(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम; पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
कॉप-30 (COP-30) सम्मेलन के आयोजन से पहले ‘द बाकू टू बेलेम रोडमैप टू 1.3T’ रिपोर्ट जारी की गई है जो यह स्पष्ट करती है कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिल रही है।
जलवायु वित्त की पृष्ठभूमि
- वर्ष 2020 से 2025 के बीच विकसित देशों ने हर वर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने का वादा किया था।
- पेरिस समझौते के अनुसार, इस राशि की समीक्षा हर पांच वर्ष में कर उसे बढ़ाना अनिवार्य है।
- किंतु COP-29 (बाकू, अज़रबैजान) में विकसित देशों ने केवल वर्ष 2035 से 300 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष देने की सहमति दी है जिससे विकासशील देश असंतुष्ट रहे।
- इसी असंतोष को दूर करने के लिए COP-29 और COP-30 की अध्यक्षता (अज़रबैजान व ब्राज़ील) में संयुक्त रूप से यह रिपोर्ट तैयार करवाई गयी।
रिपोर्ट की मुख्य बातें
- रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि विकसित देश 2035 तक कुल 1.3 ट्रिलियन डॉलर जुटाने का मार्ग तैयार करें।
- रिपोर्ट यह भी स्वीकार करती है कि 2035 तक विकासशील देशों की वार्षिक जलवायु और प्रकृति-संबंधी वित्तीय आवश्यकता लगभग 3.2 ट्रिलियन डॉलर होगी।
- यह रिपोर्ट पाँच प्रमुख वित्तीय सुधार क्षेत्रों अर्थात ‘5R तंत्र’ की सिफारिश करती है जिनके माध्यम से यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
5R तंत्र
- पुनर्पूर्ति (Replenishing): विकसित देशों को अनुदान (Grants) और रियायती वित्त (Concessional Finance) की आपूर्ति में वृद्धि करनी चाहिए।
- पुनर्संतुलन (Rebalancing): ऋणदाता देशों, IMF और बहुपक्षीय विकास बैंकों को मिलकर विकासशील देशों पर पड़े अत्यधिक ऋण बोझ को कम करना चाहिए।
- पुनर्चैनलीकरण (Rechanneling): बहुपक्षीय विकास बैंक (MDBs) और विकास वित्त संस्थानों को जोखिम शमन (Risk Mitigation) व विदेशी मुद्रा हेजिंग जैसे वित्तीय उपकरणों की पहुँच व गुणवत्ता बढ़ानी चाहिए।
- नवीनीकरण (Revamping): सरकारों को अपने वित्तीय ढांचे, योजना व बजटिंग में जलवायु लक्ष्यों, प्रकृति संरक्षण एवं न्यायसंगत संक्रमण को समाहित करना चाहिए।
- पुनर्संरचना (Reshaping): वित्तीय संस्थानों की संरचनाओं में सुधार कर अधिक पूंजी प्रवाह सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि निजी व सार्वजनिक दोनों निवेश बढ़ सकें।
आगे की राह : सुझाव
- रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए कार्बन टैक्स, संपत्ति कर, कॉर्पोरेट टैक्स, एविएशन टैक्स और लग्जरी वस्तुओं पर कर जैसे नए उपाय अपनाए जा सकते हैं।
- इसके साथ ही विकसित देशों को अपने बजट से प्रत्यक्ष योगदान (Direct Budget Contribution) भी करना चाहिए।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि क्रॉस-बॉर्डर प्राइवेट फाइनेंस यानी निजी क्षेत्र का निवेश लगभग 650 बिलियन डॉलर का योगदान दे सकता है।
निष्कर्ष
‘द बाकू टू बेलेम रोडमैप टू 1.3T’ रिपोर्ट स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक संघर्ष में वित्तीय असमानता सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। यदि विकसित देश अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी निभाते हुए स्पष्ट वित्तीय रोडमैप तैयार करें, तो वर्ष 2035 तक जलवायु वित्त में संतुलन लाया जा सकता है और विकासशील देशों की स्थायी विकास यात्रा को मजबूत आधार मिल सकता है।