(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।) |
संदर्भ
हाल ही में मुंबई में कबूतरखानों को लेकर एक विवाद उत्पन्न हुआ है, जो मानव स्वास्थ्य, धार्मिक परंपराओं और संवैधानिक अधिकारों के बीच टकराव को दर्शाता है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट किया है कि उसने कबूतरखानों को बंद करने का कोई आदेश नहीं दिया, लेकिन मानव स्वास्थ्य को सर्वोपरि माना है।
भारत में कबूतरखानों की स्थिति
- कबूतरखाने (कबूतरों को दाना डालने के स्थान) भारत के कई शहरों में, विशेष रूप से मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे महानगरों में पाए जाते हैं।
- ये स्थान पारंपरिक रूप से जैन, हिंदू और अन्य समुदायों द्वारा कबूतरों को दाना डालने के लिए उपयोग किए जाते हैं, जो दया और जीव रक्षा की भावना को दर्शाते हैं।
- मुंबई में 51 कबूतरखाने हैं, जिनमें दादर का 92 वर्ष पुराना कबूतरखाना सबसे प्रसिद्ध है।
- हाल के वर्षों में, इन स्थानों पर कबूतरों की बढ़ती संख्या और उनकी बीट से उत्पन्न होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं ने स्थानीय प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया।
वर्तमान मुद्दा क्या है
- मुंबई में कबूतरखानों को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब बृहन्मुंबई नगर निगम (बी.एम.सी.) ने इन्हें बंद करने और सार्वजनिक स्थानों पर कबूतरों को दाना डालने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया।
- बी.एम.सी. का तर्क है कि कबूतरों की भीड़ और उनकी बीट से मानव स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है, विशेष रूप से बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए।
- कबूतरों की बीट और पंख अस्थमा, हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस और फेफड़ों में फाइब्रोसिस जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं, जिनका कोई इलाज नहीं है।
- इस निर्णय के खिलाफ पशु प्रेमी और जैन समुदाय के लोगों ने याचिकाएं दायर कीं, जिनका तर्क था कि कबूतरों को दाना डालना उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है।
- 6 जुलाई, 2025 को दादर कबूतरखाने में जैन समुदाय के सैकड़ों लोगों ने बी.एम.सी. द्वारा लगाए गए तिरपाल को हटाकर विरोध प्रदर्शन किया।
- महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस "अचानक" बंद को अनुचित बताया और बी.एम.सी. से नियंत्रित दाना डालने की व्यवस्था करने को कहा।
बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय
- 8 अगस्त, 2025 को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसने कबूतरखानों को बंद करने का कोई आदेश नहीं दिया।
- कोर्ट ने कहा कि बीएमसी का निर्णय, जिसे याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी थी, सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में लिया गया था, और कोर्ट ने केवल अंतरिम राहत देने से इनकार किया था। कोर्ट ने निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया:
- मानव स्वास्थ्य सर्वोपरि: कोर्ट ने कहा कि कबूतरों की बीट से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं, विशेष रूप से फेफड़ों की बीमारियां, गंभीर हैं।
- विशेषज्ञ समिति का गठन: कोर्ट ने इस मुद्दे की वैज्ञानिक जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का सुझाव दिया।
- विरासत कबूतरखानों की सुरक्षा: कोर्ट ने 15 जुलाई को बी.एम.सी. को विरासत कबूतरखानों को ध्वस्त न करने का निर्देश दिया था, जो अभी भी लागू है।
- कानूनी कार्रवाई: 30 जुलाई को कोर्ट ने बी.एम.सी. को उन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था जो कबूतरों को दाना डालकर नगर निगम के नियमों का उल्लंघन करते हैं।
कानूनी और संवैधानिक पहलू
- सार्वजनिक स्वास्थ्य बनाम धार्मिक स्वतंत्रता: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार शामिल है। कोर्ट ने इसे सर्वोपरि माना, लेकिन अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) के तहत जैन समुदाय की प्रथाओं को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
- नगर निगम की शक्तियां: बी.एम.सी. को महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम, 1888 के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता सुनिश्चित करने का अधिकार है। कबूतरखानों को बंद करने का निर्णय इसी अधिकार के तहत लिया गया।
- न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा: उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह बी.एम.सी. के प्रशासनिक निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करेगा, जब तक कि वे स्पष्ट रूप से अवैध न हों। कोर्ट ने विशेषज्ञ समिति के गठन का सुझाव देकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया।
- मूल कर्तव्यों का संतुलन: कोर्ट ने संविधान के भाग IV-A (मूल कर्तव्य) का उल्लेख किया, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवतावाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ पर्यावरण और जीवों के प्रति दया की वकालत करता है।
चुनौतियां
- स्वास्थ्य जोखिम: कबूतरों की बीट और पंखों से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे अस्थमा और फेफड़ों की बीमारियां, वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा सिद्ध हैं, लेकिन इनके दीर्घकालिक प्रभावों पर और शोध की आवश्यकता है।
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता: कबूतरों को दाना डालना जैन और अन्य समुदायों की धार्मिक प्रथा है, जिस पर पूर्ण प्रतिबंध सांस्कृतिक भावनाओं को आहत कर सकता है।
- प्रवर्तन की कठिनाई: बी.एम.सी. द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का उल्लंघन, जैसे दादर में तिरपाल हटाना, प्रवर्तन की चुनौतियों को दर्शाता है।
- वैकल्पिक व्यवस्था की कमी: कबूतरों के लिए वैकल्पिक भोज स्थलों की अनुपस्थिति ने विरोध को और बढ़ावा दिया है।
- सार्वजनिक जागरूकता: कबूतरों से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में जनता में जागरूकता की कमी एक बड़ी चुनौती है।
आगे की राह
- विशेषज्ञ समिति का गठन: कोर्ट के सुझाव के अनुसार, एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए, जिसमें चिकित्सा विशेषज्ञ, पर्यावरणविद, पशु कल्याण विशेषज्ञ और समुदाय के प्रतिनिधि शामिल हों। यह समिति कबूतरखानों के स्वास्थ्य प्रभावों का वैज्ञानिक मूल्यांकन करे और सिफारिशें दे।
- वैकल्पिक भोज स्थलों की व्यवस्था: कबूतरों को दाना डालने के लिए शहर के बाहरी हिस्सों में नियंत्रित स्थान स्थापित किए जाएं, जहां स्वास्थ्य जोखिम कम हों।
- जागरूकता अभियान: बी.एम.सी. को कबूतरों की बीट से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में जन जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
- विरासत संरक्षण: विरासत कबूतरखानों को ध्वस्त करने के बजाय, उन्हें सांस्कृतिक स्थलों के रूप में संरक्षित किया जाए, लेकिन दाना डालने पर नियंत्रण लागू किया जाए।
- कानूनी प्रवर्तन: कबूतरों को दाना डालने के प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, लेकिन साथ ही समुदाय के साथ संवाद स्थापित कर उनकी चिंताओं को संबोधित किया जाए।