(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों पर विकसित व विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय) |
संदर्भ
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत, ब्राजील एवं चीन सहित विभिन्न देशों पर उच्च टैरिफ लगाया है। यह वैश्विक स्तर पर व्यापार तनाव के बढ़ने का संकेत देता है जिसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
ट्रंप द्वारा उच्च टैरिफ लागू करने के कारण
ट्रंप की तुष्टिकरण की नीति
- ट्रंप अमेरिका के मूक बहुमत (और केवल ‘अमेरिका को फिर से महान बनाने’ वाले रिपब्लिकन को नहीं) को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं जो वैश्वीकरण के मूल सिद्धांतों, अर्थात्- पूँजी संचय, सस्ता श्रम, पर्यावरण उपनिवेशीकरण और धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में गिरावट से ठगा हुआ महसूस करता है।
- इस नव-उदारवादी यथास्थिति ने एक ओर धन एवं शक्ति के अभूतपूर्व संकेंद्रण को जन्म दिया है और दूसरी ओर असमानताओं में तेज़ी से वृद्धि की है।
घरेलू राजनीति एवं परिस्थितियाँ
इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कि ये टैरिफ अमेरिकी कंपनियों और उपभोक्ताओं पर एक छद्म सुपर-टैक्स हैं, इन्हें देशों एवं कंपनियों से जबरन वसूली करके अमेरिका की आर्थिक ताकत बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
चीन व रूस के प्रभुत्व को कम करना
- ट्रंप का निर्णय अमेरिका के कथित वि-औद्योगीकरण को उलटने और चीन के प्रभुत्व को रोकने से संबंधित है।
- द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार टैरिफ में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए चीन के रणनीतिक प्रभाव को रोकने के प्रावधान भी शामिल थे।
- भारत पर बढ़ते टैरिफ कथित तौर पर रूस पर यूक्रेन के साथ युद्ध समाप्त करने के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से लगाए गए थे।
- हालाँकि, यूक्रेन के संबंध में अमेरिका-रूस बैठक के बावजूद भारत पर उच्च टैरिफ जारी है।
ट्रंप द्वारा टैरिफ लगाने का परिणाम
व्यापार विचलन
चीन की वस्तुओं पर उच्च टैरिफ अमेरिकी कंपनियों को ग्लोबल साउथ (भारत, वियतनाम, मेक्सिको, बांग्लादेश) से वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
निर्माण क्षेत्र में बदलाव
- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ चीन पर निर्भरता कम करने के लिए ‘चीन+1 रणनीति’ के तहत आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता ला सकती हैं।
- इस परिदृश्य में लागत प्रतिस्पर्धात्मकता एवं व्यापार समझौतों वाले देश निवेश आकर्षित कर सकते हैं।
भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण
चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिका ग्लोबल साउथ के लोकतंत्र के साथ व्यापार साझेदारी को मज़बूत कर सकता है।
ग्लोबल साउथ के लिए चुनौतियाँ
- बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी एवं कुशल श्रम में क्षमता की कमी
- निर्यात में तेज़ी से वृद्धि होने पर संरक्षणवादी प्रतिक्रिया
- अमेरिकी नीतिगत अस्थिरता के प्रति संवेदनशीलता
भारत के लिए अवसर
- भारत को इस स्थिति का लाभ उठाकर दुनिया की भू-आर्थिक एवं राजनीतिक संरचना को नया आकार देना चाहिए।
- भारत को एकध्रुवीयता एवं द्विध्रुवीयता दोनों के विकल्प के रूप में बहुध्रुवीयता (Multipolarity) का समर्थन करना चाहिए।
- आपूर्ति शृंखला में बदलाव लाने के लिए मेक इन इंडिया और उत्पादन से जुडी प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- लॉजिस्टिक्स को मज़बूत करने पर बल देने से इस क्षेत्र में अधिक अवसर उत्पन्न होंगे।
- व्यापार बाधाओं को कम करने के साथ ही विभिन्न देशों व समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर चर्चा करने की जरुरत है।
- वस्तुओं के साथ-साथ सेवा निर्यात (आईटी, फार्मा) का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
- भारत इस अवसर का लाभ उठाकर एक ऐसा नया आर्थिक समझौता भी कर सकता है जो सभी देशों के लिए समान रूप से कारगर हो।
आगे की राह
- विविधीकरण : वैश्विक दक्षिण के देशों को अमेरिकी बाज़ार पर अत्यधिक निर्भरता से बचना चाहिए।
- क्षेत्रीय सहयोग : व्यापार मानदंडों को आकार देने के लिए ब्रिक्स, आई.पी.ई.एफ., जी-20 जैसे मंचों का उपयोग किया जा सकता है।
- घरेलू सुधार : व्यापार सुगमता, श्रम कानूनों और हरित विनिर्माण में सुधार पर बल देना चाहिए।
निष्कर्ष
सरकार को आर्थिक हितधारकों में विश्वास बहाल करने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे, समान विकास सुनिश्चित करने वाली नीतियों का नेतृत्व करना होगा (जिसके बिना भारत निवेशकों के लिए एक आकर्षक बाजार नहीं बन पाएगा) और एक साहसिक व नया दृष्टिकोण अपनाना होगा।