(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में हाल ही में ‘हो’ जनजाति के आदिवासियों ने पारंपरिक स्वशासन प्रणाली ‘मंकी-मुंडा’ व्यवस्था में प्रशासनिक हस्तक्षेप के आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया। यह विवाद एक शताब्दी पुरानी स्वशासन व्यवस्था और आधुनिक प्रशासनिक ढांचे के बीच संतुलन को चुनौती देता है।
हालिया मुद्दा
- 9 सितंबर को पश्चिम सिंहभूम जिले में ‘हो’ जनजाति के लोगों ने जिला उपायुक्त (DC) के खिलाफ प्रदर्शन किया।
- उनका आरोप था कि प्रशासन गांव के पारंपरिक मुखिया (मुंडा) को हटाकर उनकी व्यवस्था में हस्तक्षेप कर रहा है।
- हालाँकि प्रशासन ने इसे अफवाह बताया और स्पष्ट किया कि मंकी एवं मुंडा आज भी राजस्व प्रणाली का हिस्सा हैं।
- हालाँकि, आदिवासियों में यह डर है कि उनकी स्वायत्तता एवं पारंपरिक व्यवस्था खतरे में है।
कोल्हान की मंकी-मुंडा व्यवस्था के बारे में
- यह व्यवस्था ‘हो’ जनजाति की पारंपरिक विकेंद्रित शासन प्रणाली है।
- मुंडा : हर गांव का मुखिया होता है जो सामाजिक व राजनीतिक विवादों का निपटारा करता है।
- मंकी : 8-15 गांवों का प्रमुख होता है जो पिर (गांवों के समूह) का नेतृत्व करता है।
- यह प्रणाली पूरी तरह आंतरिक और स्वशासी थी, इसमें बाहरी कर वसूलने या जमीन के मामलों की जिम्मेदारी नहीं होती थी।
ब्रिटिश आगमन और बदलाव
- वर्ष 1765 में ईस्ट इंडिया कंपनी को दीवानी अधिकार मिले और वर्ष 1793 में स्थायी बंदोबस्त लागू हुआ।
- जमींदारों द्वारा ‘हो’ भूमि पर कब्जा शुरू हुआ, जिससे आदिवासी विद्रोह (1821-22, 1831-32) हुए।
- कई असफल प्रयासों के बाद ब्रिटिशों ने समझौता कर मंकी-मुंडा व्यवस्था को औपचारिक मान्यता दी।
विल्किंसन नियम और प्रभाव
- वर्ष 1833 में कैप्टन थॉमस विल्किंसन ने 31 नियम बनाए जिन्हें ‘विल्किंसन रूल्स’ कहा जाता है।
- इस नियमावली ने मंकी एवं मुंडा को ब्रिटिश प्रशासन से जोड़ दिया और कोल्हान को ब्रिटिश भारत में एकीकृत किया।
- इससे बाहरी लोगों (दिकू) का आगमन बढ़ा और निजी संपत्ति का विचार जनजातीय जीवन में आया।
स्वतंत्रता के बाद स्थिति
- वर्ष 1947 के बाद कोल्हान गवर्नमेंट एस्टेट समाप्त कर दिया गया, लेकिन विल्किंसन नियम लागू रहे।
- वर्ष 2000 में पटना उच्च न्यायालय ने इन्हें कानूनी रूप से बाध्यकारी न मानते हुए प्रथागत कानून के रूप में जारी रखने की अनुमति दी।
- वर्ष 2021 में झारखंड सरकार ने पारंपरिक न्याय पंचायतों को राजस्व व भूमि विवादों के समाधान में भूमिका दी।
वर्तमान विवाद
- शिकायतें आईं कि कुछ मुंडा गैर-परंपरागत जातियों को अन्य आजीविकाओं में रोकते हैं और उनकी अनुपस्थिति से लोगों को सरकारी दस्तावेज़ नहीं मिल पाते हैं।
- प्रशासन ने 9 बिंदुओं की गाइडलाइन जारी कर मुंडा-मंकी की जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया। हालांकि, अफवाह फैलने से विरोध प्रदर्शन हुआ।
प्रमुख चुनौतियाँ
- 1,850 पदों में से 200 पद खाली हैं, जिन्हें ग्राम सभाओं की मदद से भरा जा रहा है।
- युवाओं की मांग है कि व्यवस्था में सुधार हो और वंशानुगत प्रणाली समाप्त कर योग्य व शिक्षित लोगों को अवसर मिले।
- कई पारंपरिक मुखिया शिक्षित नहीं होने के कारण आधुनिक दस्तावेजी प्रशासनिक कार्य समझने में कठिनाई महसूस करते हैं।
आगे की राह
- मंकी-मुंडा व्यवस्था को सुरक्षित रखना आवश्यक है क्योंकि यह जनजातीय पहचान और स्वशासन की धरोहर है।
- हालाँकि, इसे 21वीं सदी के लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप सुधारना भी जरूरी है।
- पारंपरिक नेताओं को प्रशासनिक प्रशिक्षण दिया जाए, पारदर्शिता बढ़ाई जाए और युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।