New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM

वैश्विक अर्थव्यवस्था में सतत् संवृद्धि

(प्रारंभिक परीक्षा - सतत् विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 4 : समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

संदर्भ

संवृद्धि से आशय किसी एक निश्चित समय में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि से है। वर्तमान में आर्थिक संवृद्धि को वापस लाने के लिये विश्व को अब अपने विकास मॉडल को विभिन्न आयामों से देखने की आवश्यकता है।

संवृद्धि का व्यापक रूप

वास्तव में संवृद्धि के अधिक व्यापक रूप को ही विकास कहा जाता है, जहाँ पर आर्थिक क्रियाएँ व्यवस्थित और संतुलित हों तथा सभी की पहुँच संसाधनों तक समान रूप से हो। किंतु विकास की अंधी दौड़ में असमानता का जन्म, कई आर्थिक एवं सामाजिक चुनौतियों को खड़ा कर देता है, जिसका भुगतान आगामी पीढ़ी को करना पड़ सकता है।

सतत् विकास

सतत् विकास शब्द का प्रयोग पहली बार वर्ष 1980 में किया गया, जब विकास को बनाए रखने के लिये तीन संगठन आई.यू.सी.एन, डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ, यू.एन.ई.पी. वैश्विक संरक्षण रणनीति तैयार कर रहे थे। इस शब्द को वर्ष 1987 में वैश्विक पर्यावरण एवं विकास संगठन ने अपने श्वेत पत्र ‘अवर कामन फ्यूचर’ में परिभाषित किया था।

सतत् विकास की अवधारणा

  • सतत् विकास का तात्पर्य यह है कि भावी पीढ़ी की विकास आवश्यकताओं से बिना समझौता किये हुए वर्तमान पीढ़ी की विकास आवश्यकताओं को पूरा करते रहना।
  • इसके बारे में जहाँ सर्वप्रथम चर्चा की गई उसे ‘ब्रंटलैंड रिपोर्ट’ नाम से भी जाना जाता है।
  • वर्ष 1992 में इस धारणा के आलोक में पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन में ‘एजेंडा 21’ तैयार किया गया था, जो 21वीं शताब्दी में सतत् विकास के लिये उठाया गया पहला कदम था।
  • सतत् विकास के इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु SDG ‘एजेंडा 2030’ सेट किया गया है।

वैश्विक संवृद्धि पर विश्लेषण

  • कोविड -19 महामारी के दौरान लगभग सभी को यह एहसास हो गया कि हम प्रकृति का एक अंश हैं और जहाँ हम रहते हैं उस पारितंत्र को सुरक्षित रखने पर हमें ज़ोर देना होगा।
  • वैश्विक जी.डी.पी. के संकुचन का अनुमान वर्ष 2020 में 4% से 8% तक के बीच लगाया गया है तथा विश्व आर्थिक मंच का आकलन है कि इस महामारी की वजह से विश्व को लगभग 8 ट्रिलियन से 15.8 ट्रिलियन का नुकसान उठाना पड़ा है। इस महामारी से निपटने के लिये लगभग 22 बिलियन से 30 बिलियन तक की राशि ही खर्च की गई है। यह ध्यान देने योग्य है कि खर्च में कमी के कारण लोगों को अधिक समस्या का सामना करना पड़ा है।
  • उल्लेखनीय है कि बिना प्राकृतिक संसाधनों के अर्थव्यवस्था का सतत् विकास नहीं किया जा सकता। वैश्विक अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि वन्यजीवों की संख्या में लगातार कमी हो रही है, यह खाद्य श्रृंखला के लिये खतरा है। इस दुष्चक्र से वनस्पतियों एवं पशु संसाधनों पर निर्भर उद्योग प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होंगे।
  • ध्यातव्य है कि जन घनत्व, जैव विविधता व पशु रोग एक दूसरे से सम्बंधित हैं। यह बात चिंताजनक है कि भारत विश्व में ‘पशुजन्य तथा संक्रामक रोगों’ के नए केंद्र के रूप में उभर रहा है।
  • वैश्विक जोखिम ‘रिपोर्ट 2021’ के अनुसार पाँच उच्च जोखिम उत्पन्न होने का कारण जलवायु परिवर्तन है, अर्थात नए रोग और संक्रमित बीमारियों की वजह भी जलवायु परिवर्तन है।
  • गौरतलब है कि हमें अपने आर्थिक विकास के मॉडल और मत को बदलना होगा। ‘स्विस री इंस्टीटूट’ ने ‘जैवविविधता एवं पारितंत्र सेवा इंडेक्स’ को जारी किया, जिसमें भारत सहित विश्व के 20% देशों का परितंत्र काफी नाज़ुक स्थिति में है। ध्यातव्य है कि वैश्विक जी.डी.पी. का लगभग 55% भाग ‘पारितंत्र और जैवविविधता’ पर निर्भर करता है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X