(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र तथा राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान व निकाय) |
संदर्भ
गृह मंत्रालय (MHA) ने एक राजपत्र अधिसूचना में पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान में उत्पीड़न का सामना कर रहे अल्पसंख्यकों को आव्रजन एवं विदेशी अधिनियम के तहत अभियोजन से छूट दे दी है, बशर्ते कि वे 31 दिसंबर, 2024 से पहले भारत में प्रवेश कर चुके हों।
मुख्य विवरण
- यह निर्णय नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) के कार्यान्वयन से जुड़ा है। सी.ए.ए. इन अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की नई समय सीमा 31 दिसंबर, 2014 तक की निर्धारित करता है।
- गृह मंत्रालय ने 31 दिसंबर, 2024 को या उससे पहले भारत में प्रवेश कर चुके अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान से आए अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थियों को पासपोर्ट/वीज़ा आवश्यकताओं से छूट दे दी है।
- भले ही उनके पास यात्रा दस्तावेज़ न हों या बाद में उनके दस्तावेज़ समाप्त हो गए हों। यह क़ानून में एक अतिरिक्त प्रावधान है।
- लाभार्थी : पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान एवं बांग्लादेश में उत्पीड़न का सामना कर रहे हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन व पारसी अल्पसंख्यक समुदाय।
- छूट : ऐसे व्यक्तियों को पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत ‘अवैध प्रवासी’ नहीं माना जाएगा।
- तर्क : नागरिकता प्रक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे सी.ए.ए. के अंतर्गत आने वाले समुदायों को राहत प्रदान करना।
- कानूनी समर्थन : पूर्व अधिसूचनाओं (2015 और 2016) में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को इन प्रवासियों को दीर्घकालिक वीज़ा (LTV) प्रदान करने का अधिकार दिया गया था।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019
- यह अधिनियम 31 दिसंबर, 2014 को/उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफ़गानिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है।
- हालाँकि, धर्म-विशिष्ट और कथित रूप से भेदभावपूर्ण होने के कारण इसकी आलोचना की गई है।
- इसके तहत निवास की अनिवार्यता को 11 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया है।
महत्त्व
- अपनी स्थिति के नियमितीकरण की प्रतीक्षा कर रहे प्रवासियों को कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- यह उत्पीडन का सामना कर रहे अल्पसंख्यकों के प्रति सरकार के व्यापक मानवीय दृष्टिकोण का एक हिस्सा है।
- यह दृष्टिकोण धर्मनिरपेक्षता, समानता एवं संविधान के अनुच्छेद 14 पर बहस के लिए नए द्वार खोलता है।