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स्टेट ऑफ़ द वर्ल्ड पापुलेशन रिपोर्ट, 2020

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं सम्बंधी मुद्दे, ग़रीबी और विकासात्मक विषय)

चर्चा में क्यों?

30 जून, 2020 को सयुंक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि (The United Nations Population Fund/UNFPA) द्वारा वैश्विक आबादी स्थिति, 2020 (State of the World Population Report) रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमें महिलाओं की आबादी में गिरावट के सम्बंध में चर्चा की गई है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • यह रिपोर्ट मुख्य रूप से तीन मुद्दों पर केंद्रित है। महिला जननांग विकृति (Female Genital Mutilation), बाल विवाह और लड़कियों के ख़िलाफ़ चरम पूर्वाग्रह।
  • रिपोर्ट के तहत पिछले 50 वर्षों में लापता हुई महिलाओं की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है। यह संख्या वर्ष 2020 में बढ़कर 14 करोड़ 26 लाख हो गई है।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रसव-पूर्व या प्रसव के बाद लिंग निर्धारण के प्रभाव के कारण लापता हुई लड़कियों को भी इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है।
  • एक विश्लेषण के अनुसार, कुल लापता लड़कियों में से लगभग दो तिहाई मामले और जन्म के समय होने वाली वाली मौत के एक तिहाई मामले लैंगिक आधार पर भेदभाव के कारण लिंग निर्धारण से जुड़े हैं।
  • विभिन्न प्रयासों के बावजूद दहेज़ प्रथा व्यापक स्तर पर विद्यमान है।
  • प्रति वर्ष जन्म की संख्या के मामले में चीन और भारत सबसे आगे हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, सरकारों द्वारा लिंग चयन के मूल कारणों से निपटने हेतु आवश्यक कदम उठाए गए हैं। भारत और वियतनाम द्वारा लोगों की सोच बदलने की दिशा में बेहतर प्रयास किये गए हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़कियों की तुलना में लड़कों को प्राथमिकता दिये जाने के कारण कुछ देशों में महिलाओं और पुरुषों के अनुपात में व्यापक स्तर पर परिवर्तन आया है। इस जनसांख्यिकी असंतुलन का विवाह प्रणालियों पर निश्चित ही प्रभाव पड़ेगा
  • साथ ही, यह भी कहा गया है कि प्रत्येक वर्ष व्यापक स्तर पर लड़कियों को ऐसी कुप्रथाओं के अधीन लाया जाता है, जो उन्हें नियमित रूप से उनके परिवार, दोस्तों और समुदायों की सहमति से भावनात्मक और शारिरिक रूप से नुकसान पहुँचाते हैं। महिलाओं की सहमति को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है।
  • रिपोर्ट में बाल-विवाह की रोकथाम के लिये भारत द्वारा किये गए सराहनीय प्रयासों की चर्चा की गई है। भारत द्वारा इस दिशा में उठाये गए कदमों के कारण दक्षिण एशिया में बाल विवाह में 50 % तक की कमी आई है। हालाँकि, वर्तमान में भी बाल विवाह के सबसे अधिक मामले इसी क्षेत्र से हैं।

भारत की स्थिति

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि लापता हुई महिलाओं की संख्या चीन और भारत में सर्वाधिक है। प्रत्येक वर्ष लापता होने वाली बच्चियों में से 90 % से अधिक भारत और चीन में होती हैं।
  • विश्व में पिछले 50 वर्षों में लापता हुई 14 करोड़ 26 लाख महिलाओं में से 58 लाख महिलाएँ भारत से हैं। साथ ही, रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2013 से 2017 के मध्य भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 4 लाख 60 हज़ार बच्चियाँ जन्म के समय ही लापता हो गईं।
  • रिपोर्ट में भारत द्वारा स्कूल में उपस्थिति पर नकद हस्तांतरण के सशर्त प्रावधान के साथ ही इस क्षेत्र में शुरू की गई ‘अपनी बेटी अपना धन’ (नकद हस्तांतरण योजना) की विशेष रूप से सराहना की गई है।
  • रिपोर्ट में वर्ष 2055 तक भारत में विवाह योग्य पुरुषों की तुलना में विवाह योग्य स्त्रियों की संख्या न्यूनतम होने की सम्भावना व्यक्त की गई है।
  • भारत में 51 % युवा महिलाएँ शिक्षित नहीं हैं तथा 47 % युवा महिलाओं को मात्र प्राथमिक शिक्षा प्राप्त हैं, जिनका विवाह 18 वर्ष तक की उम्र में हो जाता है।

महिला जननांग विकृति (Female Genital Mutilation-FGM)

  • महिला जननांग विकृति, जिसे महिलाओं का खतना भी कहा जाता है। इसमें लड़कियों के जननांग के बाहरी हिस्से को आंशिक तौर पर या पूरी तरह से काट दिया जाता है, जिसका कोई चिकित्सकीय आधार नहीं है। लड़कियों और महिलाओं को इसके गम्भीर शारीरिक और मानसिक दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं।
  • महिला जननांग विकृति मानवाधिकार हनन का एक ऐसा रूप है, जो लडकियों और महिलाओं को उनकी गरिमा से वंचित करने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य को भी खतरे में डालता है।
  • अफ्रीका के 28 देशों सहित कुछ एशियाई देशों की महिलाएँ व लडकियाँ जननांग विकृति का सर्वाधिक शिकार होती हैं। हालाँकि, अब यह प्रथा अफ्रीका और दक्षिण-पश्चिम एशिया से प्रवासियों के आने से यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में भी सर उठा रही है।

स्थिति में सुधार हेतु सुझाव

  • सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत वर्ष 2030 तक जननांग विकृति को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सयुंक्त राष्ट्र वैश्विक, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय साझीदारों से एकीकृत ढ़ंग से साथ आने का आग्रह करता है।
  • महिला जननांग विकृति, बालविवाह, और अन्य हानिकारक प्रथाओं तथा लड़कियों एवं महिलाओं के ख़िलाफ़ किये गए अत्याचारों को समाप्त करने के लिये तत्काल और त्वरित कार्यवाही की आवश्यकता है।
  • बाल अधिकारों पर अभिसमय जैसी अंतर्राष्ट्रीय संधि की पुष्टि करने वाले देशों का कर्त्तव्य है कि वे परिवार के सदस्यों, धार्मिक समुदायों, स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं, वाणिज्यिक सेवा उद्यमों या स्वयं राज्य संस्थाओं द्वारा महिलाओं के शोषण और अत्याचारों से संरक्षण प्रदान करें।
  • कई देशों द्वारा महिला सुरक्षा की दिशा में कड़े कानूनों का निर्माण किया गया है। ऐसे मामलों में केवल कानूनों का निर्माण ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उनके उचित क्रियान्वयन के साथ-साथ लोगों की सोच और व्यवहार में भी बदलाव लाना अति आवश्यक है।

निष्कर्ष

पुरुष प्रधान संरचना में महिलाओं की निरंतर घटती संख्या समाज तथा राष्ट्र के लिये एक गम्भीर समस्या है। नारी स्वयं एक मूल्यवान शक्ति है, जिसे अपने अधिकारों के लिये स्वयं आगे आना चाहिये। इस स्थिति में बदलाव के लिये प्रशासनिक नीतियों के साथ-साथ समाज के पिछड़े स्वरुप में भी बदलने की आवश्यकता है।

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