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प्रोजेक्ट सीक्योर: समुद्र से कार्बन हटाने की दिशा में पहल

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव-विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन)

संदर्भ 

ब्रिटेन सरकार ने समुद्री जल से कार्बन निष्कर्षण के लिए इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर एक पायलट परियोजना ‘प्रोजेक्ट सीक्योर (Project SeaCURE)’ शुरू की है। यह परियोजना समुद्री जल से सीधे कार्बन डाईऑक्साइड (CO₂) का निष्कर्षण करके वातावरण से कार्बन स्तर में कमी लाने की दिशा में एक नवीन एवं संभावनाशील पहल है।

क्या है प्रोजेक्ट सीक्योर (Project SeaCURE) 

  • क्या है : यह महासागर पर केंद्रित कार्बन निष्कर्षण एवं अवशोषण पर आधारित एक पायलट परियोजना है जिसे इंग्लैंड के वेमाउथ (Weymouth) में शुरू किया गया है।  
    • यह पारंपरिक कार्बन कैप्चर एवं स्टोरेज (CCS) विधियों से भिन्न है जो या तो उत्सर्जन स्रोतों पर केंद्रित होती हैं या सीधे वायुमंडल से CO₂ का निष्कर्षण करती हैं। 
  • उद्देश्य : इसका मुख्य उद्देश्य महासागर की प्राकृतिक CO₂ अवशोषण क्षमता को बढ़ाना है। हालाँकि, महासागर पहले से ही मानव-निर्मित CO₂ उत्सर्जन का लगभग 25% अवशोषित करते हैं। 
    • SeaCURE इस प्रक्रिया को तीव्र करने के लिए समुद्री जल में से घुली हुई CO₂ का निष्कर्षण करता है जिससे यह जल पुनः वायुमंडल से अधिक CO₂ अवशोषित कर सके।
  • वित्तपोषण : इसे यूनाइटेड किंगडम सरकार द्वारा वित्तपोषित किया गया है। 

परियोजना की कार्यप्रणाली 

  • समुद्री जल की पंपिंग : इंग्लिश चैनल से समुद्री जल को एक प्रसंस्करण संयंत्र में लाया जाता है।
  • जल का अम्लीकरण (Acidification) : जल को अधिक अम्लीय बनाया जाता है जिससे उसमें घुली CO₂ गैस में बदल जाती है।
  • CO₂ निष्कर्षण एवं संग्रहण : अम्लीय जल को वायुमंडल के संपर्क में लाकर CO₂ को उत्सर्जित किया जाता है और इसे जैविक अवशेषों (जैसे- नारियल के भूसे) से बने टिकाऊ फिल्टर में अवशोषित कर लिया जाता है।
  • जल की पुन: तटस्थता : उपचारित जल को पुनः क्षारीय बनाकर समुद्र में वापस कर दिया जाता है जिससे यह पुनः CO₂ अवशोषित कर सके।

चुनौतियाँ एवं सीमाएँ

  • ऊर्जा-निर्भरता : अम्लीय एवं क्षारीय तत्वों को उत्पन्न करने के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यदि यह ऊर्जा जीवाश्म स्रोतों से आए, तो यह तकनीक अपने उद्देश्य के विपरीत काम कर सकती है। 
  • समुद्री पारिस्थितिकी पर प्रभाव : CO₂ से रहित जल को समुद्र में पुनः छोड़ना समुद्री जीवों (जैसे- फाइटोप्लैंकटन एवं मसल्स) पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
    • CO₂ इन जीवों की जैव-क्रियाओं (जैसे- प्रकाश-संश्लेषण व कोशिका निर्माण) के लिए आवश्यक है।
  • महासागर अम्लीकरण से जुड़ी जटिलता : महासागर में CO₂ अवशोषण के कारण जल का pH घटता है जिससे कोरल रीफ, शंखधारी जीव एवं मरीन इकोसिस्टम पर संकट उत्पन्न होता है।

आगे की राह

SeaCURE, यू.के. सरकार के £3 मिलियन कार्बन कैप्चर प्रोग्राम के अंतर्गत आने वाली 15 परियोजनाओं में से एक है। इस परियोजना ने यह सिद्ध किया है कि महासागर केवल एक प्राकृतिक कार्बन सिंक नहीं, बल्कि एक सक्रिय जलवायु समाधान प्रणाली में रूपांतरित हो सकता है, यदि उसका वैज्ञानिक व विवेकपूर्ण दोहन किया जाए।

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