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बंगाल के प्रवासी श्रमिकों का मुद्दा : मानवीय एवं संवैधानिक चुनौती

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

कोलकाता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के बड़कुल (बीरभूम) के एक परिवार के साथ हुई घटना पर कड़ी टिप्पणी की। एक महिला, उनके पति और आठ वर्षीय पुत्र को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लेने के बाद उन्हें बांग्लादेश की सीमा में धकेल दिया (Push Back)। यह मामला न केवल संवैधानिक अधिकारों बल्कि मानवीय मूल्यों को भी चुनौती देता है।

हालिया मुद्दा 

  • यह मामला भारतीय नागरिकों को अवैध रूप से बांग्लादेश में धकेलने (Push Back) से जुड़ा है।
  • कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष आए इस मामले में महिला 8 महीने की गर्भवती हैं।
  • उन्हें व उनके परिवार को दिल्ली में पकड़ा गया और बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के बांग्लादेश में भेज दिया गया।
  • बांग्लादेश में उन्हें ‘गैरकानूनी प्रवेश’ के आरोप में जेल में डाल दिया गया।

कारण

  • हाल के महीनों में दिल्ली, हरियाणा, ओडिशा आदि राज्यों में बंगाली भाषी प्रवासी मजदूरों पर अवैध प्रवासी होने के आरोप बढ़े हैं।
  • नागरिकता एवं पहचान से जुड़े विवाद (NRC, CAA की राजनीतिक बहस) ने वातावरण संवेदनशील बना दिया है।
  • राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के बीच तालमेल की कमी है।
  • प्रवासी मजदूरों की पहचान और दस्तावेजों की कमी के चलते मुद्दा समस्या ग्रस्त होता जा रहा है।

FRRO की भूमिका

FRRO (Foreigners Regional Registration Office) दिल्ली ने 2 मई, 2025 को गृह मंत्रालय से प्राप्त निर्देशों के तहत ‘अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों’ की पहचान कर उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया अपनाई।

  • इस प्रक्रिया में कई बार मैन्युअल पहचान और त्वरित कार्रवाई की जाती है।
  • कुछ भारतीय नागरिकों को भी इसी प्रक्रिया में शामिल करने का आरोप है।
  • कानूनी नोटिस, सुनवाई एवं नागरिकता सत्यापन की प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ।

कोलकाता उच्च न्यायालय का हालिया निर्णय

  • उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने कहा कि यह मामला जीवन और स्वतंत्रता के मूल अधिकार (अनुच्छेद 21) से जुड़ा है।
  • केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया कि वह शपथपत्र देकर बताए कि किन स्थानों से ऐसे लोगों को ‘पुश बैक’ किया गया।
  • न्यायालय ने कहा कि जब तक तथ्य स्पष्ट नहीं होते हैं, क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) पर फैसला नहीं दिया जा सकता है।
  • न्यायालय ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र से विस्तृत जवाब मांगा है।

प्रभाव

  • यह मामला प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा, नागरिकता एवं मानवाधिकार पर बड़ा सवाल उठाता है।
  • सामाजिक और भाषायी तनाव बढ़ सकता है।
  • इससे राज्यों और केंद्र के बीच राजनीतिक टकराव गहरा सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यह भारत-बांग्लादेश संबंधों पर प्रभाव डाल सकता है।

पश्चिम बंगाल सरकार की पहल

  • मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘श्रमश्री योजना’ की घोषणा की, इसके तहत लौटे प्रवासी मजदूरों को 5,000 मासिक भत्ता देने का प्रावधान है।
  • पश्चिम बंगाल प्रवासी कल्याण बोर्ड (Migrant Welfare Board) सक्रिय हुआ और प्रभावित परिवारों को कानूनी मदद दी।
  • सरकार ने केंद्र से ऐसे ‘पुश बैक’ मामलों की सूची और उनकी वैधता पर स्पष्टीकरण मांगा है।
  • भाषायी हिंसा और प्रवासी मजदूरों पर हमलों की घटनाओं पर राजनीतिक स्तर पर विरोध दर्ज कराया है।

चुनौतियाँ

  • वास्तविक भारतीय नागरिक और अवैध प्रवासी की पहचान में कठिनाई
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण और ‘भाषायी आतंक’ (Linguistic Terror) का खतरा
  • न्यायिक प्रक्रिया लंबी और समय लेने वाली होने से परिवार का पीड़ित रहना 
  • राज्यों एवं केंद्र के बीच समन्वय की कमी
  • भारत-बांग्लादेश सीमा प्रबंधन की जटिलता

आगे की राह

  • निर्दोष भारतीय नागरिकों को गलत तरीके से विदेश भेजने से बचने के लिए नागरिकता सत्यापन की प्रक्रिया पारदर्शी एवं त्वरित करना 
  • केंद्र एवं राज्य के बीच सहयोग तंत्र को मजबूत करना
  • प्रवासी मजदूरों के लिए कानूनी सहायता और दस्तावेज़ सुविधा केंद्र स्थापित करना
  • मानवाधिकारों का सम्मान और अनुच्छेद 21 (जीवन एवं स्वतंत्रता का अधिकार) का पालन सुनिश्चित करना
  • बांग्लादेश के साथ राजनयिक वार्ता कर फंसे नागरिकों की शीघ्र वापसी सुनिश्चित करना
  • भाषायी एवं सांस्कृतिक विविधता के सम्मान हेतु समावेशी नीतियाँ बनाना
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