(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन व कार्य; सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
भारत में टोल टैक्स को लेकर वर्षों से सवाल उठते रहे हैं कि क्या खराब सड़कों के लिए भी नागरिकों से टोल वसूला जाना चाहिए? इस विषय पर केरल उच्च न्यायालय और अब सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट एवं नागरिक-हितैषी रुख अपनाते हुए यह कहा है कि खराब सड़कों के लिए टोल वसूली ‘न्यायसंगत नहीं’ है।
क्या है मामला
- केरल में त्रिशूर ज़िले के राष्ट्रीय राजमार्ग 544 पर स्थित पालीयेकारा टोल प्लाज़ा पर सड़कों की हालत बेहद खराब होने के बावजूद टोल वसूला जा रहा था।
- इसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने आवाज़ उठाई कि जब सड़क की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं है, तो नागरिकों से उपयोग शुल्क कैसे वसूला जा सकता है?
केरल उच्च न्यायालय का आदेश
- 6 अगस्त, 2025 को केरल उच्च न्यायालय ने चार सप्ताह के लिए टोल वसूली पर रोक लगा दी।
- अदालत ने कहा “जब जनता कानूनी रूप से टोल देने के लिए बाध्य है, तो उन्हें बदले में निर्बाध, सुरक्षित एवं नियंत्रित सड़क सुविधा मिलनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह जनता के वैध अपेक्षाओं का उल्लंघन है।”
NHAI की आपत्ति
- राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।
- उनका तर्क था कि सड़कें निर्माणाधीन हैं और मरम्मत कार्य ‘युद्ध स्तर’ पर जारी है।
- उन्होंने यह भी कहा कि जैसे ही यातायात व्यवस्था सामान्य होगी, टोल वसूली फिर से शुरू की जानी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के आदेश को पूरी तरह सही ठहराया और NHAI की अपील को खारिज कर दिया।
- न्यायालय ने कहा कि सड़कों की मरम्मत में लापरवाही के साथ टोल वसूली नागरिकों के धैर्य, धन एवं पर्यावरण तीनों पर बोझ हैं।
- न्यायालय के निर्णय के प्रमुख बिंदु:
- टोल टैक्स तभी वसूला जा सकता है, जब सड़कें सही स्थिति में हों।
- नागरिकों को दोहरी कर प्रणाली के तहत परेशान नहीं किया जा सकता है, अर्थात पहले वाहन कर लेना और फिर टोल लेना।
- उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच को स्थिति की निगरानी करते रहने का निर्देश दिया गया।
इस फैसले का महत्व
- यह निर्णय नागरिकों के अधिकारों की पुष्टि करता है।
- प्रशासनिक जवाबदेही तय करता है कि सड़कें समय पर और गुणवत्ता के साथ बनी हों।
- सार्वजनिक धन के सदुपयोग एवं पारदर्शिता की मांग को बल देता है।
नागरिकों का अधिकार: कर चुकाने के बाद सेवाएँ
- जब नागरिक वाहन कर और टोल टैक्स अदा करते हैं तो उन्हें बदले में निम्नलिखित सेवा मिलनी चाहिए:
- सुरक्षित और बाधा रहित सड़कें
- मानव गरिमा के अनुकूल यात्रा का अनुभव
- समय की बचत और पर्यावरण संरक्षण
- यह फैसला बताता है कि राज्य एवं उसके ठेकेदारों की ज़िम्मेदारी है कि वे इन अधिकारों की पूर्ति सुनिश्चित करें।
चुनौतियाँ
- BOT (Build, Operate, Transfer) मॉडल में जवाबदेही का अभाव
- NHAI और निजी ठेकेदारों के बीच समन्वय की कमी
- नागरिकों के पास शिकायत निवारण के सीमित साधन
- टोल स्टाफ की मनमानी, विशेष रूप से टोल बूथों पर कम स्टॉफ
आगे की राह
- टोल नीति की पुनर्समीक्षा हो, सड़कों की गुणवत्ता को मापने के मानदंड स्पष्ट हों।
- सार्वजनिक निगरानी तंत्र बनें, जिसमें नागरिक भी शामिल हों।
- NHAI के ठेकेदारों की प्रदर्शन समीक्षा और जुर्माने की प्रभावी व्यवस्था हो।
- सभी टोल सड़कों के लिए लाइव डैशबोर्ड और शिकायत पोर्टल अनिवार्य हो।
- टोल टैक्स वसूली तभी हो, जब सड़कें उपयोग के योग्य हों, अन्यथा वसूली पर रोक लगे।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला एक ऐतिहासिक पड़ाव है, जो बताता है कि ‘सेवा के बिना शुल्क वसूली नहीं हो सकती है’। यह निर्णय न केवल केरल बल्कि पूरे देश के नागरिकों को उनके अधिकारों की याद दिलाता है और सरकार तथा प्रशासन को उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करने का अवसर भी प्रदान करता है।