(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव) |
संदर्भ
सौर ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है किंतु इसकी कुछ सीमाएँ हैं, जैसे- केवल दिन के समय काम करना, मौसम पर निर्भरता और बड़े क्षेत्र की आवश्यकता। यह इसे पूर्ण समाधान नहीं बना पातीं हैं। ऐसे में अंतरिक्ष-आधारित सौर पैनल (Space Based Solar Panel: SBSP) को भविष्य की ऊर्जा क्रांति माना जा रहा है।
अंतरिक्ष-आधारित सौर पैनल (SBSP) के बारे में
- परिभाषा: SBSP में उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा (लगभग 36,000 किमी. ऊँचाई) में तैनात किया जाता है जो सूर्य से निरंतर ऊर्जा एकत्र करते हैं और इसे माइक्रोवेव के रूप में पृथ्वी पर भेजते हैं।
- लाभ: पृथ्वी की तुलना में अंतरिक्ष में सौर विकिरण अधिक तीव्र है और यह मौसम या रात-दिन के चक्र से प्रभावित नहीं होता है।
- मुख्य विचार: उपग्रह सूर्य की ओर हमेशा उन्मुख रहते हैं जिससे लगभग निरंतर ऊर्जा उत्पादन संभव है।
SBSP की कार्यप्रणाली
- सूर्य की किरणों का संग्रह: उपग्रहों पर दर्पण जैसे रिफ्लेक्टर (हेलियोस्टैट) सूर्य की किरणों को एकत्र करते हैं।
- ऊर्जा रूपांतरण: सौर ऊर्जा को माइक्रोवेव या लेजर में परिवर्तित किया जाता है, जो पृथ्वी पर रिसीवर स्टेशनों तक भेजा जाता है।
- पृथ्वी पर बिजली उत्पादन: रिसीवर स्टेशन माइक्रोवेव को बिजली में बदलते हैं, जिसे ग्रिड में वितरित किया जाता है।
- तकनीकी आधार: यह तकनीक मौजूदा भौतिकी एवं इंजीनियरिंग सिद्धांतों पर आधारित है, जैसे- सौर फोटोवोल्टिक एवं माइक्रोवेव ट्रांसमिशन।
पृथ्वी पर ऊर्जा जरूरतों के लिए महत्व
- 24x7 बिजली उपलब्ध कराएंगे।
- मौसम और दिन-रात की समस्या नहीं होगी।
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटेगी।
- शून्य-कार्बन (Zero Carbon) ऊर्जा उपलब्ध होगी।
हालिया अध्ययन और संभावनाएँ
- किंग्स कॉलेज, लंदन के अध्ययन के अनुसार वर्ष 2050 तक यूरोप की 80% नवीकरणीय ऊर्जा SBSP से मिल सकती है।
- नासा ने भी इसके लिए कई डिजाइन विकसित किए हैं, जैसे- हेलियोस्टैट स्वार्म डिज़ाइन और प्लानर एरे डिज़ाइन।
- अंतरिक्ष में सौर विकिरण (Solar Radiation) पृथ्वी से अधिक होता है, इसलिए दक्षता भी बढ़ जाती है।
संबंधित मुख्य बिंदु
- SBSP लगातार ऊर्जा उत्पादन कर सकता है।
- यह धरती पर सौर ऊर्जा की सभी सीमाओं को पार करता है।
- इसमें दीर्घकालिक ऊर्जा संकट का समाधान बनने की क्षमता है।
SBSP की संभावना
- एक सोलर सैटेलाइट का आकार 1 किमी. से अधिक हो सकता है।
- ग्राउंड स्टेशन को उससे भी दस गुना बड़ा क्षेत्र चाहिए।
- इसे स्थापित करने के लिए सैकड़ों रॉकेट लॉन्च करने पड़ेंगे।
- लागत अभी बहुत अधिक है और वर्ष 2050 से पहले इसे व्यावहारिक बनाना मुश्किल माना जा रहा है।
- उपग्रह कक्षा में भीड़ (Orbital Congestion), ट्रांसमिशन बाधाएँ और संचालन की जटिलताएँ बड़ी चुनौतियाँ हैं।
भारत की भूमिका
इसरो के माध्यम से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अग्रणी भारत SBSP अनुसंधान में योगदान दे सकता है, जोकि विशेष रूप से इसकी बढ़ती ऊर्जा माँग को पूरा करने के लिए सहायक होगी।
SBSP संबंधी चुनौतियाँ
- अत्यधिक लागत और बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा
- अंतरिक्ष में रखरखाव की कठिनाइयाँ
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ, जैसे- माइक्रोवेव बीम का पृथ्वी पर प्रभव
- नीतिगत और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता
आगे की राह
- लॉन्च लागत घटाने के लिए नई तकनीकों का विकास
- अंतरिक्ष सहयोग (NASA, ESA, ISRO जैसी एजेंसियों) को बढ़ावा
- दीर्घकालिक निवेश और अनुसंधान पर ध्यान
- पायलट प्रोजेक्ट्स से शुरुआत कर धीरे-धीरे विस्तार