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भारत में जेल सुधार : प्रमुख संशोधन,प्रावधान और आवश्यकता

  • भारतीय जेल व्यवस्था औपनिवेशिक युग की देन है। 
  • कारागार अधिनियम, 1894 के तहत बनाई गई यह प्रणाली मुख्यतः अपराधियों को दंड देने और भय पैदा करने पर केंद्रित थी। 
  • परंतु स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान ने समानता (अनुच्छेद 14), स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19), और जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) जैसे मौलिक अधिकारों को नागरिकों के लिए सुनिश्चित किया। 
  • ऐसे में जेल प्रशासन की प्राथमिकता केवल दंड नहीं, बल्कि अपराधियों का सुधार, पुनर्वास और समाज में पुनः एकीकरण होनी चाहिए।
  • हाल ही में गृह मंत्रालय द्वारा मॉडल जेल मैनुअल, 2016 और मॉडल जेल एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023 में किए गए संशोधन इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।
  • विशेषकर जाति आधारित भेदभाव, मैनुअल स्कैवेंजिंग और महिला व ट्रांसजेंडर कैदियों की स्थिति को सुधारने के प्रावधान इन सुधारों को ऐतिहासिक बना देते हैं।

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जेल सुधार चर्चा में क्यों?

  • सुकन्या शांता बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जाति-आधारित भेदभाव समाप्त करने का निर्देश दिया।
  • गृह मंत्रालय ने इस आदेश के अनुपालन में जेलों में कार्य-विभाजन और कैदियों की श्रेणीकरण प्रणाली में सुधार किया।
  • यह पहल भारतीय संविधान के उन मूल्यों को पुनः स्थापित करती है, जिनमें समानता और गरिमा सर्वोपरि है।

प्रमुख संशोधन और प्रावधान

  • भेदभाव निषेध
    • कैदियों के कार्य, रहने की व्यवस्था और व्यवहार में जाति या सामाजिक दर्जे के आधार पर भेदभाव वर्जित।
  • मैनुअल स्कैवेंजिंग पर रोक
    • 2013 का अधिनियम जेलों पर भी लागू होगा। सीवर और सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई अब कैदियों से नहीं कराई जाएगी।
  • विशेष जेलों का प्रावधा
    • सेमी-ओपन और ओपन जेल, जिनमें कैदियों को नियंत्रित वातावरण में पुनर्वास और काम करने का अवसर मिलेगा।
  • सुधारात्मक प्रोत्साहन
    • अच्छे आचरण पर पैरोल, फरलो और सजा में छूट।
    • इलेक्ट्रॉनिक निगरानी (जैसे GPS टैगिंग) के आधार पर अस्थायी छुट्टी।
  • पुनर्वास और कौशल विकास
    • कैदियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण और रोजगारपरक शिक्षा।
    • रिहाई के बाद समाज में पुनः स्थापित करने की पहल।
  • विशेष सुविधाएँ
    • महिला कैदियों के लिए प्रसूति व स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ।
    • ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए सुरक्षित और अलग आवास।

जेल सुधारों की आवश्यकता

1. औपनिवेशिक कानून का बोझ

  • राममूर्ति बनाम कर्नाटक राज्य (1996) में सुप्रीम कोर्ट ने 1894 अधिनियम को बदलने की आवश्यकता बताई।

2. अत्यधिक भीड़ (Overcrowding)

  • प्रिजन ऑफ इंडिया रिपोर्ट 2024:
    • कुल कैदी – 5.73 लाख
    • क्षमता – 4.36 लाख
    • भीड़ का स्तर – 131.4%
  • 75.8% कैदी विचाराधीन (Undertrial) हैं।

3. न्यायिक देरी और जमानत की समस्या

  • सत्र न्यायालयों में जमानत अस्वीकृति दर 32.3%।
  • विचाराधीन कैदियों की लंबी बंदिश से मौलिक अधिकार प्रभावित।

4. अमानवीय परिस्थितियाँ

  • अधिकांश जेलों में साफ-सफाई और चिकित्सा सुविधाएँ नहीं।
  • 40% जेलों में सेनिटरी नैपकिन उपलब्ध, केवल 18% में महिला विशेष सुविधाएँ।

5. महिला कैदियों की स्थिति

  • राज्य जेल मैनुअल में प्रजनन अधिकारों का अभाव।
  • बच्चों के साथ रह रही महिला कैदियों के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं।

6. मृत्युदंड की समस्या

  • 2006–2022: मृत्युदंड पाए कैदियों में केवल 0.3% को फांसी।
  • लंबी देरी से मानसिक पीड़ा और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का उल्लंघन।

7. जातिगत भेदभाव और बंधुआ श्रम जैसी प्रथाएँ

  • जाति के आधार पर काम का विभाजन और मैनुअल स्कैवेंजिंग जैसी अमानवीय प्रथाएँ अब भी मौजूद।

अब तक उठाए गए कदम

  • फास्ट ट्रैक अदालतें : लंबित मामलों के निपटारे हेतु।
  • NHRC : कैदियों के अधिकारों की निगरानी।
  • मॉडल जेल मैनुअल, 2016 : सुधारात्मक प्रावधानों के लिए दिशानिर्देश।
  • न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर समिति (1987) : महिला कैदियों पर रिपोर्ट।
  • ई-प्रिजन प्रणाली : डिजिटल कैदी प्रबंधन।
  • FASTER प्रणाली : जमानत आदेशों की त्वरित डिलीवरी।
  • ICJS : अदालत, पुलिस और जेलों को जोड़ने की योजना।

भारत का कानूनी ढाँचा

  • राज्य सूची (अनुच्छेद 246, सातवीं अनुसूची, प्रविष्टि 4) – जेल राज्य सरकारों के अधीन।
  • कारागार अधिनियम, 1894 – पुराना कानून, परंतु अधिकांश जगह लागू।
  • मॉडल जेल एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023 – नए सुधारों का मार्गदर्शन।
  • BNSS, 2023
    • धारा 479 : लंबे समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की जमानत।
    • धारा 289–300 : प्ली बार्गेनिंग की व्यवस्था।

वैश्विक मानक और भारत

  1. नेल्सन मंडेला नियम (2015) कैदियों के साथ न्यूनतम मानक व्यवहार।
  2. बैंकॉक नियम (2010)महिला कैदियों के लिए विशेष प्रावधान।
  3. टोक्यो नियम (1990)बिना हिरासत वाले उपायों (Non-custodial measures) की सिफारिश।
  4. भारत की स्थितिभारत धीरे-धीरे इन मानकों को अपनाता रहा है, परंतु अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

आगे की राह

  • न्यायिक सुधार : जमानत प्रणाली को सरल और मानवीय बनाना।
  • जेल भीड़ प्रबंधन : ओपन जेलों और सामुदायिक सेवा जैसी वैकल्पिक सजाओं को बढ़ावा देना।
  • मानव संसाधन सुधार : जेल कर्मचारियों का प्रशिक्षण और संवेदनशीलता बढ़ाना।
  • महिला और ट्रांसजेंडर अधिकार : स्वास्थ्य, प्रजनन अधिकार और सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करना।
  • तकनीकी उपयोग : निगरानी, केस ट्रैकिंग और पुनर्वास कार्यक्रमों में डिजिटल साधनों का उपयोग।
  • समानता आधारित सोच : जातिगत या वर्गीय विभाजन के बिना जेल प्रबंधन।
  • भारतीय जेल सुधार केवल एक कानूनी विषय नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकार और सामाजिक न्याय का मुद्दा है। 
  • अपराधियों को दंडित करने की बजाय उन्हें सुधारने और समाज में पुनः स्थापित करने का प्रयास ही एक लोकतांत्रिक और मानवीय राष्ट्र की पहचान है।
  • आज आवश्यकता है कि भारत अपनी जेल व्यवस्था को औपनिवेशिक दंडात्मक ढाँचे से बाहर निकालकर अधिकार-आधारित और पुनर्वास केंद्रित मॉडल की ओर ले जाए।
  •  यही हमारे संविधान और वैश्विक मानवाधिकार मानकों की सच्ची आत्मा है।
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