(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी एवं निजी स्कूलों के बीच व्यय व नामांकन में भारी असमानता मौजूद है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के 80वें दौर में आयोजित व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण (CMS) ने स्कूली शिक्षा और निजी कोचिंग पर परिवारों के औसत व्यय के राष्ट्रीय स्तर के अनुमान प्रस्तुत किए हैं।
व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण के बारे में
- इस सर्वेक्षण का प्राथमिक उद्देश्य वर्तमान शैक्षणिक वर्ष (2025-26) के दौरान स्कूली शिक्षा और निजी कोचिंग पर औसत व्यय के राष्ट्रीय स्तर के अनुमान पता करना था।
- यह सर्वेक्षण राष्ट्रीय सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा कंप्यूटर-सहायता प्राप्त व्यक्तिगत साक्षात्कार (CAPI) के माध्यम से आयोजित किया गया।
- सर्वेक्षण ने भारत भर में वर्तमान में स्कूलों में नामांकित छात्रों के लिए परिवारों के व्यय पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें सरकारी एवं गैर-सरकारी (निजी) स्कूलों के बीच तुलना की गई।
- यह सर्वेक्षण अप्रैल-जून 2025 के दौरान किया गया जिसमें 52,085 परिवारों एवं 57,742 छात्रों से डाटा एकत्र किया गया।
प्रमुख निष्कर्ष
- नामांकन में सरकारी स्कूलों का प्रभुत्व : भारत में कुल नामांकन का 55.9% सरकारी स्कूलों में है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह हिस्सेदारी 66% है जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 30.1% है। निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल में 31.9% नामांकन है।
- शिक्षा पर व्यय में असमानता:
- सरकारी स्कूलों में प्रति छात्र औसत व्यय ₹2,863 है जबकि गैर-सरकारी स्कूलों में यह ₹25,002 है जो लगभग नौ गुना अधिक है।
- शहरी क्षेत्रों में पाठ्यक्रम शुल्क पर औसत व्यय ₹15,143 है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह ₹3,979 है।
- निजी कोचिंग की प्रवृत्ति: 27% छात्र वर्तमान शैक्षणिक वर्ष में निजी कोचिंग ले रहे हैं। यह प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों (30.7%) में ग्रामीण क्षेत्रों (25.5%) की तुलना में अधिक है।
- वित्त पोषण के स्रोत: 95% छात्रों ने बताया कि उनकी शिक्षा का प्राथमिक वित्तीय स्रोत परिवार के अन्य सदस्य हैं। केवल 1.2% छात्रों ने सरकारी छात्रवृत्ति को प्राथमिक स्रोत बताया है।
- प्रमुख व्यय श्रेणियाँ:
- पाठ्यक्रम शुल्क (₹7,111) शिक्षा का सबसे बड़ा व्यय है। इसके बाद पाठ्यपुस्तकें एवं स्टेशनरी (₹2,002) हैं।
- शहरी क्षेत्रों में परिवहन, यूनिफॉर्म एवं पाठ्यपुस्तकों पर व्यय ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में काफी अधिक है।
- शुल्क भुगतान में अंतर: सरकारी स्कूलों में केवल 26.7% छात्रों ने पाठ्यक्रम शुल्क का भुगतान किया, जबकि गैर-सरकारी स्कूलों में यह 95.7% था। शहरी निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में 98% छात्रों ने पाठ्यक्रम शुल्क का भुगतान किया।
विश्लेषण
- सर्वेक्षण के निष्कर्ष भारत में शिक्षा क्षेत्र में मौजूद सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को उजागर करते हैं। सरकारी स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रमुख स्रोत हैं जो निम्न आय वाले परिवारों के लिए सस्ती शिक्षा प्रदान करते हैं।
- हालाँकि, निजी स्कूलों में व्यय का उच्च स्तर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच डिजिटल एवं आर्थिक विभाजन को दर्शाता है।
- विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में निजी कोचिंग की बढ़ती मांग शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता और प्रतियोगी परीक्षाओं के दबाव को दर्शाती है।
- यह भी उल्लेखनीय है कि सरकारी छात्रवृत्तियों पर निर्भरता कम है, जो परिवारों पर वित्तीय बोझ को बढ़ाता है। पाठ्यक्रम शुल्क और अन्य व्यय में अत्यधिक अंतर शिक्षा तक समान पहुंच की कमी को रेखांकित करता है।
प्रमुख सरकारी पहल
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: यह नीति समग्र एवं समावेशी शिक्षा पर जोर देती है जिसमें सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देना शामिल है।
- सर्व शिक्षा अभियान (SSA): प्रारंभिक शिक्षा तक सभी बच्चों की पहुंच सुनिश्चित करना।
- मिड-डे मील योजना: सरकारी स्कूलों में नामांकन और उपस्थिति बढ़ाने के लिए नि:शुल्क भोजन प्रदान करना।
- समग्र शिक्षा अभियान: स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता और समावेशिता को बढ़ाने के लिए एक एकीकृत योजना।
- छात्रवृत्ति योजनाएँ: आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए छात्रवृत्तियाँ, जैसे- राष्ट्रीय साधन-सह-मेधा छात्रवृत्ति योजना।
स्कूली शिक्षा क्षेत्र में चुनौतियाँ
- शिक्षा में असमानता: सरकारी और निजी स्कूलों के बीच व्यय एवं गुणवत्ता में भारी अंतर।
- निजी कोचिंग पर निर्भरता: यह शिक्षा प्रणाली की कमियों और प्रतियोगी दबाव को दर्शाता है, जो परिवारों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालता है।
- ग्रामीण-शहरी विभाजन: शहरी क्षेत्रों में शिक्षा पर अधिक व्यय और बेहतर सुविधाएँ ग्रामीण क्षेत्रों को पीछे छोड़ रही हैं।
- छात्रवृत्तियों की कम पहुंच: केवल 1.2% छात्र सरकारी छात्रवृत्तियों पर निर्भर हैं, जो उनकी सीमित उपलब्धता को दर्शाता है।
- शिक्षा की गुणवत्ता: सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है ताकि निजी कोचिंग पर निर्भरता कम हो।
आगे की राह
- सरकारी स्कूलों में निवेश: बुनियादी ढांचे, शिक्षक प्रशिक्षण और डिजिटल संसाधनों में निवेश बढ़ाना।
- छात्रवृत्ति योजनाओं का विस्तार: आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए छात्रवृत्तियों की पहुंच और जागरूकता बढ़ाना।
- निजी कोचिंग पर नियंत्रण: स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कर निजी कोचिंग पर निर्भरता कम करना।
- ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान: ग्रामीण स्कूलों में सुविधाओं एवं शिक्षकों की उपलब्धता बढ़ाना।
- डाटा-आधारित नीतियाँ: सर्वेक्षण जैसे डाटा का उपयोग कर शिक्षा नीतियों को अधिक प्रभावी बनाना।
- जागरूकता अभियान: परिवारों को सरकारी योजनाओं एवं छात्रवृत्तियों के बारे में जागरूक करना।