New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM

ट्रांसजेंडर कल्याण पर सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रति दिखाए गए “गंभीर उपेक्षा” (Gross Apathy) के लिए कड़ी फटकार लगाई है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश जस्टिस आशा मेनन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए ‘राष्ट्रीय समान अवसर नीति’ का मसौदा तैयार करेगी।

मामले की पृष्ठभूमि

  • यह मामला ट्रांसवुमन शिक्षिका जेन कौशिक द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है। 
  • उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में दिसंबर 2022 में एक स्कूल से जबरन इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया और बाद में गुजरात के एक स्कूल ने जुलाई 2023 में उनकी लिंग पहचान (Gender Identity) के कारण नियुक्ति रद्द कर दी।
  • अदालत ने माना कि यह घटना भेदभाव और ट्रांसजेंडर अधिकार अधिनियम, 2019 के उल्लंघन का मामला है।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

  • न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि वर्ष 2014 के ऐतिहासिक NALSA निर्णय और वर्ष 2019 के ट्रांसजेंडर (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के बावजूद, सरकारें इन प्रावधानों को लागू करने में असफल रही हैं।
  • अदालत ने कहा कि यह “अनजाने में हुई गलती नहीं बल्कि एक संरचनात्मक उपेक्षा (Systemic Neglect)” है, जो समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाती है।

निर्णय के मुख्य बिंदु

  • अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि राज्य "असमान रूप से स्थित" व्यक्तियों को भी "कानून की समान सुरक्षा" प्रदान करे।
  • भेदभाव केवल कृत्य से नहीं, बल्कि चुप्पी और निष्क्रियता से भी होता है।
  • उत्तर प्रदेश और गुजरात की सरकारें, केंद्र और शिक्षा मंत्रालय, 2019 अधिनियम के पालन में विफल रहे।
  • अदालत ने गुजरात स्कूल को दोषी ठहराते हुए जेन कौशिक को 50,000 का मुआवजा देने का आदेश दिया।
  • केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश और गुजरात; तीनों को 50,000-50,000 अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए कहा गया।

केंद्र और राज्यों को न्यायालय द्वारा निर्देश

सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत अपने व्यापक अधिकारों का प्रयोग करते हुए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए:

  • प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को अपील प्राधिकरण (Appellate Authority) नियुक्त करना होगा।
  • ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड (Welfare Boards) और ट्रांसजेंडर सुरक्षा सेल्स (Protection Cells) हर जिले में बनानी होंगी, जिनकी निगरानी जिलाधिकारी और पुलिस महानिदेशक करेंगे।
  • सभी संस्थानों में शिकायत अधिकारी (Complaint Officer) नियुक्त करना अनिवार्य होगा।
  • अगर शिकायत अधिकारी पर शिकायत हो, तो उसका निपटारा राज्य मानवाधिकार आयोग करेगा।
  • राष्ट्रीय टोल-फ्री हेल्पलाइन बनाई जाएगी ताकि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ किसी भी उल्लंघन की सूचना तुरंत दी जा सके।
  • सभी आदेशों का पालन तीन महीने के भीतर सुनिश्चित किया जाए।

सलाहकार समिति (Advisory committee) का गठन

  • अदालत ने एक उच्चस्तरीय समिति गठित की है जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति आशा मेनन करेंगी। 
  • समिति के अन्य सदस्य हैं :-
    • अक्काई पद्मशाली, ग्रेस बानू और विजयंती वसंथा मोगली (ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता)
    • सौरव मंडल, जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल
    • नित्या राजशेखर, सेंटर फॉर लॉ एंड पॉलिसी रिसर्च
    • एयर कोमोडोर (सेवानिवृत्त) डॉ. संजय शर्मा, CEO, एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ इन इंडिया
    • वरिष्ठ अधिवक्ता जयंना कोठारी, एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae)
  • पदेन (ex-officio) सदस्य :- सामाजिक न्याय, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, श्रम, कार्मिक और विधि मंत्रालयों के सचिव।
  • यह समिति छह महीने में निम्नलिखित कार्य करेगी :-
    • मॉडल समान अवसर नीति का मसौदा तैयार करेगी।
    • 2019 अधिनियम की कमियों की पहचान कर सुधार सुझाएगी।
    • कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थानों में ट्रांसजेंडर भागीदारी बढ़ाने के उपाय बताएगी।
    • लिंग पहचान परिवर्तन की प्रक्रिया को सरल और निजी बनाएगी।
    • समावेशी स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने के उपाय सुझाएगी।

राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर आयोग की आवश्यकता

  • हालिया ट्रांसजेंडर शिक्षिका के मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने प्रारंभिक जांच की थी, लेकिन रिपोर्ट में स्कूल को दोषमुक्त ठहराया गया।
  • इसके बाद याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
  • इस घटना ने यह सवाल उठाया कि क्या भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए ‘स्वतंत्र निगरानी और न्यायिक संस्था’ की आवश्यकता है, जिसे भविष्य में राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर आयोग के रूप में गठित किया जा सकता है।

चुनौतियाँ

  • समाज में पूर्वाग्रह और सामाजिक कलंक (Social Stigma) गहराई से मौजूद है।
  • अधिकांश राज्यों में नीति-स्तर पर कार्रवाई नहीं हुई है।
  • निजी संस्थानों में भेदभाव रोकने के लिए निगरानी की कमी है।
  • कानूनी जागरूकता और शिकायत तंत्र कमजोर हैं।
  • स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार में समावेशन की प्रक्रिया धीमी है।

आगे की राह

  • नीतिगत क्रियान्वयन : 2019 अधिनियम के प्रावधानों को राज्यों में प्रभावी रूप से लागू किया जाए।
  • संवेदनशीलता प्रशिक्षण : सरकारी अधिकारियों और शिक्षकों के लिए नियमित प्रशिक्षण आयोजित हों।
  • समान अवसर आयोग: ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए विशेष आयोग बनाया जाए, जो नीतियों के पालन की निगरानी करे।
  • समावेशी शिक्षा और रोजगार: हर शैक्षणिक संस्थान और कार्यालय में ट्रांसजेंडर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।
  • सामाजिक स्वीकृति: समाज में जागरूकता और सहानुभूति बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जाएं।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय केवल एक व्यक्ति के लिए न्याय नहीं, बल्कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए संवैधानिक समानता की दिशा में बड़ा कदम है। अब यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे इस समुदाय को “दया या प्रतीक” नहीं, बल्कि समान अधिकारों वाले नागरिक के रूप में देखें। यदि अदालत के निर्देशों को पूरी गंभीरता से लागू किया गया, तो यह निर्णय भारत को सच्चे अर्थों में समावेशी लोकतंत्र की ओर ले जाएगा।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR