(प्रारंभिक परीक्षा: पर्यावरणीय पारिस्थितिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
उत्तर भारत में धान की कटाई का मौसम शुरू होने के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने पराली दहन की घटनाओं पर नियंत्रण के लिए कड़े कदम उठाए हैं। पराली दहन राजधानी दिल्ली में शीतकाल के दौरान वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक है।
पराली जलाने पर CAQM का सख़्त रुख
- CAQM ने एक नया एवं कठोर आदेश जारी किया है। इसके तहत CAQM ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली के जिला कलेक्टरों, जिला मजिस्ट्रेटों व उपायुक्तों को यह अधिकार दिया है कि वे पराली दहन के मामलों में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ सीधे न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराएँ।
- 1 अक्टूबर को जारी इस निर्देश में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि यदि नोडल अधिकारी, पर्यवेक्षी अधिकारी या यहाँ तक कि थाना प्रभारी (SHO) भी प्रदूषण-रोधी उपायों को लागू करने में लापरवाह पाए गए, तो उन्हें जवाबदेह ठहराया जाएगा और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
कड़ी निगरानी और ज़िला प्रशासन पर दबाव
- CAQM ने यह कठोर निर्देश ऐसे समय दिया है जब सर्वोच्च न्यायालय ने भी पराली दहन की प्रथा पर कड़ा रुख अपनाने का आग्रह किया था।
- CAQM ने अपने आदेश में ज़िला प्रशासन और राज्य सरकारों से निरंतर एवं कड़ी निगरानी बनाए रखने की अपेक्षा दोहराई है।
पराली जलाने के मामलों में गिरावट
- पिछले वर्षों के मुक़ाबले वर्ष 2024 में पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के आँकड़ों के अनुसार, 15 सितंबर से 30 नवंबर तक चलने वाले इस कटाई के मौसम में अब तक राज्य में केवल 95 घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जबकि पहले इसी अवधि में यह संख्या 179 थी। वस्तुतः यह विगत छह वर्षों में न्यूनतम संख्या है।
पराली दहन (Stubble Burning)
पराली दहन का अर्थ खेतों में फसल अवशेष जलाने (Stubble Burning) से है। यह भारत के उत्तरी मैदानी क्षेत्रों, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धान की कटाई के बाद अवशेष को समाप्त करने के लिए किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली एक तीव्र व सस्ती विधि है। यह पर्यावरण, स्वास्थ्य एवं मृदा स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
पराली दहन का कारण
- धान एवं गेहूँ की फसल चक्र (Crop Cycle) के बीच का समय बहुत कम होता है (लगभग 2 से 3 सप्ताह) और खेत को तेजी से साफ़ करने की आवश्यकता होती है।
- मशीनीकृत कटाई (कंबाइन हार्वेस्टर) के कारण खेत में ज़्यादा अवशेष बच जाते हैं।
- अवशेषों को हाथ से हटाने या मशीनों से प्रबंधित करने की तुलना में जलाना सबसे सस्ता एवं तेज़ तरीका है।
- किसानों का मानना है कि जलाने से मिट्टी में मौजूद कीट एवं खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
पराली दहन से हानियाँ
पराली दहन के प्रभाव बहुआयामी हैं, जो पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य एवं कृषि-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं।
- पर्यावरणीय क्षति : पराली दहन से बड़ी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), मीथेन (CH4), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) और सबसे ख़तरनाक PM 2.5 तथा PM10 जैसे कण उत्सर्जित होते हैं जो गंभीर वायु प्रदूषण का करक बनते हैं।
- मृदा एवं कृषि को नुकसान
- दहन से मृदा के लिए आवश्यक पोषक तत्व (जैसे- नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, सल्फर) एवं कार्बनिक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं।
- आग से मृदा में मौजूद उपयोगी बैक्टीरिया एवं फंगस (जो मृदा को उपजाऊ बनाते हैं) नष्ट हो जाते हैं।
- कार्बनिक पदार्थ नष्ट होने से मृदा की संरचना बिगड़ जाती है, जिससे मृदा कठोर हो जाती है और जल धारण क्षमता कम हो जाती है।
- मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
- PM 2.5 जैसे सूक्ष्म कण श्वसन तंत्र में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस व फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
- धुएँ एवं धुंध (Smog) के कारण आँखों व त्वचा में गंभीर जलन होती है।
- घने धुएँ से सड़क व हवाई यात्रा के दौरान दृश्यता कम हो जाती है जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।
पराली दहन के अन्य विकल्प
- पराली दहन की समस्या का समाधान एक एकीकृत दृष्टिकोण में निहित है जिसमें मशीनरी, तकनीक व आर्थिक प्रोत्साहन शामिल हैं :
(A) इन-सीटू प्रबंधन (In-Situ Management)- खेत में ही प्रबंधन
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जीरो टिलेज तकनीक (Zero Tillage Technology) :
- हैप्पी सीडर (Happy Seeder) : यह ट्रैक्टर-चालित मशीन पराली को काटे बिना और बिना जलाए खड़ी पराली के बीच में ही गेहूँ की बुवाई कर देती है।
- सुपर सीडर (Super Seeder) : यह मशीन पराली को काटती है और मृदा के साथ मिलाकर बुवाई भी करती है।
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जैव-अपघटक (Bio-Decomposer):
- पूसा डी-कंपोजर (Pusa Decomposer) : यह एक फंगल घोल है जिसे खेत में छिड़कने पर यह 20 से 25 दिनों के भीतर पराली को खाद में बदल देता है। यह एक कम लागत वाला और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है।
(B) एक्स-सीटू प्रबंधन (Ex-Situ Management) - खेत से बाहर प्रबंधन
- उद्योगों में उपयोग : पराली को खेत से इकट्ठा करके बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों में ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
- जैव-ईंधन उत्पादन : पराली का उपयोग संपीड़ित बायो गैस (CBG) और बायो-एथेनॉल जैसे जैव-ईंधन के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
- पशु चारा एवं पैकेजिंग सामग्री : बचे हुए अवशेषों का उपयोग पशुओं के लिए चारा और पेपर या पैकेजिंग सामग्री बनाने वाली इकाइयों में कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है।