| (प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) | 
 
चर्चा में क्यों
यूनेस्को ने 29 सितंबर 2025 को स्पेन के बार्सिलोना में MONDIACULT सम्मेलन में चोरी हुए सांस्कृतिक वस्तुओं का पहला वैश्विक वर्चुअल म्यूजियम लॉन्च किया। 

यूनेस्को के वर्चुअल म्यूजियम के बारे में
- यह यूनेस्को का पहला वैश्विक डिजिटल म्यूजियम है, जो चोरी हुई सांस्कृतिक वस्तुओं पर केंद्रित है।
 
- म्यूजियम का लक्ष्य "खुद को खाली करना" है, जैसे ही वस्तुएं बरामद होकर मूल देशों को लौटेंगी, वे डिजिटल संग्रह से हट जाएंगी। 
 
- डिजाइन प्रित्जकर पुरस्कार विजेता आर्किटेक्ट फ्रांसिस केरे ने यह म्यूजियम बनाया है, जो अफ्रीकी महाद्वीप के प्रतीक बाओबाब वृक्ष के रूप में है। 
 
- इस म्यूजियम में भारत से छत्तीसगढ़ के पाली महादेव मंदिर की नौवीं शताब्दी की दो बलुई पत्थर की मूर्तियां शामिल हैं – नटराज (शिव का नृत्य रूप) और ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता के रूप में)।
 
वित्तपोषण
- म्यूजियम का वित्तपोषण सऊदी अरब के किंगडम द्वारा किया गया है। 
 
- कुल बजट लगभग 2.5 मिलियन डॉलर (करीब 21 करोड़ रुपये) है। 
 
- परियोजना INTERPOL के साथ साझेदारी में बनी, और इसमें अमेरिका, ग्रीस समेत 44 अन्य देशों का समर्थन है। 
 
विशेषताएं
- डिजाइन: बाओबाब वृक्ष की आकृति, जो ताकत का प्रतीक है। तीन मुख्य कमरे – चोरी वस्तुओं की गैलरी, ऑडिटोरियम और वापसी कक्ष।
 
- तकनीक: 3D मॉडल, VR, AI से पुनर्निर्माण; 600 से ज्यादा वस्तुएं प्रदर्शित।
 
- सामग्री: समुदायों की कहानियां, गवाही, चोरी स्थलों का इंटरैक्टिव नक्शा।
 
- उद्देश्य: जागरूकता बढ़ाना, विशेषकर युवाओं में। सफल वापसी केस हाइलाइट, जैसे वर्ष 2024 में चिली से मोरक्को लौटा ट्राइलोबाइट फॉसिल।
 
- एक्सेस: वेबसाइट पर फ्री, मोबाइल/कंप्यूटर पर।
 
महत्व
- यह डिजिटल प्लेटफॉर्म समुदायों को उनकी खोई हुई धरोहरों से जोड़ता है। दुनिया भर में 52,000 से ज्यादा चोरी हुई वस्तुओं का डेटाबेस INTERPOL का है, और यह म्यूजियम उनमें से सैकड़ों को 3D में दिखाता है।
 
- यह म्यूजियम चोरी तस्करी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई का नया हथियार है, जो औपनिवेशिक लूट का सामना करता है। 
 
- ऑनलाइन वापसी से भौतिक परिवहन की जटिलताएं कम होती हैं, और समुदायों को तुरंत एक्सेस मिलता है। 
 
- लेकिन आलोचक चिंतित हैं कि "वर्चुअल वापसी" असली मालिकाना हक को कमजोर कर सकती है। 
 
- फिर भी, यह युवाओं को सिखाता है कि चोरी धरोहर से पहचान चुराती है। भारत जैसे देशों के लिए यह अपनी मूर्तियों को ट्रैक करने में मददगार है। 
 
- कुल मिलाकर, यह संवाद का प्लेटफॉर्म है; सरकारें, म्यूजियम, पुलिस और नागरिक समाज को जोड़ता है।