंतर्गत भारत सरकार परियोजना लागत का अधिकतम 50% तक अनुदान सहायता प्रदान करती है जिसकी अधिकतम सीमा प्रति परियोजना 40 करोड़ निर्धारित की गई है।

इस योजना के उद्देश्य

  • आधुनिक अनुसंधान एवं विकास आधारित मापकों के अनुकूलन के माध्यम से घरेलू डाउनस्ट्रीम प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग में प्रतिस्पर्धात्मकता, बहुलक अवशोषण क्षमता एवं मूल्य संवर्धन को बढ़ाना
  • क्षमता एवं उत्पादन में वृद्धि, गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे का निर्माण और अन्य सुविधाओं के माध्यम से इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाना ताकि मूल्य संवर्धन व निर्यात में वृद्धि सुनिश्चित हो सके।
  • अपशिष्ट प्रबंधन, पुनर्चक्रण आदि के नवीन तरीकों के माध्यम से पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ विकास प्राप्त करना
  • संसाधनों के अनुकूलन और पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के कारण होने वाले लाभों के कारण उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए क्लस्टर विकास दृष्टिकोण अपनाना

प्लास्टिक पार्क स्थापित करने की प्रक्रिया

  • प्लास्टिक पार्कों की स्थापना के उद्देश्य से रसायन एवं पेट्रोरसायन विभाग राज्य सरकारों से प्रारंभिक प्रस्ताव मांगता है जिसमें प्रस्तावित स्थान, वित्तीय विवरण, व्यापक लागत अनुमान आदि का उल्लेख होता है। 
  • योजना संचालन समिति से सैद्धांतिक अनुमोदन के बाद राज्य कार्यान्वयन एजेंसी को विभाग को एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) प्रस्तुत करनी होती है, जिसका मूल्यांकन किया जाता है और प्रस्तावित परियोजना की व्यवहार्यता के आधार पर योजना संचालन समिति द्वारा अंतिम अनुमोदन दिया जाता है।
  • सरकार प्लास्टिक पार्कों की स्थापना के लिए अनुदान सहायता प्रदान करती है। 
  • इन परियोजनाओं का क्रियान्वयन तथा उनमें औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने की प्रक्रिया मुख्यतः राज्य सरकार या राज्य औद्योगिक विकास निगम या उनकी एजेंसियों द्वारा स्थापित विशेष प्रयोजन वाहनों के हाथों में है। 
  • इस योजना के अंतर्गत औद्योगिक इकाइयों की स्थिरता एवं पर्यावरण-मित्रता के लिए सामान्य बुनियादी ढांचा प्रदान किया जाता है जिसमें अपशिष्ट उपचार संयंत्र, ठोस/खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग की सुविधाएँ, भस्मक आदि शामिल हैं।

अन्य सरकारी पहल

  • उत्कृष्टता केंद्र (CoE) : पॉलिमर व प्लास्टिक में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए विभाग ने राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न संस्थानों में 13 उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए हैं।
    • ये उत्कृष्टता केंद्र विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे- संधारणीय पॉलिमर, उन्नत पॉलिमर सामग्री, जैव-इंजीनियरिंग प्रणालियाँ तथा पेट्रोकेमिकल उद्योगों में अपशिष्ट जल प्रबंधन के लिए प्रक्रिया विकास। 
    • उनका उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना, प्रौद्योगिकी में सुधार करना और क्षेत्र के भीतर पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना है।
  • कार्यबल का कौशलीकरण : केंद्रीय पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान उद्योग की कौशल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्लास्टिक प्रसंस्करण व प्रौद्योगिकी में कई अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक पाठ्यक्रम संचालित कर रहा है।

भारतीय प्लास्टिक उद्योग एवं पर्यावरण स्थिरता

भारत सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं कि प्लास्टिक उद्योग का विकास पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ हो तथा वैश्विक स्थिरता मानकों के अनुरूप हो।

  • प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) विनियमन में न्यूनतम स्तर के पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण एवं पुनर्चक्रित सामग्री के उपयोग का लक्ष्य रखा गया है। 
  • यह अपशिष्ट संग्रह, पुनर्चक्रण एवं पुन: उपयोग के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करता है। 
  • प्लास्टिक कचरे को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए कुछ एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। 
  • विनियमों में पैकेजिंग उत्पादों में न्यूनतम मात्रा में पुनर्नवीनीकृत सामग्री का उपयोग करने का भी आदेश दिया गया है।
  • खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का उद्देश्य खतरनाक रसायनों का उचित निपटान सुनिश्चित करना तथा अपशिष्ट न्यूनीकरण और संसाधन पुनः प्राप्ति को बढ़ावा देना है।
  • सरकार प्लास्टिक उद्योग में चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को अपनाने को बढ़ावा देती है, जिसमें पुनर्चक्रण एवं बायोडिग्रेडेबल विकल्पों का उपयोग शामिल है। 
  • भारत वैश्विक स्थिरता मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए विश्व व्यापार संगठन (WTO) एवं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करता है। 
  • इसके अलावा भारत अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) की बैठकों में सक्रिय रूप से भाग लेता है जो प्लास्टिक उत्पादों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक तैयार करता है।

निष्कर्ष

रसायन एवं पेट्रोरसायन विभाग के अंतर्गत प्लास्टिक पार्क योजना एक व्यापक व दूरदर्शी पहल है जो भारतीय प्लास्टिक क्षेत्र के औद्योगिक विकास तथा पर्यावरणीय संधारणीयता दोनों को संबोधित करती है। चूँकि भारत वैश्विक प्लास्टिक व्यापार रैंकिंग में लगातार ऊपर उठ रहा है, इसलिए प्लास्टिक पार्क योजना और संबद्ध उपाय यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण बने रहेंगे कि यह वृद्धि टिकाऊ, समावेशी व नवाचार-संचालित हो।

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