(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय) |
संदर्भ
वर्तमान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की तीव्र प्रगति के बीच भारत फरवरी 2026 में ए.आई. इम्पैक्ट शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। इस अवसर पर भारत के पास कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर एक अधिक समावेशी, नैतिक एवं संदर्भ-संवेदनशील वैश्विक विमर्श को आकार देने का अवसर है।
वैश्विक ए.आई. से संबंधित प्रमुख मुद्दे
- तकनीकी दिग्गजों का प्रभुत्व : ए.आई. पारिस्थितिकी तंत्र पर कुछ वैश्विक हितधारकों (विशेषकर अमेरिका एवं चीन) का अत्यधिक नियंत्रण है जो विचार और अनुप्रयोग में विविधता को सीमित करता है।
- नैतिक चिंताएँ :
- ए.आई. एल्गोरिदम में पूर्वाग्रह
- भेदभावपूर्ण परिणाम
- पारदर्शिता एवं जवाबदेही का अभाव
- गोपनीयता व लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए खतरा
- प्रतिनिधित्व का अभाव : भारत सहित अधिकांश विकासशील देशों का वैश्विक ए.आई. प्रशासन एवं मानक-निर्धारण मंचों पर कम प्रतिनिधित्व है।
भारत की विशिष्ट स्थिति
- लोकतांत्रिक और नैतिक आधार : भारत एक ऐसे ए.आई. मॉडल का समर्थन कर सकता है जो मानवाधिकारों, लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करता हो।
- विविध डाटा पारिस्थितिकी तंत्र : भारत की भाषाई, सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक विविधता ऐसे ए.आई. मॉडल को प्रशिक्षित करने में मदद कर सकती है जो अधिक समावेशी व प्रतिनिधित्वपूर्ण हों।
- डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) : आधार, एकीकृत भगतन प्रणाली (UPI) और ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) जैसी पहल जनहित के लिए मापनीय, खुली पहुँच वाली डिजिटल प्रणालियाँ बनाने की भारत की क्षमता को प्रदर्शित करती हैं।
भारत के लिए अवसर
- मानक-निर्धारण में अग्रणी भूमिका : जी-20, ब्रिक्स एवं संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर समावेशिता, निष्पक्षता व स्थिरता पर केंद्रित ए.आई. सिद्धांतों को बढ़ावा देना
- घरेलू ढाँचों को मज़बूत करना : मज़बूत डाटा सुरक्षा, एल्गोरिथम पारदर्शिता और ए.आई. जवाबदेही कानून लागू करना
- नैतिक नवाचार को प्रोत्साहित करना : संदर्भ-विशिष्ट, कम संसाधन वाले ए.आई. उपकरण (जैसे- कृषि, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा) बनाने वाले स्टार्टअप और अनुसंधान संस्थानों का समर्थन करना
- डिजिटल विभाजन को पाटना : ग्रामीण एवं हाशिए पर स्थित समुदायों के लिए ए.आई. तकनीकों तक समान पहुँच सुनिश्चित करना
- वैश्विक दक्षिण को अग्रिम पंक्ति में लाना : पहले शिखर सम्मेलन में वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधित्व सीमित था। वैश्विक दक्षिण के एक नेतृत्वकर्ता के रूप में भारत को यथासंभव व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत के पास जनसांख्यिकीय लाभ, डिजिटल अनुभव एवं नैतिक नेतृत्व है जिससे ए.आई. चर्चा को ‘जनहित के लिए ए.आई.’ की ओर मोड़ा जा सकता है। भारत को नैतिक, समावेशी और मानव-केंद्रित ए.आई. प्रणालियों के निर्माण एवं विनियमन के लिए निर्णायक रूप से कार्य करना चाहिए।