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हिमाचल प्रदेश में पर्यावरणीय विनाश: सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं प्रबंधन; आपदा एवं इसका प्रबंधन)

संदर्भ

हाल के वर्षों में हिमाचल प्रदेश बाढ़, भूस्खलन एवं अनियंत्रित मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरणीय आपदाओं का सामना कर रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता व्यक्त की है और स्थिति में सुधार न होने पर ‘पूरे हिमाचल प्रदेश को नक्शे से गायब होने’ की चेतावनी दी है।

हिमाचल प्रदेश में हाल की पर्यावरणीय आपदाएँ

  • बाढ़ और भूस्खलन : वर्ष 2023 और 2025 के मानसून अवधि में कुल्लू, मंडी, शिमला एवं चंबा जैसे जिलों में व्यापक तबाही देखी गई। 
    • राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र के अनुसार, 20 जून से मानसून शुरू होने के बाद से हिमाचल को 1,539 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जिसमें 94 लोगों की मृत्यु और 36 लोग लापता हैं।
  • संपत्ति का नुकसान : 1,352 घर पूर्ण या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए।
  • पर्यावरणीय असंतुलन : जलवायु परिवर्तन, वनोन्मूलन, जलविद्युत परियोजनाएँ और अनियंत्रित पर्यटन से स्थिति अधिक गंभीर हो गई है।

सर्वोच्च न्यायालय में हालिया मामला

  • मामले की पृष्ठभूमि : सर्वोच्च न्यायालय एक होटल समूह की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें जून 2025 में राज्य के ‘टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट’ द्वारा घोषित ‘ग्रीन जोन’ में निर्माण पर प्रतिबंध लगाया गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी : सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च नयायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि यह मामला केवल एक होटल के निर्माण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे हिमाचल प्रदेश के पर्यावरणीय संरक्षण का सवाल है।
  • जनहित याचिका (PIL) : न्यायालय ने इस मामले को जनहित याचिका में बदलने का निर्देश दिया और हिमाचल प्रदेश सरकार से जवाब माँगा है।
  • रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश : सरकार को 25 अगस्त, 2025 तक न्यायालय द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं पर की गई कार्रवाइयों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करना होगा।

निर्णय के मुख्य बिंदु

  • पर्यावरणीय असंतुलन : न्यायालय ने कहा कि हिमाचल में गंभीर पारिस्थितिकीय असंतुलन के कारण बाढ़ एवं भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएँ बार-बार हो रही हैं।
  • आय पर जोर के खतरे : न्यायालय की चेतावनी है कि राजस्व कमाने की अंधी दौड़ हिमाचल के प्राकृतिक संपत्ति को नष्ट कर रही है।
  • अनियंत्रित बुनियादी ढांचा विकास : चार-लेन सड़कों, सुरंगों एवं बहुमंजिला इमारतों का निर्माण पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को नजरअंदाज करके किया जा रहा है।
  • जलविद्युत परियोजनाएँ : इन परियोजनाओं के कारण जल की कमी, भूस्खलन एवं स्थानीय समुदायों के घरों में संरचनात्मक दरारें देखी गई हैं। सतलुज जैसी विशाल नदी अब नाले में बदल रही है।
  • पर्यटन का प्रभाव : पर्यटन सीजन में ट्रैफिक जाम, कचरा उत्पादन, ध्वनि प्रदूषण एवं जल संसाधनों का अति-उपयोग जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।

निर्णय का महत्व और चिंताएँ

  • महत्व
    • जागरूकता बढ़ाना: सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश हिमाचल जैसे हिमालयी राज्यों में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मील का पत्थर है।
    • नीतिगत बदलाव: यह सरकार को टिकाऊ विकास और संरक्षण पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है।
  • चिंताएँ
    • स्थानीय समुदायों पर प्रभाव: जलविद्युत परियोजनाओं और अनियंत्रित निर्माण से स्थानीय लोगों को जल व आजीविका की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
    • कचरा प्रबंधन: कचरे का निपटान, विशेष रूप से ऊँचाई वाले पर्यटक क्षेत्रों में, एक बड़ी चुनौती है।
    • पर्यावरणीय कानूनों का अभाव : वर्ष 2016 के अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को लागू करने में कमी और पुराने नगरपालिका कानून इस समस्या को अधिक बढ़ा रहे हैं।

चुनौतियाँ

  • अनियंत्रित पर्यटन : धार्मिक एवं प्राकृतिक पर्यटन से होने वाली आय महत्वपूर्ण है किंतु यह पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है।
  • अवैज्ञानिक निर्माण : पहाड़ी ढलानों को अस्थिर और असुरक्षित तरीके से काटा जा रहा है जिससे भूस्खलन एवं बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।
  • कचरा प्रबंधन : स्रोत पर कचरे का पृथक्करण और उचित निपटान की कमी, विशेष रूप से छोटे शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में, एक बड़ी समस्या है।
  • जल संसाधन : जलविद्युत परियोजनाओं के कारण नदियों में पानी की कमी और जलीय जीवन का विनाश हो रहा है।
  • नीतिगत कमियाँ : पर्यावरणीय नियमों और उनके कार्यान्वयन में कमी।

आगे की राह

  • टिकाऊ विकास : पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने के बाद ही बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को मंजूरी देना 
  • स्थानीय कचरा प्रबंधन : स्रोत पर कचरे का पृथक्करण, सामुदायिक जागरूकता और विकेन्द्रीकृत प्रसंस्करण पर जोर देना
  • पर्यटन नियंत्रण : पर्यटक सीमा का निर्धारण करना, पर्यावरण अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देना और कचरा निपटान के लिए प्रभावी प्रणाली स्थापित करना
  • कानूनी सुधार : अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को अद्यतन करना और नगरपालिका कानूनों को 2016 के नियमों के साथ संरेखित करना
  • सामुदायिक भागीदारी : स्थानीय समुदायों को संरक्षण योजनाओं में शामिल करना और उनकी आजीविका को सुरक्षित करना
  • संरक्षण उपाय : वनों की कटाई को रोकने और जैव-विविधता को संरक्षित करने के लिए कठोर नीतियाँ लागू करना

हिमाचल प्रदेश : पर्यावरणीय अवलोकन

  • पारिस्थितिकी : यह हिमालय की गोद में बसा जैव विविधता समृद्ध राज्य है। यहाँ की पारिस्थितिकी में अल्पाइन, समशीतोष्ण एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र शामिल हैं, जो विभिन्न प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करते हैं।
  • जलवायु : हिमाचल में विविधतापूर्ण जलवायु है, जिसमें ठंडे शीतकाल, गर्म ग्रीष्मकाल और मानसून के दौरान भारी वर्षा होती है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी सामान्य है।
  • वन : राज्य का लगभग 26.4% क्षेत्र वनों से आच्छादित है, जिसमें देवदार, चीड़, ओक एवं रोडोडेंड्रोन जैसे वृक्ष प्रमुख हैं।
  • मौसम : मानसून (जून-सितंबर) भूस्खलन और बाढ़ का कारण बनता है, जबकि सर्दियों में बर्फबारी पर्यटकों को आकर्षित करती है।
  • राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्य 
    • ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क : जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल
    • पिन वैली नेशनल पार्क : उच्च ऊँचाई पर स्थित हिम तेंदुए और अन्य दुर्लभ प्रजातियों वाला पार्क
    • कालाटॉप वन्यजीव अभयारण्य : डलहौजी के पास स्थित और भालू व हिरण प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध 
    • सिम्बलवारा नेशनल पार्क : सिरमौर जिले में स्थित और समृद्ध वनस्पति व जीवों के लिए प्रसिद्ध
    • इंद्रकिला नेशनल पार्क : कुल्लू में स्थित और विविध वन्यजीवों का आवास
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