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वन अधिनियम के तहत दंड प्रावधानों को तर्कसंगत बनाना

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (FAC) ने वन अधिनियम, 1980 के संबंध में कुछ सिफारिशें दी हैं। यह समिति वन भूमि के परिवर्तन के प्रस्तावों का मूल्यांकन करने के लिए जिम्मेदार निकाय है।
  • एफ.ए.सी. ने वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 (पूर्व में वन संरक्षण अधिनियम, 1980) के अंतर्गत लागू दंड प्रावधानों में एकरूपता व युक्तिकरण की सिफारिश की है।
  • इस कदम का उद्देश्य वन भूमि उल्लंघनों से संबंधित दंडात्मक कार्रवाइयों में एकरूपता, निष्पक्षता एवं आनुपातिकता सुनिश्चित करना है।

वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 के बारे में 

  • इस अधिनियम में वन भूमि का गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए उपयोग करने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य की गई है जिसमें शामिल हैं-
  • वनों को आरक्षित वन से मुक्त करना
  • वन भूमि का गैर-वन उपयोग करना या पट्टे पर देना
  • वृक्षों की पूर्ण कटाई
  • जब ये गतिविधियाँ पूर्व अनुमोदन के बिना की जाती हैं तो इसका उल्लंघन होता है ।

दंडात्मक प्रतिपूरक वनरोपण (CA): अवधारणा एवं विकास

परिभाषा

  • ‘दंडात्मक प्रतिपूरक वनरोपण’ में गैर-वानिकी उपयोगों जैसे कि बुनियादी ढांचे या औद्योगिक परियोजनाओं के लिए कानूनी रूप से अनिवार्य प्रतिपूरक वनरोपण के अतिरिक्त आदेश किए गए ‘पुनर्स्थापन’ या ‘वनरोपण’ गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • यह अनधिकृत वन भूमि उपयोग के कारण होने वाले पारिस्थितिक क्षति की भरपाई के लिए दंडात्मक पुनर्स्थापन उपाय के रूप में कार्य करता है।

पहले की पद्धति

  • पहले उल्लंघन किए गए वन क्षेत्र के दोगुने के बराबर दंडात्मक जुर्माना लगाया जाता था, विशेषकर तब जब कोई अन्य मौद्रिक दंड मौजूद नहीं था।
  • हालाँकि, मौद्रिक दंड और दंडात्मक शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPV) दिशानिर्देशों की शुरूआत के बाद यह प्रथा असंगत व मामला-विशिष्ट हो गई।

दंडात्मक नेट प्रेजेंट वैल्यू (NPV) का परिचय

अवधारणा

  • एन.पी.वी. वन पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा प्रदान की गई पर्यावरणीय सेवाओं के आर्थिक मूल्य को मापता है।
  • वन अधिनियम नियम 2023 के तहत उल्लंघन के लिए दंडात्मक एन.पी.वी. (मानक एन.पी.वी. से पांच गुना तक) लगाया जा सकता है।
  • यह प्रणाली सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों (2017) से उभरी है जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय जवाबदेही को मजबूत करना है।

युक्तिकरण की आवश्यकता

  • एफ.ए.सी. ने दंडात्मक प्रतिपूरक वनरोपण और दंडात्मक नेट प्रेजेंट वैल्यू के प्रावधानों के अतिव्यापन पर ध्यान दिया, जिसके कारण असंगत प्रवर्तन हुआ।
  • इसलिए इसने सभी मामलों में एकरूपता और आनुपातिकता सुनिश्चित करने के लिए दोनों उपायों को युक्तिसंगत बनाने की सिफारिश की।

एफ.ए.सी. की सिफारिशें

  • एक समान दंड संरचना : उल्लंघन किए गए वन भूमि क्षेत्र के बराबर दंडात्मक प्रतिपूरक वनरोपण का आरोपण (1:1 अनुपात) करने और दंडात्मक प्रतिपूरक वनरोपण व दंडात्मक नेट प्रेजेंट वैल्यू तंत्र के बीच संरेखण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। 
  • विस्तृत उल्लंघन रिपोर्टिंग : राज्यों को क्षेत्रीय कार्यालयों या मंत्रालय के मुख्यालयों को विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी जिसमें उल्लंघन की प्रकृति, अनुमोदन या लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारी तथा इस अधिनियम के तहत की गई कार्रवाई शामिल होगी।
  • समिति का गठन : क्षेत्रीय अधिकारियों और एफ.ए.सी. सदस्यों की एक समर्पित समिति गठित की गई है जिनका कार्य है- 
  • पिछले उल्लंघनों की जांच करना 
  • एक समान दंड संरचनाओं की सिफारिश करना
  • एक समेकित रिपोर्ट प्रस्तुत करना 
  • 2023 संशोधनों के साथ एकीकरण : ये सिफारिशें वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के अनुरूप हैं जिसमें वन परिवर्तन व दंडात्मक कार्रवाइयों के लिए सुव्यवस्थित और समेकित दिशानिर्देश प्रस्तुत किए गए थे।

आगे की राह 

  • अस्पष्टता को दूर करने तथा आनुपातिक दंड सुनिश्चित करने के लिए समान दंड संबंधी दिशा-निर्देशों को संहिताबद्ध करना
  • वास्तविक समय में वन भूमि उल्लंघनों पर नज़र रखने के लिए डिजिटल निगरानी और रिपोर्टिंग प्रणालियों को एकीकृत करना
  • एफ.ए.सी., क्षेत्रीय कार्यालयों और राज्य वन विभागों के बीच अंतर-एजेंसी समन्वय को बढ़ाना
  • उल्लंघनों का सटीक आकलन और दंड गणना सुनिश्चित करने के लिए प्रवर्तन अधिकारियों की क्षमता निर्माण

निष्कर्ष

  • एफ.ए.सी. की सिफारिशें वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 के तहत पारदर्शी, सुसंगत व वैज्ञानिक रूप से आधारित प्रवर्तन की ओर बदलाव का संकेत देती हैं।
  • दंडात्मक प्रतिपूरक वनरोपण और एन.पी.वी. प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाकर भारत विकासात्मक आवश्यकताओं को पारिस्थितिक अखंडता के साथ संतुलित करना चाहता है तथा यह सुनिश्चित करना चाहता है कि वन संरक्षण पर्यावरणीय शासन का केंद्र बना रहे।
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