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भारत में बाल श्रम की समस्या

(प्रारंभिक परीक्षा : अधिकारों संबंधी मुद्दे, सामाजिक विकास- सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 एवं 2 : जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी  एवं विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ व उनके रक्षोपाय, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास एवं प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ 

वर्ष 2022 में हस्ताक्षरित भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार समझौते के संबंध में ऑस्ट्रेलियाई संसदीय समिति ने भारत में बाल श्रम को लेकर चिंता जताई है। 

ऑस्ट्रेलियाई संसदीय समिति की चिंताएँ

  • नीतिगत दृष्टिकोण से अलग : भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार सौदा ऑस्ट्रेलिया की नीतिगत प्राथमिकताओं के विपरीत था क्योंकि इससे पर्यावरणीय दृष्टिकोण से निम्न वस्तुओं एवं श्रम मानकों से समझौता करने वाले वस्तुओं के आयात में वृद्धि हो सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों से असंगत : भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया का व्यापार समझौता अंतर्राष्ट्रीय श्रम अधिकारों से असंगत है। समिति ने सरकार को निम्न सुझाव दिया है : 
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम अधिकारों का उल्लंघन करने वाले देशों के साथ व्यापार समझौता न किया जाए। 
    • समझौतों में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मुख्य अभिसमयों में शामिल प्रतिबद्धताओं के अनुरूप एक श्रम अध्याय शामिल हो। 

क्या है बाल श्रम

  • दिल्ली उच्च न्यायालय : किसी भी प्रकार के भुगतान या लाभ के लिए किसी व्यक्ति को श्रम या सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से बच्चे को नियोजित करने या संलग्न करने की प्रणाली को बल श्रम कहा जाता है। इसमें बच्चे को या उक्त बच्चे पर नियंत्रण रखने वाले किसी अन्य व्यक्ति को भुगतान किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन : बाल श्रम शब्द को प्राय: ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता एवं उनकी गरिमा से वंचित करता है और उनके शारीरिक व मानसिक विकास के लिए हानिकारक है।

रत में बाल श्रम की स्थिति 

  • वैश्विक आँकड़ा : वर्तमान में वैश्विक स्तर पर लगभग 16 करोड़ बाल श्रमिक हैं। इसमें लगभग 9.7 करोड़ बालक एवं  6.3 करोड़ बालिकाएँ हैं। 

भारत संबंधी आँकड़ा

  • संख्या : वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 5 से 14 वर्ष की आयु के बीच लगभग 1.01 करोड़ बाल श्रमिक हैं। 
  • प्रभावित राज्य : भारतीय संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र में भारत के आधे से अधिक बाल श्रमिक कार्यरत हैं। 
  • प्रभावित क्षेत्र : वर्ष 2001 से 2011 के मध्य बाल श्रम की घटनाओं में कमी आई है किंतु प्रवासन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में यह अधिक है।
  • संसदीय समिति के अनुसार, कोविड -19 प्रेरित संकटों  से उत्पन्न आर्थिक संकट के कारण शहरों में सभी क्षेत्रों एवं आयु वर्गों में बाल श्रमिकों की संख्या में वास्तविक वृद्धि हुई है।
  • बाल श्रम वाले उद्योग : संपूर्ण भारत में बाल श्रमिक विभिन्न प्रकार के उद्योगों में संलग्न हैं जिनमें से कुछ प्रमुख उद्योग में शामिल हैं : 
    • ईंट भट्टे एवं खनन
    • कालीन बुनाई एवं वस्त्र उद्योग
    • घरेलू सेवा
    • भोजन एवं जलपान सेवाएं 
    • कृषि एवं मत्स्य पालन 

बाल श्रम के लिए उत्तरदायी कारक 

  • गरीबी एवं भेदभाव 
  • अच्छे काम के अवसरों की कमी
  • जलवायु आपदा एवं प्रवास
  • संघर्ष के कारण विस्थापन 
  • सामाजिक असमानता एवं बेगारी 
  • शैक्षिक एवं खेलकूद जैसी गतिविधियों का आभाव 
  • स्थानीय परंपराएँ 
  • नीतिगत समस्याएँ 

बाल श्रम का प्रभाव 

  • मानसिक एवं शारीरिक शोषण
  • बाल पोर्नोग्राफ़ी को बढ़ावा
  • स्कूल जाने के अधिकार से वंचित होना 
  • अंतर-पीढ़ीगत निर्धनता चक्र को बढ़ावा
  • बाल तस्करी को बढ़ावा
  • दीर्घावधि में जी.डी.पी. पर नकारात्मक प्रभाव 
  • नई दक्षता सीखने में एवं कौशल विकास में समस्या 
  • स्वास्थ संबंधी समस्या और गरीबी का कुचक्र 
  • शिक्षा के आभाव में आपराधिक गतिविधियों में संलग्न होने की प्रवृति 

बाल श्रम उन्मूलन के उपाय 

व्यापक कार्य योजना 

  • राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर बाल श्रम उन्मूलन के लिए एक समयबद्ध व बजटीय कार्य योजना अतिशीघ्र तैयार की जानी चाहिए। 
    • वर्ष 2025 तक सभी प्रकार के बाल श्रम के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य योजनाओं और बजट को एक-दूसरे के अनुरूप तैयार किया जाना चाहिए।

एकीकृत प्रणाली की स्थापना

  • केंद्र, राज्य एवं जिला स्तर पर विभिन्न एजेंसियों के बीच अभिसरण को मजबूत करने की आवश्यकता है। 
    • केंद्रीय व राज्य निगरानी समितियों को महिला एवं बाल विभाग, पुलिस विभाग, शिक्षा विभाग आदि सहित सभी संबंधित विभागों को अनिवार्य रूप से शामिल करने के लिए मजबूत किया जाना चाहिए।

बजटीय आवंटन में वृद्धि 

बाल श्रम एवं बच्चों में बंधुआ मजदूरी के लिए आर्थिक मुआवजा प्रदान करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय बल श्रम परियोजना के लिए बजट आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए।

चाइल्ड बजटिंग

  • राष्ट्र की विकास प्रक्रिया में बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा एवं स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए राष्ट्रीय बजट प्रक्रिया में चाइल्ड बजटिंग को शामिल किया जाना चाहिए।
    • सरकारी विभागों, जैसे- गृह मंत्रालय, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय, शहरी नियोजन मंत्रालय और अन्य मंत्रालय अपने बजट के एक हिस्से का आवंटन बाल कल्याण गतिविधियों के लिए करेंगे।

भारतीय दण्ड संहिता के तहत प्रावधान 

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 166 ए में बाल एवं किशोर श्रम (निषेध व विनियमन) अधिनियम,1986 और बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम,1976 को शामिल किया जाना चाहिए।

अन्य सुझाव 

  • शिक्षा तक पहुँच एवं शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार 
  • सार्वजनिक नीति में व्यापक बदलाव 
  • परिवारों के लिए वैकल्पिक आय

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए प्रयास

सतत विकास लक्ष्य 

  • वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए सतत विकास लक्ष्य-2030 के लक्ष्य 8.7 के अनुसार,  
    • सभी सदस्य राज्य जबरन श्रम उन्मूलन, आधुनिक दासता एवं मानव तस्करी को समाप्त करने और बाल श्रम के सबसे निकृष्ट स्वरूपों (बाल सैनिकों की भर्ती व उपयोग सहित) के उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिए तत्काल व प्रभावी उपाय करेंगे।
    • वर्ष 2025 तक बाल श्रम को उसके सभी रूपों में समाप्त किया जाएगा।

आई.एल.ओ. कन्वेंशन 138

  • इसे वर्ष 1973 में जेनेवा में आयोजित आई.एल.ओ. की 57वीं बैठक के दौरान अपनाया गया। 
  • यह देशों को बाल श्रम का प्रभावी उन्मूलन करने पर बल देने के लिए प्रावधान करता है जिसमें मुख्य रूप से शामिल हैं : 
    • कार्य या रोजगार में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु तय करना
    • बाल श्रम उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों का निर्माण 

आई.एल.ओ. कन्वेंशन 182

  • इसे वर्ष 1999 में जेनेवा में आयोजित आई.एल.ओ. की 87वीं बैठक के दौरान अपनाया गया। 
  • यह सभी प्रकार के बाल श्रम के प्रभावी उन्मूलन के दीर्घकालिक लक्ष्य को खोए बिना प्राथमिकता के आधार पर बाल श्रम के सबसे खराब रूपों को समाप्त करने के लिए तत्काल कार्रवाई पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्रित करता है। 
  • यह सार्वभौमिक अनुसमर्थन वाला पहला आई.एल.ओ. कन्वेंशन है। 

भारत में बाल श्रम उन्मूलन के प्रयास

संवैधानिक प्रावधान 

  • अनुच्छेद 21A : शिक्षा का अधिकार 
    • राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। 
    • अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकार के परिप्रेक्ष्य में वर्ष 2009 में बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया गया।
  • अनुच्छेद 24 के तहत बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध 
    • 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी कारखाने/खदान या किसी भी खतरनाक रोजगार में नियोजित करने पर प्रतिबंध है।
  • अनुच्छेद 39(E) और 39(F) 
    • राज्य को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि बच्चों को उनकी निम्न आर्थिक स्थिति के कारण अनुपयुक्त व्यवसायों में कार्य के लिए मजबूर न किया जाए। 
    • बच्चों को स्वतंत्र एवं सम्मानजनक परिस्थितियों में स्वस्थ रूप से विकसित होने के अवसर दिए जाने चाहिए जो उन्हें शोषण व परित्याग से बचाएं।
  • अनुच्छेद 45 
    • राज्य को 6 वर्ष की आयु पूरी करने तक सभी बच्चों के लिए बचपन की प्रारंभिक देखभाल एवं शिक्षा प्रदान करने का प्रया करना चाहिए।
  • अनुच्छेद 51A(K) 
    • माता-पिता/अभिभावकों का कर्तव्य है कि वे 6 से 14 वर्ष के आयु के बच्चों को शैक्षिक अवसर प्रदान करें।
  • 86वां (संविधान संशोधन) अधिनियम, 2002 
    • इसने शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में प्रस्तुत किया। अनुच्छेद 21A, अनुच्छेद 45 एवं अनुच्छेद 51A के तहत बाल श्रम को प्रभावित करने वाले संवैधानिक प्रावधान इस संशोधन का परिणाम है।

गुरुपादस्वामी समिति की सिफारिश

  • वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल श्रम का व्यापक अध्ययन करने और भारत में बाल श्रम से निपटने के उपायों की सिफारिश करने के लिए गुरुपादस्वामी समिति का गठन किया।
  • समिति ने गरीबी एवं बाल श्रम के बीच मजबूत संबंध का उल्लेख करते हुए यह माना कि गरीबी जारी रहने तक बाल श्रम को समाप्त करने के लिए केवल कानूनी उपाय पर्याप्त नहीं होंगे। 
  • समिति की सिफारिशों के आधार पर वर्ष 1986 में बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम पारित किया गया था।

राष्ट्रीय बाल श्रम नीति 

  • खतरनाक व्यवसायों में संलग्न बच्चों पर प्रारंभिक रूप से ध्यान देने के साथ बाल श्रम को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए वर्ष 1987 में एक राष्ट्रीय बाल श्रम नीति तैयार की गई थी। 
  • यह नीति अधिनियम के कानूनी प्रावधानों को सख्ती से लागू करने पर बल देने के साथ ही बच्चों के परिवारों को उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए लाभ पहुंचाने वाले विकास कार्यक्रम भी लागू करती है।

बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम,1986

  • भारत में बाल श्रम को समाप्त करने के प्रयास में एक ऐतिहासिक कदम बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम,1986 था। 
  • वर्ष 2016 में भारत में बाल श्रम कानून में संशोधन किया गया। इसके अनुसार,  
    • पारिवारिक उद्यमों सहित 99 व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में बाल श्रम पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 
    • किशोरों को अब 38 खतरनाक व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में काम करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  • यह सभी व्यवसायों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोजगार पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाता है। 
    • इसमें अपने परिवार की मदद करने वाले या कलाकारों के रूप में काम करने वाले बच्चों को कुछ सशर्त छूट दी गई है।
  • इस अधिनियम के तहत गठित तकनीकी सलाहकार समिति की सिफारिश पर खतरनाक व्यवसायों की सूची का विस्तार किया जाता है।
  • यह किशोरों के काम के घंटे और अवधि को विनियमित करते हुए साप्ताहिक अवकाश  भी प्रदान करता है।
  • इस अधिनियम का उल्लंघन करके बच्चों/किशोरों को नियोजित करने पर नियोक्ताओं को कम-से-कम 6 महीने से लेकर 2 वर्ष तक की कैद या कम-से-कम 20,000 रुपए से लेकर 50,000 रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।

आई.एल.ओ. कन्वेंशन की पुष्टि 

  • भारत ने बाल श्रम से संबंधित आई.एल.ओ. के दो प्रमुख कन्वेंशनों (कन्वेंशन 138 एवं कन्वेंशन 182) की पुष्टि की है।  

पेंसिल प्लेटफार्म 

श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने बाल श्रम से संबंधित शिकायतों के निवारण व अधिनियम के प्रवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म 'पेंसिल' भी स्थापित किया है। 

राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना

  • राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP) केंद्रीय क्षेत्र की एक योजना है। 
  • इसके तहत परियोजना के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए जिला स्तर पर कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में जिला परियोजना सोसायटी की स्थापना की जाती है।
  • इसमें 9-14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को काम से हटाकर एन.सी.एल.पी. विशेष प्रशिक्षण केंद्रों में रखा जाता है। 
    • यहाँ बच्चों को ब्रिज शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, मध्याह्न भोजन, वजीफा, स्वास्थ्य देखभाल आदि प्रदान किए जाता है। 
  • इस परियोजना के तहत जिला परियोजना समितियों को सीधे धनराशि प्रदान की जाती है।
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