- संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) का 29वां सम्मेलन (COP-29) अजरबैजान की राजधानी बाकू में आयोजित हुआ।
- यह सम्मेलन वैश्विक जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर देशों को एक मंच प्रदान करता है, ताकि वे अपने प्रयासों का समन्वय कर सकें, वित्तीय और तकनीकी सहायता सुनिश्चित कर सकें, और जलवायु कार्रवाई में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ा सकें।
- COP-29 ने कई महत्वपूर्ण समझौतों और घोषणाओं को जन्म दिया, जो वैश्विक जलवायु नीति, वित्तीय लक्ष्यों, ऊर्जा संक्रमण, कार्बन बाजार और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं में मील का पत्थर साबित होंगे।

COP-29
- COP-29 ने वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए नई दिशा तय की।
- सम्मेलन का उद्देश्य केवल उत्सर्जन घटाना नहीं, बल्कि विकसित और विकासशील देशों के बीच वित्तीय, तकनीकी और नीतिगत सहयोग को बढ़ाना, स्थानीय समुदायों और देशज लोगों को शामिल करना, और जलवायु न्याय के सिद्धांत को मजबूती देना था।
COP-29 के मुख्य आउटकम्स और थीम
जलवायु वित्त: नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG)
New Collective Quantified Goal (NCQG) को COP-29 में प्रमुख उपलब्धि के रूप में स्वीकार किया गया।
- यह पहल COP-21 (पेरिस समझौता) के अनुच्छेद 9 के तहत विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वित्तीय सहायता देने के लिए प्रस्तावित थी।
- लक्ष्य: 2035 तक प्रतिवर्ष 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर का जलवायु वित्त पोषण।
- पिछला लक्ष्य 2009 में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसे 2020 तक पूरा करना था और बाद में इसे 2025 तक बढ़ाया गया।
- यह वित्त पोषण विशेष रूप से अनुकूलन (adaptation) और शमन (mitigation) गतिविधियों, जैसे स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं, प्राकृतिक आपदा प्रतिरोधी संरचनाओं, और जलवायु-न्याय के उपायों के लिए प्रदान किया जाएगा।
महत्वपूर्ण बिंदु:-वित्त लक्ष्य की तुलना में 2030 तक आवश्यक वैश्विक निवेश 6.3-6.7 ट्रिलियन डॉलर है, जिससे NCQG अभी भी अपेक्षाकृत कम है।
कार्बन बाजार और अनुच्छेद 6
COP-29 ने पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के लिए नियमों को अंतिम रूप दिया।
- अनुच्छेद 6 अंतर्राष्ट्रीय कार्बन बाजारों के लिए संरचित तंत्र प्रदान करता है।
- इसका उद्देश्य उत्सर्जन कटौती प्रोजेक्ट्स और कार्बन क्रेडिट के व्यापार को सुव्यवस्थित करना है।
- यह पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करता है और देशों को उत्सर्जन कम करने में वित्तीय प्रोत्साहन देता है।
पारदर्शिता (Transparency) और ETF
संवर्धित पारदर्शिता फ्रेमवर्क (Enhanced Transparency Framework - ETF) COP-29 का एक अन्य प्रमुख पहलू था।
- इसके तहत देशों द्वारा अपनी जलवायु कार्रवाइयों की द्विवार्षिक रिपोर्ट (BTRs) प्रस्तुत की जाती है।
- COP-29 में पहली BTRs सौंपी गई।
- बाकू घोषणा-पत्र और वैश्विक जलवायु पारदर्शिता प्लेटफॉर्म लॉन्च किए गए, जिससे वैश्विक स्तर पर जवाबदेही और डेटा-संचालित निर्णय सुनिश्चित होंगे।
अनुकूलन (Adaptation) और शमन (Mitigation)
COP-29 में अनुकूलन और शमन को वैश्विक एजेंडा का केंद्र बनाया गया।
- बाकू अनुकूलन रोडमैप और उच्च स्तरीय अनुकूलन वार्ता की शुरुआत की गई, जिसे UAE फ्रेमवर्क फॉर ग्लोबल क्लाइमेट रेजिलिएंस के तहत मजबूत किया गया।
- शमन के लिए शर्म अल-शेख शमन लक्ष्य और कार्यान्वयन वर्क प्रोग्राम जारी रहा।
- इन पहलुओं का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं से बचाव, जलवायु-संबंधित जोखिम कम करना और ऊर्जा संक्रमण को तेज करना है।
देशज लोग और स्थानीय समुदाय (Indigenous Peoples and Local Communities)
स्थानीय और देशज समुदायों की भागीदारी को COP-29 में विशेष महत्व दिया गया।
- बाकू कार्य-योजना (Baku Workplan) अपनाई गई।
- LCIPP के फैसिलिटेटिव वर्किंग ग्रुप (FWG) को नई जिम्मेदारियां सौंपी गईं।
- FWG की स्थापना COP-24 में हुई थी और इसे अब और प्रभावी बनाने के लिए नवीनीकृत किया गया।
- इसका उद्देश्य जलवायु नीति में स्थानीय ज्ञान और अनुभव का समावेश करना है।
जेंडर और जलवायु परिवर्तन
- संवर्धित लीमा वर्क प्रोग्राम को अगले 10 वर्षों के लिए बढ़ाया गया।
- यह कार्यक्रम जेंडर-संवेदनशील दृष्टिकोण को जलवायु कार्रवाई में लागू करता है।
- महिलाओं और लैंगिक विविधता को ध्यान में रखकर नीतियां और परियोजनाएं बनाई जाएंगी।
COP-29 में शुरू की गई प्रमुख पहलें और घोषणाएं
- जैविक अपशिष्ट से मीथेन न्यूनीकरण घोषणा-पत्र: विभिन्न क्षेत्रों के लिए मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित किए गए (भारत हस्ताक्षरकर्ता नहीं)।
- वैश्विक ऊर्जा भंडारण और ग्रिड संकल्प: 2030 तक 1,500 गीगावाट ऊर्जा भंडारण का लक्ष्य, जो 2022 के स्तर से छह गुना अधिक है।
- हाइड्रोजन घोषणा-पत्र: स्वच्छ हाइड्रोजन उत्पादन और उपयोग को गति देना।
- क्लाइमेट फाइनेंस एक्शन फंड (CFAF): विकासशील देशों में जलवायु परियोजनाओं के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता।
- वैश्विक मिलान मंच (GMP): अत्यधिक उत्सर्जन करने वाले उद्योगों के डीकार्बोनाइजेशन के लिए तकनीकी और वित्तीय समाधान।
COP29 और भारत: वैश्विक जलवायु वार्ता में भारत का रुख
- संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के 29वें पक्षकार सम्मेलन, COP29, अजरबैजान के बाकू में आयोजित हुआ।
- इस सम्मेलन में दुनिया के लगभग सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन, उत्सर्जन कम करने और सतत विकास के मुद्दों पर बहस की।
- इस महत्वपूर्ण वैश्विक मंच पर भारत ने अपने सुदृढ़ और संतुलित रुख को स्पष्ट रूप से पेश किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि भारत विकासशील देशों के दृष्टिकोण और उनके विकास के अधिकारों का जोरदार पक्षधर है।
भारत का रुख और पहलू
1.राष्ट्रीय और वैश्विक वित्तीय पहल (NCQG)
- भारत ने COP29 में प्रतिवर्ष 1.3 ट्रिलियन डॉलर के जलवायु वित्तीय लक्ष्य का प्रस्ताव रखा।
- इसमें से लगभग 600 बिलियन डॉलर अनुदान या अनुदान समकक्ष संसाधनों के रूप में आना चाहिए।
- यह पहल विकसित देशों से विकासशील देशों को वित्तीय सहयोग सुनिश्चित करने के लिए दबाव डालती है।
2.मिटिगेशन (Mitigation)
- भारत ने मिटिगेशन वर्क प्रोग्राम (MWP) के दायरे में बदलाव और पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों में संशोधन के प्रयासों का विरोध किया।
- साथ ही, भारत ने विकसित देशों से आग्रह किया कि वे 2020 से पहले की मिटिगेशन गैप को औपचारिक रूप से स्वीकार करें।
- यह कदम भारत की यह नीति दर्शाता है कि विकसित देशों को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
3.जस्ट ट्रांजिशन (Just Transition)
- COP29 में भारत ने जोर दिया कि विकसित देशों को विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करनी चाहिए।
- साथ ही, विकासशील देशों के विकास के अधिकार और उनकी संधारणीय प्राथमिकताओं का पूरी तरह से सम्मान किया जाना चाहिए।
4.ग्लोबल स्टॉकटेक (Global Stocktake - GST)
- भारत ने पेरिस समझौते के फ्रेमवर्क का हवाला देते हुए ग्लोबल स्टॉकटेक परिणामों के लिए किसी भी फॉलो-अप मैकेनिज्म का विरोध किया।
- इसके साथ ही, UAE डायलॉग टेक्स्ट की आलोचना की क्योंकि इसमें वित्तीय मुद्दों पर कम ध्यान और शमन केंद्रित दृष्टिकोण था।
5.अनुकूलन (Adaptation)
- भारत ने यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि अनुकूलन पर प्रगति को मापने के लिए स्पष्ट संकेतकों का उपयोग किया जाए।
- इसके लिए केवल पक्षकारों (देशों) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों का ही डेटा उपयोग किया जाना चाहिए, किसी तीसरे पक्ष के डेटाबेस का नहीं।
6.ग्लोबल साउथ की आवाज भारत ने COP29 में ग्लोबल साउथ देशों के हितों को मजबूत करने के लिए दो प्रमुख पहल की:
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- आपदा-रोधी अवसंरचना: इसे भारत और आपदा-रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) ने आयोजित किया।
- एनर्जी ट्रांजिशन: इसमें भारत और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) ने ग्लोबल साउथ के लिए अक्षय ऊर्जा और टिकाऊ ऊर्जा संक्रमण पर ध्यान केंद्रित किया।
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UNFCCC के बारे में संक्षिप्त जानकारी
- मुख्यालय: बॉन, जर्मनी
- स्थापना: 1992, रियो डी जेनेरियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन; 1994 में अपनाया गया।
- UNFCCC क्योटो प्रोटोकॉल (1997) और पेरिस समझौता (2015) के लिए आधारभूत कन्वेंशन है।
- अन्य रियो कन्वेंशंस में शामिल हैं: जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD) और मरुस्थलीकरण रोकथाम के लिए कन्वेंशन (UNCCD)।
जलवायु वार्ताओं में प्रमुख चुनौतियां
- NCQG लक्ष्य 2030 तक आवश्यक वैश्विक निवेश (6.3-6.7 ट्रिलियन डॉलर) के मुकाबले कम है।
- भविष्य के ऊर्जा मिश्रण में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी पर सहमति का अभाव।
- लॉस एंड डैमेज फंड (LDF) का धीमा संचालन और अपर्याप्त वित्त पोषण।
- COP-30 से पहले NDCs के अगले दौर को स्थगित करना।
- जीवाश्म ईंधन उद्योग के लॉबिस्ट का वार्ता में प्रभाव।
निष्कर्ष
वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने के लिए आवश्यक है:
- 2030 तक 2019 के स्तर से 42% उत्सर्जन कटौती।
- 2035 तक 57% उत्सर्जन कटौती।
आवश्यक कदम:
- NDCs का विस्तार और मजबूत क्रियान्वयन।
- क्षेत्रवार प्रतिबद्धताओं और निवेश के माध्यम से समर्थन।
- जलवायु कूटनीति में ‘साझा लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व और संबंधित क्षमता (CBDR-RC)’ और जलवायु न्याय की दृढ़ प्रतिबद्धता।
COP-29 ने यह स्पष्ट कर दिया कि जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरणीय चुनौती नहीं है, बल्कि यह वैश्विक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता से जुड़ा हुआ है। इसके समाधान के लिए वैश्विक सहयोग, पारदर्शिता और साझा जिम्मेदारी ही मार्गदर्शक सिद्धांत होंगे।