(प्रारम्भिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
वर्तमान में विभिन्न देश भूमि की कमी, भू-राजनीतिक संघर्षों, कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की तात्कालिकता के संकट का सामना कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप अधिक नवीकरणीय ईंधनों को अपनाने की आवश्यकता में वृद्धि के साथ ही अधिक स्मार्ट, कुशल एवं विविध ऊर्जा नवाचार में निवेश करने की भी आवश्यकता बढ़ रही है।
बेहतर हरित प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता
जलवायु परिवर्तन से निपटना
- जीवाश्म ईंधन के दहन से से CO₂ उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है।
- निम्न कार्बन उत्सर्जन वाले विकास के लिए हरित प्रौद्योगिकियाँ (सौर, पवन, हाइड्रोजन, बैटरी भंडारण) आवश्यक हैं।
ऊर्जा समानता सुनिश्चित करना
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार वैश्विक स्तर पर 75 करोड़ से ज़्यादा लोगों के पास बिजली की पहुँच नहीं है।
- विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) में ऊर्जा पहुँच के अंतराल को पाटने के लिए हरित ऊर्जा सस्ती एवं मापनीय होनी चाहिए।
महत्त्वपूर्ण खनिजों पर निर्भरता कम करना
- वर्तमान की स्वच्छ तकनीक (जैसे- लिथियम-आयन बैटरी) अधिकांशत: दुर्लभ खनिजों (लिथियम, कोबाल्ट, निकल) पर अत्यधिक निर्भर करती है। इनमें भू-राजनीतिक, नैतिक एवं पारिस्थितिक चिंताएँ शामिल हैं।
- ऐसे में वैकल्पिक सामग्रियों और पुनर्चक्रण तकनीकों की आवश्यकता है।
समावेशी नवाचार को बढ़ावा
- स्वच्छ तकनीकी नवाचार में वैश्विक उत्तर (ग्लोबल नॉर्थ) का प्रभुत्व तकनीक पर निर्भरता उत्पन्न करता है।
- समान हरित परिवर्तनों के लिए स्थानीय अनुसंधान एवं विकास तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आवश्यक हैं।
तकनीकी जोखिमों को कम करना
- वर्तमान नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत अनियमित एवं भूमि-प्रधान हैं। ऐसे में अगली पीढ़ी के समाधानों, जैसे- हरित हाइड्रोजन, कार्बन कैप्चर, लघु मॉड्यूलर रिएक्टर, ग्रिड-स्तरीय भंडारण की आवश्यकता है।
जीवनचक्र उत्सर्जन को कम करना
हरित तकनीकों (जैसे- सौर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन) के उत्पादन एवं निपटान के दौरान भी कार्बन फुटप्रिंट उत्पन्न होते हैं। ऐसे में स्वच्छ उत्पादन तकनीकों और चक्रीय अर्थव्यवस्था पर बल दिए जाने की आवश्यकता है।
बेहतर हरित तकनीकों की चुनौतियाँ
- उच्च अनुसंधान एवं विकास लागत और मंद व्यावसायीकरण
- मुक्त-स्रोत हरित नवाचारों पर सीमित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- पेटेंट एकाधिकार और वैश्विक दक्षिण में पहुँच की कमी
आगे की राह
- कम लागत वाली, टिकाऊ हरित तकनीकों पर सार्वजनिक-वित्त पोषित अनुसंधान
- UNFCCC, G-20 एवं COP जैसे ढाँचों के अंतर्गत वैश्विक सहयोग
- विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए, तकनीक-हस्तांतरण तंत्र को बढ़ावा देना
- स्टार्टअप और सूक्ष्म, लघु एवं माध्यम उद्योग (MSME) को हरित क्षेत्रों में नवाचार के लिए प्रोत्साहित करना
इसे भी जानिए
- जून 2025 तक भारत की कुल स्थापित विद्युत् क्षमता 476 गीगावाट तक पहुँच गई।
- गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोत अब कुल क्षमता में 235.7 गीगावाट (49%) का योगदान देते हैं।
- इसमें 226.9 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा और 8.8 गीगावाट परमाणु ऊर्जा शामिल है।
- थर्मल पावर अभी भी प्रमुख क्षेत्र बना हुआ है जो 240 गीगावाट या स्थापित क्षमता का 50.52% है।
- भारत ने अप्रैल 2018 तक गांवों में शत-प्रतिशत (100%) विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया है।
- अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी नवीकरणीय ऊर्जा सांख्यकी के अनुसार भारत अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता में वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर, पवन ऊर्जा में चौथे स्थान पर और सौर ऊर्जा क्षमता में तीसरे स्थान पर है।
|