- राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है, जो स्थानीय स्वशासन निकायों जैसे पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) और शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के चुनावों के संचालन के लिए उत्तरदायी होता है।
- भारत में 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत राज्य निर्वाचन आयोगों की स्थापना का प्रावधान किया गया था।
- इसकी स्थापना की सिफारिश गाडगिल समिति ने की थी, जिससे स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को सशक्त बनाने और चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष तथा पारदर्शी बनाने का उद्देश्य था।
- हाल ही में, कर्नाटक की लेखा परीक्षा रिपोर्ट (CAG) में कहा गया कि SECs का सशक्त न होना स्थानीय निकाय चुनावों में देरी का एक प्रमुख कारण है।

संवैधानिक प्रावधान
राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission - SEC) से संबंधित संवैधानिक प्रावधान भारत के संविधान के भाग IX (पंचायती राज), भाग IX-A (नगरपालिका) और अनुच्छेद 243-K से 243-ZA तक दिए गए हैं। यह स्थानीय निकायों (पंचायतों और नगरपालिकाओं) के चुनावों को स्वतंत्र, निष्पक्ष और समय पर कराने के लिए बनाया गया है।
प्रमुख संवैधानिक प्रावधान :
- अनुच्छेद 243-K
- प्रत्येक राज्य में चुनाव कराने के लिए एक राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना का प्रावधान।
- पंचायतों के चुनाव की निगरानी, दिशा-निर्देशन और नियंत्रण राज्य निर्वाचन आयोग करेगा।
- राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं।
- राज्य निर्वाचन आयुक्त को उनके पद से केवल वैसे ही हटाया जा सकता है जैसे हाईकोर्ट के न्यायाधीश को हटाया जाता है (राज्य विधानमंडल की सिफारिश से)।
- अनुच्छेद 243-ZA
- नगरपालिकाओं के चुनाव भी राज्य निर्वाचन आयोग की देखरेख में होंगे।
- अनुच्छेद 243-K(4)
- राज्य विधानमंडल कानून बनाकर राज्य निर्वाचन आयोग के कार्य और शर्तें तय कर सकता है।
संरचना
- इसमें केवल एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है।
- केंद्र के भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और राज्यों के राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) – दोनों अलग संस्थाएँ हैं।
- ECI → संसद, राष्ट्रपति और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराता है।
- SEC → पंचायत और नगरपालिका चुनाव कराता है।
कार्य (Functions)
- पंचायत और नगरपालिका चुनावों का आयोजन।
- मतदाता सूची तैयार करना और उसे अद्यतन रखना।
- चुनाव कार्यक्रम घोषित करना और चुनाव आचार संहिता लागू करना।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना।
राज्य निर्वाचन आयोग के कार्य
राज्य निर्वाचन आयोगों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:-
- निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन – स्थानीय निकाय चुनावों में निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
- मतदाता सूची की तैयारी और संशोधन – चुनाव की सही और अद्यतन सूची बनाए रखना।
- आरक्षण व्यवस्था का निर्धारण – अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करना।
- विवाद निपटान – उम्मीदवारों की अयोग्यता सहित अन्य चुनाव संबंधी विवादों का समाधान।
- वित्तीय सिफारिशें – स्थानीय निकायों को आवंटित वित्तीय शक्तियों और संसाधनों के संबंध में सुझाव देना।
- राज्यपाल को सलाह – चुनावों के संचालन और व्यवस्थाओं से संबंधित मामलों पर सलाह प्रदान करना।
राज्य निर्वाचन आयोग से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ
स्थानीय निकाय चुनावों में देरी
- राज्य सरकारों द्वारा आरक्षण रोस्टर प्रकाशित करने में देरी के कारण चुनाव समय पर नहीं होते।
- उदाहरण: कर्नाटक में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) का चुनाव नियत समय के 3.5 साल बाद आयोजित किया गया।
नियुक्ति प्रक्रिया और स्वतंत्रता
- आयोग में सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति आयोग की स्वतंत्रता को प्रभावित करती है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना बढ़ जाती है।
प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी
- स्थानीय स्तर पर चुनावों के सुचारू संचालन में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
मतदाताओं की उदासीनता
- शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में कम मतदान प्रतिशत: उदाहरण – बेंगलुरु, चेन्नई और मुंबई में केवल 45–48% मतदान।
अस्पष्ट कानूनी व्यवस्था
- राज्य सरकारों के साथ विवाद उत्पन्न होने का मुख्य कारण कानून का स्पष्ट न होना है।
परिसीमन में सीमाएँ
- ASICS 2023 के अनुसार, 34 में से केवल 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने SEC को वार्ड परिसीमन की शक्ति प्रदान की है।
सुधार और आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ (2006)
- SECs को ECI के समान सशक्त बनाया जाना चाहिए।
- राज्य सरकारों द्वारा आयोग को आवश्यक फंड, स्टाफ और सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए।
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC) की सिफारिशें
- SEC के सदस्यों की नियुक्ति – कॉलेजियम के माध्यम से, जिसमें मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और विपक्ष के नेता शामिल हों।
- ECI और SEC के बीच समन्वय – संसाधनों का साझा उपयोग और अनुभव से सीखने हेतु संस्थागत तंत्र।
- समय पर परिसीमन – वार्डों और आरक्षण की समीक्षा प्रत्येक 10 वर्ष में अनिवार्य।
- SEC की शक्तियों का विस्तार – आरक्षण व्यवस्था और मेयर चुनावों की निगरानी।
- जन जागरूकता अभियान – मतदान प्रतिशत बढ़ाने और मतदाता साक्षरता हेतु SVEEP जैसे अभियान।
निष्कर्ष
राज्य निर्वाचन आयोगों को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के समकक्ष स्वतंत्रता और अधिकार प्रदान किए जाने चाहिए। ऐसा करने से:
- 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के उद्देश्य पूरे होंगे।
- जमीनी स्तर पर लोकतंत्र सशक्त होगा।
- स्थानीय निकाय चुनाव समय पर और निष्पक्ष रूप से संपन्न होंगे।
राज्य निर्वाचन आयोग का सशक्तिकरण न केवल चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएगा, बल्कि स्थानीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने में भी मदद करेगा।
प्रश्न :-राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) की स्थापना का प्रावधान किस संविधान संशोधन से किया गया था ?
(a) 42वाँ संशोधन (b) 61वाँ संशोधन (c) 73वाँ और 74वाँ संशोधन (d) 91वाँ संशोधन
प्रश्न :-संविधान का कौन सा अनुच्छेद पंचायत चुनावों से संबंधित राज्य निर्वाचन आयोग को शक्तियाँ देता है ?
(a) अनुच्छेद 243-K (b) अनुच्छेद 324 (c) अनुच्छेद 243-ZA (d) अनुच्छेद 280
प्रश्न :-नगरपालिकाओं के चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग की देखरेख में कराने का प्रावधान किस अनुच्छेद में है ?
(a) 243-K (b) 243-M (c) 243-ZA (d) 243-G
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