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अनुच्छेद 244 (क) की प्रासंगिकता व राजनीति

(प्रारंभिक परीक्षा-भारतीय राजव्यवस्था और शासन)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : अतिसंवेदनशील वर्गों की बेहतरी के लिये गठित तंत्र एवं विधि) 

संदर्भ

हाल ही में, एक राष्ट्रीय दल के राजनेता ने असम के आदिवासी बहुल ज़िलों में लोगों के हितों की रक्षा के लिये संविधान के अनुच्छेद 244 (क) को लागू करने का वादा किया है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

  • 1950 के दशक में अविभाजित असम की जनसंख्या आबादी के कुछ वर्गों के मध्य एक अलग पहाड़ी राज्य की माँग उठी थी। 1960 में पहाड़ी क्षेत्रों के विभिन्न राजनीतिक दलों ने पृथक राज्य की माँग करते हुए ‘ऑल पार्टी हिल लीडर्स कॉन्फ्रेंस’ का गठन किया। लंबे समय तक आंदोलन करने के पश्चात् वर्ष 1972 में मेघालय को स्वतंत्र राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।
  • उल्लेखनीय है कि कार्बी ऑन्गलॉन्ग और उत्तरी कछार पहाड़ियों के राजनेता भी इस आंदोलन का हिस्सा थे। उन्हें असम में रहने या मेघालय में शामिल होने का विकल्प दिया गया था। वे वापस आ गए क्योंकि तत्कालीन सरकार ने अनुच्छेद 244 (क) सहित उन्हें अधिक शक्तियाँ प्रदान करने का वादा किया। तब से लगातार इसके कार्यान्वयन की माँग की जा रही है।
  • 1980 के दशक में कई कार्बी समूहों ने इस माँग को लेकर हिंसात्मक आंदोलन शुरू कर दिया। इसने शीघ्र ही एक सशस्त्र अलगाववादी विद्रोह का रूप ले लिया, जो पूर्ण राज्य के दर्जे की माँग कर रहा था।

वर्तमान स्थिति

  • फरवरी 2021 में गुवाहाटी में मुख्यमंत्री की उपस्थिति में एक कार्यक्रम के दौरान कार्बी ऑन्गलॉन्ग ज़िले के पाँच आतंकवादी समूहों ने औपचारिक रूप से हथियार डाल दिये। वस्तुतः यहाँ का संपूर्ण राजनीतिक समुदाय आज भी इस क्षेत्र को 'स्वायत्त राज्य' का दर्जा देने की माँग कर रहा है।
  • जनवरी में, असम के एक राजनीतिक दल तथा स्वायत्त पहाड़ी ज़िला निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि ने केंद्र को एक ज्ञापन सौंपकर अनुच्छेद 244 (क) को लागू करने की माँग की। इसके बाद फरवरी में कार्बी समूहों ने आत्मसमर्पण के बाद गृह मंत्री के समक्ष इस माँग को प्रस्तुत किया। यद्यपि अभी तक इन क्षेत्रों के लिये केवल एक विशेष विकास पैकेज का ही वादा किया गया है।

अनुच्छेद 244 ()

  • अनुच्छेद 244 (क) वर्ष 1969 में तत्कालीन सरकार द्वारा बाईसवें संशोधन की धारा 2 के माध्यम से संविधान में अंतःस्थापित किया गया था। यह असम राज्य क्षेत्र में कुछ विशेष जनजातीय क्षेत्रों को 'स्वायत्त राज्य' के निर्माण की अनुमति देता है। इसके तहत स्थानीय विधान मंडल या मंत्रिपरिषद् या दोनों के गठन का भी प्रावधान किया गया है।
  • अनुच्छेद 244 (क) आदिवासी क्षेत्रों में अधिक स्वायत्त शक्तियों के लिये उत्तरदायी है, जबकि छठी अनुसूची के तहत गठित स्वायत्त परिषद को कानून एवं व्यवस्था से संबंधित अधिकार क्षेत्र प्राप्त नहीं है।

संविधान की छठीं अनुसूची

  • संविधान की छठीं अनुसूची में अनुच्छेद 244 (2) और 275 (1) में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के जनजातिय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित विशेष उपबंध किये गए हैं, जो इस क्षेत्र में राजनीतिक स्वायत्तता व विकेंद्रीकृत शासन की अनुमति देते हैं।
  • पूर्वोत्तर के कुछ आदिवासी क्षेत्रों में इसे स्वायत्त परिषदों के माध्यम से, निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा प्रशासित व लागू किया जाता है। असम के पहाड़ी ज़िले दीमा हसाओ, कार्बी ऑन्गलॉन्ग तथा पश्चिमी कार्बी व बोडो प्रादेशिक क्षेत्र इस प्रावधान के अंतर्गत शामिल हैं।
  • छठी अनुसूची से संबंधित राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के लिये स्वशासी ज़िलों के गठन का प्रावधान किया गया है। यदि किसी स्वशासी ज़िले में भिन्न-भिन्न अनुसूचित जनजातियाँ है तो राज्यपाल, ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों को स्वशासी प्रदेशों (Autonomous Regions) में विभाजित कर सकता है।
  • राज्यपाल को जनजातीय क्षेत्रों से संबंधित स्वशासी क्षेत्रों में किसी क्षेत्र को शामिल करने तथा अपवर्जित करने की शक्ति प्राप्त है। साथ ही नए स्वशासी ज़िले के गठन, क्षेत्र में परिवर्तन, दो या अधिक स्वशासी ज़िलों या उनके भागों को मिलाकर एक स्वशासी ज़िला बनाने तथा नाम या सीमा में परिवर्तन की शक्ति भी संबंधित राज्य के राज्यपाल को दी गई है।
  • गौरतलब है कि राज्यपाल, उक्त क्षेत्रों से सम्बंधित कोई भी परिवर्तन केवल जनजातीय क्षेत्रों के लिये गठित आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही करेगा।
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