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भारत में नक्सलवाद की स्थिति

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका)

संदर्भ

गृह मंत्रालय के हालिया आँकड़े पूरे भारत में वामपंथी उग्रवाद (LWE) प्रभावित हिंसा में भारी गिरावट दर्शाते हैं जो दशकों से चले आ रहे नक्सली विद्रोह में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव है।

नक्सलवाद का उदय 

  • उत्पत्ति : नक्सलबाड़ी विद्रोह (1967, पश्चिम बंगाल) 
    • भूमि पुनर्वितरण, आदिवासी अधिकारों की माँग और माओवाद से प्रेरित राज्य-विरोधी क्रांतिकारी राजनीति की माँग।
  • प्रसार: आदिवासी बहुल ‘लाल गलियारा’ (झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश)।
  • चरम: 2000 के दशक की शुरुआत- 20 राज्यों के 223 जिलों में नक्सली सक्रिय।

नक्सलवाद के कारण

  • खनन, बाँधों, औद्योगिक परियोजनाओं के कारण आदिवासियों का भूमि अधिग्रहण और विस्थापन
  • आदिवासी क्षेत्रों में कमज़ोर शासन और गरीबी
  • वन अधिनियमों के तहत शोषण और अधिकारों का अभाव
  • सामाजिक न्याय और राज्य-विरोधी संघर्ष के लिए वैचारिक लामबंदी

नक्सलवाद में कमी के कारण

  • सुरक्षा उपाय : ऑपरेशन ग्रीन हंट जैसे समन्वित अभियान, सुरक्षा शिविरों की किलेबंदी, आधुनिक हथियार, ड्रोन
  • विकास पहल : वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में सड़क, दूरसंचार, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण
  • आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीतियाँ : पूर्व उग्रवादियों के लिए प्रोत्साहन, आजीविका योजनाएँ
  • सामुदायिक भागीदारी : स्थानीय लोगों द्वारा नक्सलवादियों से समर्थन वापसी
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति : राज्य-केंद्र समन्वय, वित्तीय और शहरी माओवादी नेटवर्क पर राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की नज़र

वर्तमान परिदृश्य

  • वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिले 223 (2008) से घटकर 45 (2023) हो गए।
  • नागरिकों एवं सुरक्षाकर्मियों की मृत्यु रिकॉर्ड निम्न स्तर पर।
  • हिंसा अब मुख्यत: बस्तर (छत्तीसगढ़) और गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) के कुछ हिस्सों तक सीमित है।

चुनौतियाँ

  • दुर्गम भूभाग वाले बचे हुए नक्सली गढ़।
  • सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ (आदिवासी भूमि, विस्थापन)।

समाधान 

  • सुरक्षा दृष्टिकोण को विकास और अधिकार-आधारित शासन के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है।
  • नक्सलवाद के स्थायी समापन और आदिवासी क्षेत्रों को मुख्यधारा के शासन में शामिल करने के लिए एक संतुलित ‘सुरक्षा, विकास एवं अधिकार’ दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिए।
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