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UN जल संधि: बांग्लादेश की सदस्यता एवं भू-राजनीतिक प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध; द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

बांग्लादेश दक्षिण एशिया का ऐसा पहला देश बना है जिसने संयुक्त राष्ट्र जल संधि की सदस्यता ग्रहण है। यह कदम जल सुरक्षा और सीमा-पार सहयोग को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है किंतु विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत व बांग्लादेश के बीच जल संबंधी तनाव बढ़ सकता है।

संयुक्त राष्ट्र जल संधि (UN Water Convention) के बारे में

  • औपचारिक नाम : Convention on the Protection and Use of Transboundary Watercourses and International Lakes (सीमापार जलमार्ग एवं अंतर्राष्ट्रीय झील संरक्षण व उपयोग अभिसमय)
  • स्थापना : वर्ष 1992 में हेलसिंकी में अपनाई गई और 1996 में लागू हुई।
  • अधिकार क्षेत्र : प्रारंभ में यह यूरोप और मध्य एशिया तक सीमित था किंतु वर्ष 2016 से सभी UN सदस्य देशों के लिए खुली है।
  • उद्देश्य : साझा जल संसाधनों के सतत प्रबंधन, संघर्षों की रोकथाम एवं क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देना।
  • इसके अंतर्गत सदस्य देश यह सुनिश्चित करते हैं कि सीमापार जल का उपयोग उचित, समान व सतत तरीके से किया जाए।

बांग्लादेश की जल चुनौतियाँ

  • बांग्लादेश जल संकट एवं जलवायु परिवर्तन से अत्यधिक प्रभावित देश है और देश की लगभग आधी जनसंख्या सूखे प्रभावित क्षेत्रों में रहती है।
  • प्रतिवर्ष देश के लगभग 20–25% क्षेत्र में बाढ़ आती है। 60% जनसंख्या उच्च बाढ़ जोखिम क्षेत्रों में निवास करती है।
  • 65 मिलियन से अधिक लोग आज भी स्वच्छ और सुरक्षित स्वच्छता सुविधाओं से वंचित हैं।
  • इसके अलावा जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन ने देश की जल स्थिति को अधिक जटिल बना दिया है। 
  • रिपोर्ट्स के अनुसार, 1,415 नदियों में से लगभग 81 नदियाँ या तो सूख चुकी हैं या विलुप्ति के कगार पर हैं।

सीमापार नदी प्रणाली और बांग्लादेश की निर्भरता

  • बांग्लादेश लगभग पूरी तरह सीमापार नदियों पर निर्भर है। यह भारत और चीन के साथ गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना (GBM) बेसिन साझा करता है जो विश्व की सबसे जटिल नदी प्रणालियों में से एक है।
  • इन तीन प्रमुख नदियों के जलग्रहण क्षेत्र का केवल 7% हिस्सा ही बांग्लादेश के भीतर है। चीन एवं भारत द्वारा बांध निर्माण के कारण बांग्लादेश को मिलने वाले जल की मात्रा में लगातार कमी आई है।

चीन की भूमिका एवं क्षेत्रीय प्रभाव

  • वर्ष 2025 में चीन ने तिब्बत में मोतो हाइड्रोपावर स्टेशन के निर्माण की घोषणा की है जो विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत बांध होगा। 
  • यह परियोजना यारलुंग त्संगपो नदी पर आधारित है जो भारत के अरुणाचल प्रदेश से होकर बांग्लादेश में प्रवेश करती है। 
  • भारत एवं बांग्लादेश दोनों को आशंका है कि यह बांध नदी के प्राकृतिक प्रवाह को प्रभावित कर सकता है और क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ा सकता है।

भारत-बांग्लादेश के जल संबंध

  • भारत जल विवादों को हल करने के लिए पारंपरिक रूप से द्विपक्षीय समझौतों पर भरोसा करता आया है :
    • सिंधु जल संधि (भारत–पाकिस्तान, 1960)
    • गंगा जल बंटवारा संधि (भारत–बांग्लादेश, 1996)
  • हालाँकि, हाल के वर्षों में यह द्विपक्षीय ढांचा कमजोर पड़ता दिख रहा है। तीस्ता नदी जल बंटवारा विवाद लंबे समय से दोनों देशों के बीच मतभेद का कारण है।
  • बांग्लादेश ने भारत की टिपैमुख बांध परियोजना और नदी जोड़ो परियोजना पर पर्यावरणीय चिंताएँ जताई हैं।

भारत पर संभावित प्रभाव

  • भारत को चिंता है कि यू.एन. जल संधि में बांग्लादेश की सदस्यता उसके जल-वार्ताओं में प्रभाव को कम कर सकती है।
  • गंगा नदी जल संधि वर्ष 2026 में नवीनीकरण के लिए निर्धारित है और संभावना है कि बांग्लादेश इस बार अधिक जल हिस्सेदारी की मांग कर सकता है।
  • बांग्लादेश ने 14 सीमापार नदियों के लिए एक नया संस्थागत ढाँचा प्रस्तावित किया है जिससे भारत में संदेह की स्थिति बनी हुई है।
  • यदि बांग्लादेश को अधिक जल मिलता है तो यह पूर्वी भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल संकट को बढ़ा सकता है।

क्षेत्रीय राजनीतिक प्रभाव

  • भारत को यह भी आशंका है कि बांग्लादेश का यह कदम नेपाल और भूटान जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देशों के लिए एक मिसाल बन सकता है।
  • बांग्लादेश हाल ही में चीन एवं पाकिस्तान के साथ त्रिपक्षीय सहयोग (आर्थिक, जलवायु व सामाजिक विकास पर) की घोषणा कर चुका है जो भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती पैदा कर सकता है।

भारत के लिए नीति विकल्प

  • भारत के सामने अब दो विकल्प हैं:
    1. द्विपक्षीय नीति पर कायम रहना, जैसा कि अब तक अपनाया गया है।
    2. या फिर बहुपक्षीय मंचों और वैश्विक मानकों को अपनाते हुए जल सुरक्षा को एक रणनीतिक प्राथमिकता के रूप में देखना।
  • भारत को क्षेत्रीय स्थिरता, पारिस्थितिक सुरक्षा एवं कूटनीतिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए एक नई जल कूटनीति का विकास करना होगा।

निष्कर्ष

बांग्लादेश का संयुक्त राष्ट्र जल संधि में शामिल होना उसकी जल सुरक्षा एवं अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के लिए एक सकारात्मक कदम है किंतु यह भारत-बांग्लादेश जल संबंधों में नई जटिलताएँ भी जोड़ सकता है। यदि दोनों देश पारदर्शी संवाद, वैज्ञानिक डाटा-साझाकरण और सहयोगी ढाँचे को प्राथमिकता दें तो यह कदम दक्षिण एशिया में जल-आधारित सहयोग व शांति के लिए एक अवसर साबित हो सकता है।

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