(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की संरचना, संगठन व कार्य- सरकार के मंत्रालय एवं विभाग, प्रभावक समूह तथा औपचारिक/अनौपचारिक संघ एवं शासन प्रणाली में उनकी भूमिका) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश ने हाल ही में कहा कि ‘मानहानि को अपराधमुक्त करने का सही समय आ गया है’। इसके बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने पर बहस फिर से शुरू हो गई है।
क्या है मानहानि वाद
- मानहानि वाद किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ झूठे एवं नुकसानदायक बयान को लेकर किया गया (कानूनी) दावा है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है।
- यह वाद तब दायर होता है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर गलत सूचना प्रकाशित करता है, जिससे दूसरे की प्रतिष्ठा या वित्त को नुकसान होता है।
- कई लोकतंत्रों (जैसे- यू.के., यू.एस.ए.) ने मानहानि को अपराधमुक्त कर दिया है और इसे केवल एक नागरिक दायित्व के रूप में माना है।
भारत में विधिक प्रावधान
- भारत में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 499 के तहत मानहानि को परिभाषित किया गया है।
- धारा 500 के तहत इसके लिए दंड का प्रावधान है जिसमें जुर्माना, कारावास या दोनों शामिल हो सकते हैं।
- मानहानि नागरिक अपराध (अपकृत्य) एवं आपराधिक अपराध (2 वर्ष तक के कारावास से दंडनीय) दोनों है।
न्यायिक दृष्टिकोण
- सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ मामले में 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला था कि आपराधिक मानहानि कानून संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर एक ‘उचित प्रतिबंध’ है।
- इस संदर्भ में व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की रक्षा की आवश्यकता का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मानहानि को बरकरार रखा था।
- हाल के महीनों में सर्वोच्च न्यायालय की विभिन्न पीठों ने आपराधिक मानहानि के मामलों में समन पर रोक लगाई है।
- इमरान प्रतापगढ़ी मामले में मार्च 2025 के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि आपराधिक रूप से मानहानिकारक कहे जाने वाले शब्दों या कृत्यों का तर्कसंगत, दृढ़-चित्त, दृढ़ एवं साहसी व्यक्तियों के मानकों पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
न्यायिक चिंता
- आपराधिक मानहानि के मामलों का प्रयोग प्राय: पत्रकारों, कार्यकर्ताओं एवं राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ उत्पीड़न के एक साधन के रूप में किया जाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने निजी व्यक्तियों एवं राजनीतिक दलों द्वारा बदला लेने के लिए आपराधिक मानहानि कानून के बढ़ते प्रयोग पर अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए इसे ‘अपराधमुक्त’ करने की आवश्यकता पर बल दिया।
आगे की राह
- आपराधिक दंड के बजाय नागरिक उपचार (हर्जाना, माफ़ी) अपनाने पर बल दिया जाना चाहिए।
- मानहानि प्रावधानों के दुरुपयोग के विरुद्ध सुरक्षा उपाय लागू किए जाने की आवश्यकता है।
- स्व-नियमन एवं ज़िम्मेदार पत्रकारिता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
मानहानि को अपराधमुक्त करने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मज़बूत होने के साथ ही कानूनी उत्पीड़न कम हो सकता है और भारत वैश्विक लोकतांत्रिक मानकों के अनुरूप हो सकता है। हालाँकि, नागरिक कानून के माध्यम से व्यक्ति की प्रतिष्ठा की रक्षा पर भी बल दिया जाना चाहिए।