(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले विषय) |
संदर्भ
भारत में विधानसभाओं में मनोनयन की प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो अल्पसंख्यकों, विशेषज्ञों या विशेष समुदायों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती है। हाल ही में जम्मू एवं कश्मीर में मनोनयन को लेकर विवाद उठा है, जहाँ उपराज्यपाल (LG) को मनोनीत करने का अधिकार दिया गया है किंतु क्या यह मंत्रिपरिषद की सलाह से होना चाहिए या नहीं, यह बहस का विषय है।
विधानसभाओं में मनोनयन की प्रक्रिया के बारे में
- मनोनयन प्रक्रिया में चुने हुए सदस्यों के अलावा कुछ सदस्यों को बिना चुनाव के सीधे नामित किया जाता है।
- ये मनोनीत सदस्य विशेष ज्ञान, अनुभव या समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे- कला, विज्ञान, साहित्य या अल्पसंख्यक समुदाय।
- यह प्रक्रिया प्राय: राष्ट्रपति, राज्यपाल या केंद्र सरकार द्वारा की जाती है किंतु इसमें मंत्रिपरिषद की सलाह जरूरी होती है ताकि लोकतांत्रिक जवाबदेही बनी रहे।
- मनोनीत सदस्यों को मतदान का अधिकार होता है किंतु वे मंत्री नहीं बन सकते हैं।
- यह प्रक्रिया विधानसभाओं की कुल सीटों का एक छोटा हिस्सा होती है, जैसे- राज्य विधान परिषदों में एक-छठा भाग।
संविधान में संबंधित अनुच्छेद
- अनुच्छेद 80 : राज्यसभा में 12 मनोनीत सदस्यों का प्रावधान है जो राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं।
- अनुच्छेद 331 : लोकसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए 2 सदस्य के मनोनयन का प्रावधान (2020 में समाप्त)।
- अनुच्छेद 333 : राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन के लिए 1 सदस्य के मनोनयन का प्रावधान (2020 में समाप्त)।
- अनुच्छेद 171: राज्य विधान परिषदों में लगभग एक-छठे सदस्य के मनोनयन का प्रावधान है जो राज्यपाल द्वारा मंत्रिपरिषद की सलाह पर किए जाते हैं।
- संघीय क्षेत्रों (UTs) के संबंध में कोई सीधा अनुच्छेद नहीं है और यह संसद के कानूनों से नियंत्रित होता है, जैसे- जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 आदि।
संविधान निर्माताओं द्वारा इसे अपनाने का कारण
- इस मनोनयन व्यवस्था को शामिल करने का मुख्य कारण अल्पसंख्यकों, विशेषज्ञों एवं विशेष हितों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना था, ताकि चुनावी प्रक्रिया में छूटे हुए लोग भी विधानसभा में आवाज उठा सकें।
- यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली से प्रेरित है, जहाँ ब्रिटेन की हाउस ऑफ लॉर्ड्स में मनोनीत सदस्य (लाइफ पीयर्स) होते हैं जो विशेषज्ञता प्रदान करते हैं।
- भारतीय संविधान निर्माताओं ने इसे अपनाया क्योंकि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में केवल चुनाव से सभी का प्रतिनिधित्व संभव नहीं हैं। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से भी प्रभावित है, जो ब्रिटिश शासन से आया।
- इसका उद्देश्य लोकतंत्र को समावेशी बनाना व राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करना है।
लोकसभा, राज्यसभा एवं संघीय क्षेत्रों में व्यवस्था
- लोकसभा में: पहले 2 एंग्लो-इंडियन सदस्य मनोनीत होते थे किंतु वर्ष 2020 में 104वें संविधान संशोधन से इसे समाप्त कर दिया गया; अब सभी 543 सदस्य चुने जाते हैं।
- राज्यसभा में: 12 सदस्य मनोनीत होते हैं, जो कला, विज्ञान, साहित्य आदि क्षेत्रों से होते हैं; राष्ट्रपति द्वारा संघ मंत्रिपरिषद की सलाह पर मनोनीत किया जाता है।
- संघीय क्षेत्रों (UTs) में: दिल्ली में कोई मनोनयन नहीं (70 चुने हुए सदस्य); पुदुचेरी में 3 तक मनोनयन (केंद्र सरकार द्वारा); जम्मू एवं कश्मीर में 5 मनोनयन (LG द्वारा: 2 महिलाएँ, 2 कश्मीरी प्रवासी, 1 PoK विस्थापित)।
जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा का हालिया मुद्दा
- गृह मंत्रालय ने जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय में हलफनामा दिया कि LG द्वारा 5 सदस्यों का मनोनयन मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना किया जा सकता है।
- जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (2023 में संशोधित) की धारा 15, 15A, 15B के तहत LG को यह अधिकार; कुल 90 चुने हुए + 5 मनोनीत सदस्य।
- विवाद: LG को मंत्रिपरिषद की सलाह लेने के संबंध में केंद्र का मत है कि UT राज्य नहीं है अत: सलाह लेना अनिवार्य नहीं है।
दिल्ली विधान सभा हेतु प्रावधान
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, 1991 की धारा 3 के तहत 70 चुने हुए सदस्य; कोई मनोनयन प्रणाली नहीं है।
- दिल्ली में LG की भूमिका सीमित है किंतु वर्ष 2023 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार, जहाँ विधानसभा को अधिकार है, LG को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी पड़ती है।
पुदुचेरी विधान सभा के लिए प्रावधान
- संघीय क्षेत्र सरकार अधिनियम, 1963 की धारा 3 के तहत 30 चुने हुए + 3 तक मनोनीत सदस्य।
- मनोनयन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, UT के मंत्रिपरिषद की सलाह जरूरी नहीं है (2018 मद्रास HC फैसला)।
सर्वोच्च न्यायलय के संबंधित निर्णय
- के. लक्ष्मीनारायणन बनाम भारत संघ (2018): मद्रास उच्च न्यायालय ने पुदुचेरी में केंद्र के नामांकन अधिकार को सही ठहराया किंतु स्पष्ट प्रक्रिया की सिफारिश की; सर्वोच्च न्यायालय ने सिफारिशें रद्द कर दीं।
- दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (2023): सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने ‘ट्रिपल चेन ऑफ कमांड’ की अवधारणा दी: सिविल सेवक मंत्री के प्रति, मंत्री विधानसभा के प्रति, विधानसभा मतदाताओं के प्रति जवाबदेह।
- SC ने कहा कि जहाँ दिल्ली विधानसभा को विधायी अधिकार है, LG को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी चाहिए; यह मनोनयन पर भी लागू हो सकता है।
- जम्मू एवं कश्मीर के UT बनने को SC ने सही ठहराया है किंतु राज्य का दर्जा जल्द बहाल करने की बात भी कही है।
मुद्दे और चिंताएँ
- छोटी विधानसभाओं (जैसे- जम्मू एवं कश्मीर 95 सीटें, पुदुचेरी 33) में मनोनीत सदस्य बहुमत बदल सकते हैं, जिससे जनादेश प्रभावित होता है।
- केंद्र और UT सरकार में राजनीतिक मतभेद होने पर लोकतंत्र बाधित हो सकता है तथा मनोनयन का दुरुपयोग संभव है।
- UTs पूर्ण राज्य नहीं हैं किंतु चुनी हुई सरकारें होती हैं; मनोनयन बिना सलाह के जवाबदेही कम करता है।
- जम्मू एवं कश्मीर जैसे विशेष मामलों में (पूर्व राज्य) यह स्वायत्तता पर सवाल उठाता है।
- कोई स्पष्ट कानूनी प्रक्रिया नहीं है, जिससे विवाद बढ़ते हैं।
आगे की राह
- नामांकन प्रक्रिया में स्पष्ट संशोधन: संसद कानून बनाए जहां नामांकन UT मंत्रिपरिषद की सलाह पर हो, खासकर जम्मू एवं कश्मीर में जहां राज्य का दर्जा बहाल होगा।
- लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मजबूत करना : ट्रिपल चेन ऑफ कमांड को नामांकन पर लागू करना ताकि जवाबदेही बनी रहे।
- जनमत को प्राथमिकता: UTs में राजनीतिक मतभेदों को लोकतंत्र पर हावी न होने देना; मनोनयन विशेष हितों के लिए हो, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।
- न्यायालय की सिफारिशों पर अमल: UTs को अधिक स्वायत्तता देना और जनादेश का सम्मान करना।