(प्रारंभिक परीक्षा : रिपोर्ट एवं सूचकांक) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
हाल ही में, ‘लीडरशिप इन एजुकेशन: लीड फॉर लर्निंग (Leadership in Education: Lead for Learning)’ शीर्षक से यूनेस्को ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग (GEM) रिपोर्ट 2024-25 जारी की गयी। यह वैश्विक स्तर पर शिक्षा परिणामों व नेतृत्व में लैंगिक असमानताओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करती है। भारत उन प्रमुख देशों में शामिल है जो इन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
- नामांकन में प्रगति : वर्ष 2015 में सतत विकास लक्ष्य- 4 (SDG- 4) के अपनाए जाने के बाद से वैश्विक स्तर पर 110 मिलियन अधिक बच्चे एवं युवा स्कूलों में दाखिल हुए हैं। माध्यमिक स्तर तक शिक्षा पूरी करने वालों की संख्या में 40 मिलियन की वृद्धि हुई है।
- भारत ने प्राथमिक शिक्षा में लगभग सार्वभौमिक नामांकन प्राप्त कर लिया है किंतु सीखने के परिणामों में कमी एक बड़ी चुनौती है।
- स्कूल से बाहर बच्चे : वैश्विक स्तर पर स्कूल से बाहर बच्चों की संख्या में केवल 1% कमी आई है और 251 मिलियन बच्चे व युवा अभी भी शिक्षा से वंचित हैं।
- निम्न-आय वाले देशों में स्कूल की आयु के 33% बच्चे स्कूल से बाहर हैं, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में, जहाँ यह आँकड़ा और भी अधिक है।
- पढ़ने में लैंगिक अंतराल : वैश्विक स्तर पर पढ़ने की दक्षता में लड़कों की स्थिति लड़कियों से पीछे हैं। औसतन 100 लड़कियों की तुलना में केवल 87 लड़के पढ़ने की न्यूनतम दक्षता स्तर प्राप्त करते हैं।
- मध्यम-आय वाले देशों में यह अंतर और भी बड़ा है जहाँ 100 लड़कियों के मुकाबले केवल 72 लड़के इस स्तर को प्राप्त करते हैं। भारत के संदर्भ में भी यह रुझान देखा गया है।
- गणित में स्थिरता एवं कोविड-19 का प्रभाव : गणित में पिछले दो दशकों तक लैंगिक समानता बनी रही किंतु कोविड-19 महामारी ने इस संतुलन को प्रभावित किया है।
- ब्राजील, चिली, इंग्लैंड, इटली एवं न्यूजीलैंड जैसे देशों में लड़कियों के गणित प्रदर्शन में लड़कों की तुलना में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।
- शैक्षिक नेतृत्व में लैंगिक अंतर : वर्ष 2021 में 189 राष्ट्रीय संस्थानों में केवल 5% महिलाएँ कुलपति या निदेशक जैसे शीर्ष पदों पर थीं। 1,220 विश्वविद्यालयों के एक व्यापक सर्वेक्षण में केवल 9% महिलाएँ कुलपति थीं और 11% ने रजिस्ट्रार या शीर्ष प्रशासनिक भूमिकाएँ निभाईं।
- भारत में सभी प्रकार के स्कूलों में प्राचार्यों के रूप में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। पदोन्नति में लैंगिक पक्षपात और शीर्ष भूमिकाओं में महिलाओं की कमी प्रमुख बाधाएँ हैं।
- पाकिस्तान जैसे देशों में लैंगिक अलगाव के कारण महिलाओं के नेतृत्व के अवसर केवल लड़कियों के स्कूलों तक सीमित हैं। बलूचिस्तान में 2021 में केवल 29% स्कूल लड़कियों के थे, जिसने महिला नेतृत्व के अवसरों को सीमित किया।
- वित्तपोषण की कमी : 4 में से 1 देश शिक्षा पर अपने जी.डी.पी. का 4% से कम और कुल सार्वजनिक व्यय का 15% से कम खर्च करते हैं जो वैश्विक बेंचमार्क से कम है।
- निम्न एवं निम्न-मध्यम आय वाले देशों में SDG-4 लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए 2023-2030 के बीच प्रति वर्ष 97 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वित्तीय अंतर है।
- भारत में भी शिक्षा पर अपर्याप्त वित्तपोषण एक बड़ी चुनौती है जिसे अभिनव वित्तपोषण तंत्र (जैसे- ऋण-के-बदले-शिक्षा स्वैप) से दूर करने की सिफारिश की गई है।
- सीखने का संकट : प्राथमिक स्कूल के अंत तक सभी छात्रों के पढ़ने में न्यूनतम दक्षता स्तर प्राप्त करने में, वर्तमान दर पर, वर्ष 2133 तक का समय लगेगा, जो 2030 की SDG-4 समय सीमा से बहुत पीछे है।
- भारत में 73% छात्र बुनियादी पढ़ने एवं समझने की क्षमता में सक्षम नहीं हैं, जो एक गंभीर सीखने के संकट को दर्शाता है।
- नेतृत्व में सुधार: भारत में स्कूल प्राचार्य प्रशासनिक कार्यों में उलझ जाते हैं जिससे वे शिक्षकों को कक्षा में सहायता प्रदान करने में सीमित रहते हैं। प्रभावी नेतृत्व के लिए प्रशिक्षण व सशक्तिकरण की आवश्यकता है।
सुझाव
- वित्तपोषण बढ़ाना : शिक्षा पर निवेश बढ़ाने व अभिनव वित्तपोषण तंत्र अपनाने की आवश्यकता
- लैंगिक समानता : पढ़ने एवं गणित में लैंगिक अंतर को कम करना तथा शैक्षिक नेतृत्व में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना
- नेतृत्व व प्रशिक्षण : प्राचार्यों एवं शिक्षकों को प्रशिक्षण व सशक्तिकरण के माध्यम से सहयोगी नेतृत्व को बढ़ावा देना
- डिजिटल शिक्षा : डिजिटल सामग्री को भारत की विविध भाषाई एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अनुरूप बनाना
- डाटा संग्रह : शिक्षा डाटा की कमी को दूर करने के लिए LASER टूल जैसे उपकरणों का उपयोग