(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले विषय) |
संदर्भ
भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक गंभीर मुद्दा है, जिसे संबोधित करने के लिए यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) लागू किया गया है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को POSH अधिनियम के दायरे में लाने की माँग करने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है।
राजनीतिक दलों में यौन उत्पीड़न की स्थिति
- प्रणालीगत समस्या
- ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ (2013) और इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन (2016) के अध्ययनों के अनुसार, राजनीतिक क्षेत्रों में यौन एवं मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न व्यापक व प्रणालीगत है।
- जो प्रचार, मतदाता जागरूकता, या संगठनात्मक गतिविधियों में शामिल होने वाली ग्रामीण स्तर पर कार्यरत महिला कार्यकर्ताएँ प्राय: यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं।
- कम महिला प्रतिनिधित्व
- भारत में संसद एवं विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 14-15% है जो लैंगिक असमानता को दर्शाता है।
- निम्न भागीदारी के कारण यौन उत्पीड़न के मुद्दों को नीति-निर्माण में प्राथमिकता नहीं मिलती है।
- संरचनात्मक कमियाँ
- अधिकांश राजनीतिक दलों में यौन उत्पीड़न की शिकायतों के लिए आंतरिक शिकायत समिति (ICC) या कोई औपचारिक तंत्र नहीं है।
- POSH अधिनियम में ‘कार्यस्थल’ एवं ‘कर्मचारी’ की परिभाषा में राजनीतिक दलों को शामिल करने की अस्पष्टता के कारण यह समस्या अधिक जटिल हो जाती है।
- सांस्कृतिक एवं सामाजिक बाधाएँ
- सामाजिक रूढ़ियाँ, शर्मिंदगी एवं बदनामी का डर महिलाओं को शिकायत दर्ज करने से रोकता है।
- पुरुष-प्रधान नेतृत्व और शक्ति असंतुलन के कारण अपराधी प्राय: बिना सजा के बच जाते हैं।
- प्रभाव
- यौन उत्पीड़न महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को हतोत्साहित करता है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लैंगिक समावेशिता में कमी आती है।
- यह महिलाओं के आत्मविश्वास, सुरक्षा एवं करियर विकास को प्रभावित करता है।
सर्वोच्च न्यायालय में हालिया मामला
- याचिका का आधार : एक याचिका में माँग की गई कि POSH अधिनियम को राजनीतिक दलों पर लागू किया जाए क्योंकि राजनीति में कार्यरत महिलाओं, विशेष रूप से ग्रामीण स्तर पर, को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता हैं और उनके पास शिकायत निवारण का कोई औपचारिक तंत्र नहीं है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क
- संरचनात्मक तंत्र की कमी : याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राजनीतिक दलों में आतंरिक शिकायत समिति (ICC) का अभाव है, जिसके कारण यौन उत्पीड़न की शिकायतों का समाधान नहीं हो पाता है।
- यौन उत्पीड़न की व्यापकता : याचिका में यूएन वीमेन (2013) और इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन (2016) के अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा गया कि राजनीतिक क्षेत्रों में मनोवैज्ञानिक और यौन उत्पीड़न एक व्यवस्थित समस्या है।
- कार्यस्थल की परिभाषा का विस्तार : याचिकाकर्ताओं ने माँग की कि POSH अधिनियम में ‘कार्यस्थल’ और ‘कर्मचारी’ की परिभाषा की व्याख्या की जाए, ताकि राजनीतिक कार्य को भी इसमें शामिल किया जा सके।
- केरल उच्च न्यायालय का निर्णय : याचिकाकर्ताओं ने बताया कि केरल उच्च न्यायालय ने कहा था कि POSH अधिनियम राजनीतिक दलों पर लागू नहीं होता है जिसके कारण इस मुद्दे पर स्पष्टता की आवश्यकता है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय : प्रमुख बिंदु
- याचिका खारिज : सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह नीति निर्माण का मामला है, जो विधायिका के दायरे में आता है।
- सुझाव : मुख्य न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता महिला सांसदों (25-30) से संपर्क करें और निजी विधेयक पेश करने का प्रयास करें।
- केरल उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती : न्यायालय ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा को लेकर असहमत हैं तो उन्हें केरल उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देनी चाहिए।
- याचिका वापस लेने की अनुमति : न्यायालय ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने और कानूनी सलाह के अनुसार आगे कदम उठाने की अनुमति दी।
POSH अधिनियम के बारे में
- परिचय: यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम, 2013 को POSH अधिनियम के रूप में जाना जाता है, जिसे भारत में कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न को रोकने और उसका समाधान करने के लिए अधिनियमित किया गया है।
- उद्देश्य : महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना और यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण के लिए एक संरचित तंत्र प्रदान करना।
- लागू क्षेत्र : यह सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रों के कार्यस्थलों पर लागू होता है जिसमें संगठित व असंगठित क्षेत्र शामिल हैं।
मुख्य प्रावधान
- आंतरिक शिकायत समिति (ICC) : प्रत्येक कार्यस्थल, जहाँ 10 या अधिक कर्मचारी हैं, को यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जाँच के लिए ICC का गठन करना अनिवार्य है।
- कार्यस्थल की परिभाषा : अधिनियम में कार्यस्थल को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है जिसमें सरकारी कार्यालय, निजी कंपनियाँ, अस्पताल, स्कूल और यहाँ तक कि घरेलू कार्यस्थल भी शामिल हैं।
- कर्मचारी की परिभाषा : कर्मचारी में नियमित, अस्थायी, संविदा, स्वयंसेवक एवं प्रशिक्षु शामिल हैं।
- शिकायत प्रक्रिया : शिकायत दर्ज करने के लिए 3 महीने की समय-सीमा है जिसे परिस्थितियों के आधार पर बढ़ाया जा सकता है।
- दंड एवं निवारण : दोषी पाए जाने पर कर्मचारी को नौकरी से निकाला जा सकता है और संगठन पर जुर्माना लगाया जा सकता है यदि वह ICC गठित करने में विफल रहता है।
- गोपनीयता : शिकायतकर्ता की पहचान और जाँच प्रक्रिया को गोपनीय रखा जाता है।
चुनौतियाँ
- राजनीतिक दलों पर लागू न होना : POSH अधिनियम की परिभाषा में राजनीतिक दलों को स्पष्ट रूप से शामिल नहीं किया गया, जिसके कारण अस्पष्टता बनी हुई है।
- जवाबदेही की कमी : राजनीतिक दलों में औपचारिक शिकायत निवारण तंत्र की अनुपस्थिति के कारण शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं।
- सांस्कृतिक एवं सामाजिक बाधाएँ : यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली महिलाओं को सामाजिक कलंक और बदनामी का डर रहता है।
- जागरूकता में कमी : ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं को POSH अधिनियम और उनके अधिकारों के बारे में जानकारी की कमी है।
- महिलाओं की कम भागीदारी : राजनीति में महिलाओं की सीमित उपस्थिति इस मुद्दे को नीति निर्माण में प्राथमिकता देने में बाधा डालती है।
आगे की राह
- कानूनी स्पष्टता: POSH अधिनियम में ‘कार्यस्थल’ एवं ‘कर्मचारी’ की परिभाषा को स्पष्ट करने के लिए संशोधन की आवश्यकता है, ताकि राजनीतिक दल भी इसके दायरे में आएँ।
- राजनीतिक दलों में ICC : सभी राजनीतिक दलों को ICC गठित करने के लिए अनिवार्य करना चाहिए, ताकि यौन उत्पीड़न की शिकायतों का त्वरित निवारण हो।
- जागरूकता अभियान : ग्रामीण एवं स्थानीय स्तर की महिला कार्यकर्ताओं के लिए POSH अधिनियम और उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।
- महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाना : संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की माँग को लागू करने से लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।
- सामुदायिक समर्थन : गैर-सरकारी संगठनों और महिला संगठनों के साथ सहयोग करके यौन उत्पीड़न के खिलाफ समर्थन तंत्र विकसित करना।
- नीतिगत सुधार : विधायिका को इस मुद्दे पर निजी विधेयक या नीति निर्माण के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया है।