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परित्यक्त कोयला खदानों से सौर ऊर्जा उत्पादन की संभावनाएँ

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन, बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि)

संदर्भ 

  • भारत द्वारा परंपरागत जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने के प्रयासों के बीच परित्यक्त कोयला खदानों को सौर ऊर्जा उत्पादन केंद्रों में बदलने की पहल एक महत्वपूर्ण एवं नवाचारी कदम बनकर उभरी है। 
  • ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) के एक हालिया विश्लेषण के अनुसार, भारत विश्व में परित्यक्त कोयला खदानों से सौर ऊर्जा उत्पादन की संभावना के मामले में चौथे स्थान पर है। 

भारत में सौर ऊर्जा की संभावनाएँ

  • GEM के विश्लेषण में भारत में 63 से अधिक परित्यक्त खदान स्थलों की पहचान की गई है जो 500 वर्ग किमी. से अधिक क्षेत्र को कवर करते हैं। 
  • इन स्थलों पर कुल 27.11 गीगावाट (GW) सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है, जो भारत की वर्तमान स्थापित सौर क्षमता का लगभग 37% है। 
  • विशेष रूप से तेलंगाना, ओडिशा, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ जैसे राज्य वैश्विक स्तर पर उन शीर्ष 20 क्षेत्रों में शामिल हैं, जहाँ परित्यक्त खदानों से भूमि उपलब्धता सर्वाधिक है। इन चार राज्यों में ही 22 GW से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन की संभावना है। 

वैश्विक परिदृश्य

  • वैश्विक स्तर पर 3,800 से अधिक कोयला खदानें सक्रिय हैं, जो विश्व के 95% कोयले का उत्पादन करती हैं। हालांकि, 33 देशों ने कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसके परिणामस्वरूप आने वाले वर्षों में सैकड़ों खदानें बंद होने की संभावना है। 
  • GEM के विश्लेषण के अनुसार, 28 देशों में हाल ही में बंद हुई सतही कोयला खदानों को सौर ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे कुल 288 GW की क्षमता प्राप्त हो सकती है। 
  • इसमें 300 हाल ही में बंद खदानों से 103 GW और 127 जल्द बंद होने वाली खदानों से 185 GW की क्षमता शामिल है। यह जर्मनी की वार्षिक बिजली खपत के बराबर है।

प्रमुख लाभ

परित्यक्त कोयला खदानों को सौर ऊर्जा पार्कों में बदलने से न केवल पर्यावरणीय लाभ होंगे बल्कि आर्थिक व सामाजिक लाभ भी प्राप्त होंगे। 

  • रोजगार सृजन : इन परियोजनाओं से विश्व स्तर पर 259,700 स्थायी रोजगार एवं 317,500 अस्थायी निर्माण कार्यों के अवसर सृजित हो सकते हैं, जो वर्ष 2035 तक कोयला क्षेत्र में होने वाले रोजगार क्षति को संतुलित कर सकते हैं। 
  • ग्रिड से निकटता : इसके अलावा 96% परित्यक्त खदानें बिजली ग्रिड से 10 किमी. की दूरी पर और 91% कनेक्शन पॉइंट्स जैसे सबस्टेशनों के निकट हैं जो सौर ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना को आसान बनाता है।
  • पर्यावरणीय लाभ : पुराने कोयला खदानों से मीथेन उत्सर्जन जैसी गंभीर समस्याओं से भी निजात मिलेगी, जो CO₂ से 28 गुना अधिक प्रभावी ग्रीनहाउस गैस है।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • भू-स्वामित्व एवं अधिग्रहण : परित्यक्त खदानों का स्वामित्व पता लगाना और सुरक्षित करना कठिन है, जो परियोजनाओं की शुरुआत में बाधा डाल सकता है। यह विशेष रूप से भारत जैसे देशों में एक बड़ी चुनौती है, जहाँ नीतियां स्पष्ट नहीं हैं।
  • विनियामक एवं परमिट संबंधी मुद्दे : खदान बंदी, भूमि पुनर्स्थापना एवं सौर परियोजनाओं के लिए परमिट प्राप्त करना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई कानूनी व प्रशासनिक बाधाएँ हैं।
  • उच्च लागत व तकनीकी चुनौतियाँ : सौर पैनल स्थापना, भूमि पुनर्स्थापना और ग्रिड अपग्रेड के लिए उच्च प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, असमतल या दूषित भूमि को सौर उपयोग के लिए अनुकूल बनाना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है।
  • ग्रिड एकीकरण : सौर ऊर्जा की परिवर्तनीय प्रकृति (दिन-रात व मौसम पर निर्भरता) के कारण ग्रिड में स्थिरता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए उन्नत ग्रिड प्रबंधन प्रणाली व बुनियादी ढांचे की जरूरत है।

आगे की राह 

  • स्पष्ट नीतियाँ एवं विनियम : खदान बंदी, भूमि हस्तांतरण एवं सौर परियोजना स्थापना के लिए स्पष्ट व एकीकृत नीतियां बनाई जाएँ। भारत में खनन बंदी और पुनर्जनन के लिए एक राष्ट्रीय नीति ढांचा विकसित किया जाए।
  • भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण : परित्यक्त खदानों के स्वामित्व को स्पष्ट करने के लिए डिजिटल भूमि रिकॉर्ड सिस्टम विकसित किया जाए।
  • स्थानीय समुदायों को प्राथमिकता : सौर परियोजनाओं में भूमि हस्तांतरण से पहले स्थानीय समुदायों को उनके भूमि अधिकार वापस किए जाएँ, जिससे सामुदायिक विश्वास में वृद्धि हो।
  • कानूनी ढांचा : भू-स्वामित्व विवादों को हल करने के लिए विशेष न्यायिक या मध्यस्थता तंत्र स्थापित किए जाए।
  • मीथेन रिसाव नियंत्रण : मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए खदानों की सीलिंग एवं वेंटिलेशन सिस्टम स्थापित किए जाए।
  • सुरक्षा निगरानी : छत ढहने व सिंकहोल जैसे जोखिमों को रोकने के लिए नियमित निगरानी तथा रखरखाव प्रणाली लागू की जाए।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) : सौर परियोजनाओं के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी को प्रोत्साहित किया जाए ताकि वित्तीय बोझ कम हो।
  • पायलट परियोजनाएँ : छोटे पैमाने की पायलट परियोजनाओं के माध्यम से लागत एवं तकनीकी व्यवहार्यता का परीक्षण किया जाए।
  • उन्नत तकनीक का उपयोग : सौर पैनल स्थापना और भूमि पुनर्स्थापना के लिए नवीन तकनीकों (जैसे- मॉड्यूलर सौर प्रणालियों व स्वचालित निगरानी उपकरणों) का उपयोग किया जाए।

निष्कर्ष

परित्यक्त कोयला खदानों को सौर ऊर्जा संयंत्रों में परिवर्तित करने की चुनौतियों का समाधान नीतिगत सुधार, सामुदायिक सहभागिता, पर्यावरणीय प्रबंधन और आर्थिक सहायता के समन्वित प्रयासों से संभव है। भारत इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की संभावना रखता है और इन उपायों को लागू करके ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरणीय सुधार एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है। 

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