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चांदी : विशेषताएँ, उपयोग एवं पुनर्चक्रण

(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास व अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने चांदी पुनर्चक्रण की एक सुरक्षित एवं जैविक विधि विकसित की है।

चांदी का रासायनिक परिचय

  • रासायनिक प्रतीक : Ag (लैटिन: Argentum)
  • परमाणु संख्या : 47, परमाणु द्रव्यमान: 107.87u
  • समूह : आवर्त सारणी में समूह 11 (संक्रमण धातु), तांबा एवं सोने के साथ।
  • भौतिक गुण : चमकीली, सफेद, मुलायम, लचीली धातु; उच्च तापीय एवं विद्युतीय चालकता

वैज्ञानिक विशेषताएँ

  • चालकता : सभी धातुओं में सर्वोच्च विद्युतीय एवं तापीय चालकता के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स में व्यापक उपयोग।
  • रासायनिक स्थिरता : सामान्य परिस्थितियों में कम प्रतिक्रियाशील किंतु सल्फर यौगिकों (जैसे- H₂S) के साथ प्रतिक्रिया कर काले रंग का सिल्वर सल्फाइड (Ag₂S) बनाती है।
  • प्रकाश परावर्तन : उच्च परावर्तन क्षमता, सौर पैनलों और दर्पणों में उपयोगी।
  • जीवाणुरोधी गुण : सिल्वर आयन (Ag⁺) बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीवों के खिलाफ प्रभावी, चिकित्सा और जल शुद्धिकरण में उपयोग।

ऊर्जा क्षेत्र में वैज्ञानिक उपयोग

  • सौर पैनल : चांदी की उच्च चालकता फोटोवोल्टिक सेल में सूर्य के प्रकाश को बिजली में परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण।
    • भारत में सौर पैनल 108 गीगावाट स्वच्छ बिजली उत्पन्न करते हैं जिसमें चांदी की पतली परतें विद्युत प्रवाह संचालित करती हैं।
  • इलेक्ट्रिक वाहन : बैटरी एवं विद्युत सर्किट में चांदी का उपयोग होता है क्योंकि यह निम्न प्रतिरोध प्रदान करता है।
    • मांग : वर्ष 2025 तक सौर एवं इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चांदी की मांग में 170% वृद्धि की संभावना।

इलेक्ट्रॉनिक्स में उपयोग

  • मोबाइल एवं लैपटॉप : प्रत्येक मोबाइल में 100-200 मिग्रा. और लैपटॉप में 350 मिग्रा. चांदी।
  • वैज्ञानिक आधार : चांदी की पतली परतें सर्किट बोर्ड और कनेक्टर्स में विद्युत चालकता व स्थायित्व प्रदान करती हैं।
    • विश्व स्तर पर 7,275 मीट्रिक टन चांदी का उपयोग होता है किंतु केवल 15% पुनर्चक्रित होती है।

पुनर्चक्रण : वैज्ञानिक नवाचार

  • पारंपरिक विधियाँ : मजबूत अम्ल (जैसे- नाइट्रिक एसिड) व सायनाइड का उपयोग, जो विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करते हैं।
  • नई तकनीक : फिनलैंड के शोधकर्ताओं (अनजे ज़ुपैंस, प्रो. टिमो रेपो) द्वारा असंतृप्त फैटी एसिड (लिनोलेनिक, ओलिक एसिड) का उपयोग।
    • स्रोत : सूरजमुखी, मूंगफली, जैतून का तेल।
    • लाभ : पर्यावरण-अनुकूल, पुनर्चक्रण योग्य और कम विषाक्त।
  • शहरी खनन : इलेक्ट्रॉनिक कचरे (जैसे- पुराने मदरबोर्ड) से चांदी की पुनर्प्राप्ति।
  • वैज्ञानिक महत्व : फैटी एसिड धातुओं को अलग करने में चयनात्मकता प्रदान करते हैं, जिससे पुनर्चक्रण प्रक्रिया कुशल एवं टिकाऊ बनती है।

चाँदी से संबंधित पर्यावरणीय व वैज्ञानिक चुनौतियाँ

  • कचरे की हानि : पुनर्चक्रण के बिना इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निपटान से चांदी की क्षति होती है, जो संसाधन और पर्यावरणीय दृष्टि से हानिकारक।
  • डाटा एवं मॉडलिंग : पुनर्चक्रण प्रक्रियाओं में ए.आई. व मशीन लर्निंग का उपयोग किंतु भारत की विविध परिस्थितियों के लिए डाटा सत्यापन आवश्यक।
  • नीतिगत आवश्यकता : पुनर्चक्रण के लिए उन्नत तकनीकी बुनियादी ढाँचा एवं मानक।

निष्कर्ष

चांदी की वैज्ञानिक विशेषताएँ (चालकता, जीवाणुरोधी गुण, परावर्तन) इसे स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स में अपरिहार्य बनाती हैं। नई पुनर्चक्रण तकनीकें भारत को सतत विकास एवं संसाधन संरक्षण में अग्रणी बना सकती हैं। भारत को वैज्ञानिक अनुसंधान, नीतिगत ढांचे एवं बुनियादी ढांचे में निवेश कर चांदी के उपयोग व पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना चाहिए।

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