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दुर्लभ पृथ्वी परिकल्पना : जटिल जीवन की दुर्लभता

(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)

संदर्भ

केप्लर और जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) से प्राप्त हालिया आंकड़ों ने यह संकेत दिया है कि पृथ्वी के आकार वाले ग्रह ब्रह्मांड में बहुत दुर्लभ नहीं हैं। लेकिन ऐसे ग्रहों पर जटिल जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ अब भी अत्यंत दुर्लभ मानी जाती हैं। यही प्रश्न “दुर्लभ पृथ्वी परिकल्पना (Rare Earth Hypothesis)” का मूल है।

क्या है दुर्लभ पृथ्वी परिकल्पना 

  • यह परिकल्पना वर्ष 2000 में पैलियॉन्टोलॉजिस्ट पीटर वार्ड और खगोलशास्त्री डोनाल्ड ब्राउनली द्वारा प्रस्तुत की गई थी। 
  • इसका प्रमुख तर्क यह है कि सूक्ष्मजीवी जीवन (Microbial Life) ब्रह्मांड में आम हो सकता है, किंतु जटिल बहुकोशिकीय जीवन (Multicellular Life) अत्यंत दुर्लभ है।
  • यह विचार इस धारणा पर आधारित है कि किसी ग्रह पर जीवन के लिए आवश्यक अनेक कारक जैसे जल, वायुमंडल, तापमान, चुंबकीय क्षेत्र, स्थिर जलवायु, एक साथ आना अत्यंत असंभाव्य घटना है।

केप्लर और जेम्स वेब टेलीस्कोप की खोज

  • केप्लर मिशन (2009–2018) के आंकड़ों के अनुसार, आकाशगंगा (Milky Way) में कई सूर्य जैसे तारे हैं जिनके चारों ओर पृथ्वी के आकार वाले ग्रह मौजूद हैं।
  • कुछ अध्ययनों में अनुमान लगाया गया कि लगभग 20% तारे अपने रहने योग्य क्षेत्र (Habitable Zone) में पृथ्वी-जैसे ग्रहों की मेजबानी करते हैं।
  • इससे यह धारणा कमजोर हुई कि पृथ्वी जैसी स्थितियाँ बहुत ही दुर्लभ हैं। 
  • अब प्रश्न “ग्रह कहाँ है” से बदलकर “ग्रह कैसा है” पर केंद्रित हो गया है।

ग्रह की वास्तविक प्रकृति का प्रश्न

  • पृथ्वी और शुक्र (Venus) दोनों सूर्य के रहने योग्य क्षेत्र में हैं, किंतु शुक्र का घना कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल उसे जीवन के लिए असहनीय बनाता है।
  • इससे स्पष्ट होता है कि केवल दूरी पर्याप्त नहीं, वायुमंडलीय संरचना और जल की स्थायित्व क्षमता भी उतनी ही आवश्यक है।

M-Dwarf तारों और ग्रहों की चुनौती

  • M-Dwarf तारे ब्रह्मांड में सबसे आम हैं, लेकिन वे अत्यधिक अल्ट्रावायलेट विकिरण उत्सर्जित करते हैं।
  • यह विकिरण ग्रहों के वायुमंडल से जल को तोड़ देता है, जिससे झूठी ऑक्सीजन प्रधान वायुमंडल बन सकता है, जो जीवन के संकेत जैसा दिखता है, पर वास्तव में प्राकृतिक विकिरण का परिणाम होता है।
  • कुछ ग्रह, जिनके पास मजबूत चुंबकीय क्षेत्र हैं या जो तारे से दूर हैं, वे अपनी हवा को बनाए रख सकते हैं, किंतु ऐसे ग्रह बहुत कम हैं।

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की भूमिका

JWST द्वारा TRAPPIST-1 प्रणाली के ग्रहों का अध्ययन किया गया:

  • TRAPPIST-1c में घना CO₂ वायुमंडल नहीं पाया गया।
  • TRAPPIST-1b में भी पर्याप्त वायुमंडल नहीं मिला।

यह दर्शाता है कि पृथ्वी जैसा आकार होना, पृथ्वी जैसा वातावरण होने के बराबर नहीं है।

जलवायु स्थिरता और प्लेट टेक्टॉनिक्स

  • पृथ्वी पर जलवायु स्थिरता का मुख्य कारण प्लेट टेक्टॉनिक्स है।
    • यह कार्बन को आंतरिक भाग से सतह तक पुनर्चक्रित करता है।
    • यह दीर्घकालिक तापमान संतुलन बनाए रखता है।
  • लेकिन सभी ग्रहों में यह प्रक्रिया समान नहीं होती।
    • कुछ ग्रहों में एक कठोर परत होती है जो गतिशील नहीं होती है।
    • कुछ में बीच-बीच में भूवैज्ञानिक गतिविधि होती है।
  • इस पर अभी वैज्ञानिकों में सहमति नहीं है कि जटिल जीवन के लिए प्लेट टेक्टॉनिक्स आवश्यक है या नहीं।

बृहस्पति जैसे दानव ग्रहों की भूमिका

  • पहले यह माना जाता था कि बृहस्पति (Jupiter) पृथ्वी को उल्कापिंडों से बचाता है, लेकिन हालिया अध्ययनों से पता चला कि उसका प्रभाव परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
  • कुछ स्थितियों में वह खतरनाक पिंडों को मोड़ सकता है,
  • तो कभी उन्हें भीतर की ओर भेज सकता है।
  • इससे यह दावा कमजोर पड़ गया कि “जुपिटर जैसा ग्रह” किसी भी प्रणाली में जीवन के लिए आवश्यक है।

जीवन दुर्लभ नहीं, पर जटिल जीवन अब भी दुर्लभ

  • वर्तमान वैज्ञानिक समझ के अनुसार सूक्ष्मजीव जीवन शायद सामान्य है लेकिन दीर्घकालिक जटिल पारिस्थितिक तंत्र (जैसे पृथ्वी पर भूमि और जल का संयुक्त जीवन) अत्यंत दुर्लभ हो सकते हैं।
  • अर्थात, रहने योग्य क्षेत्रों में पृथ्वी के आकार के ग्रह तो बहुत मिल सकते हैं, परंतु उनमें पृथ्वी जैसे जीवन समर्थ वातावरण मिलना अब भी एक दुर्लभ संभावना है।

आगे की राह

  • भविष्य में तीन वैज्ञानिक खोजें इस परिकल्पना को चुनौती दे सकती हैं:
  1. यदि किसी शीतल, सूर्य-जैसे तारे के आसपास पृथ्वी-जैसे ग्रह पर जल चक्र वाले वायुमंडल का पता चले।
  2. यदि प्लेट टेक्टॉनिक्स जैसी स्थिर जलवायु प्रक्रियाओं के प्रमाण मिले।
  3. यदि किसी ग्रह पर जैविक (biosignatures) या तकनीकी (technosignatures) संकेत पाए जाएँ।
  4. जेम्स वेब टेलीस्कोप और आने वाली एक्सट्रीम लार्ज टेलीस्कोप्स (ELTs) इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।
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