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वेंबनाड झील : एक संकटग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र और पुनरुद्धार की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण संरक्षण)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

  • वेंबनाड झील (Vembanad Lake) भारत की सबसे लंबी व केरल की सबसे बड़ी झील है जो न केवल राज्य की जलवायु एवं पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि लाखों लोगों की आजीविका व खाद्य सुरक्षा से भी जुड़ी हुई है। 
  • विगत कुछ दशकों में यह झील प्रदूषण, अतिक्रमण, जलकुंभी के प्रसार एवं प्रशासनिक उदासीनता की शिकार बन गई है। झील का यह क्षरण केवल एक पारिस्थितिक संकट नहीं है बल्कि यह सतत विकास, जलवायु अनुकूलन व मानव-प्रकृति संबंधों पर गहरा प्रश्नचिह्न भी है।

वेंबनाड झील के बारे में 

  • स्थान : केरल राज्य के एर्नाकुलम, कोट्टायम, अलाप्पुझा, पथानमथिट्टा एवं कोल्लम जिलों में फैली हुई।
  • क्षेत्रफल : झील का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 2,033 वर्ग किमी. है। इसकी लंबाई लगभग 96.5 किमी. है। 
  • रामसर स्थल: वेंबनाड-कोल आर्द्रभूमि प्रणाली को वर्ष 2002 में अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में रामसर साइट घोषित किया गया।
  • प्रमुख नदियाँ : इसमें केरल की छह प्रमुख नदियाँ मीनाचिल, पंपा, अचनकोविल, मणिमाला, मुवत्तुपुझा व पेरियार आकर मिलती हैं।
  • जैव विविधता : इसमें प्रवासी पक्षियों, मछलियों व अन्य जलीय जीवों की विविधता पाई जाती है।
  • मत्स्य पालन का क्षेत्र : झील के आसपास के लोग मत्स्यपालन पर निर्भर हैं। परंपरागत रूप से यह केरल के प्रमुख मछली स्रोतों में शामिल रही है।
  • कुट्टनाड क्षेत्र : झील के आसपास स्थित यह क्षेत्र भारत का एकमात्र स्थान है जहां समुद्र तल से नीचे खेती होती है।
  • हाउसबोट पर्यटन : वेंबनाड झील पर आधारित 'हाउसबोट' पर्यटन केरल के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन आकर्षण में से एक है।
  • नेहरू ट्रॉफी बोट रेस : यह झील 'वल्लम कली' (नाव दौड़) जैसे पारंपरिक जल उत्सवों का केंद्र है।

झील के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

  • क्षरण और संकुचन : पिछले 100 वर्षों में झील का क्षेत्रफल लगभग 27% तक घट गया है (1917-1990) जिसके मुख्य कारण भूमि अतिक्रमण, गाद जमाव व रीयल एस्टेट दबाव आदि रहे।
  • प्रदूषण : प्लास्टिक कचरा, कृषि रसायन, घरेलू मल-जल आदि के कारण जल की गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। 
    • इसके अलावा रासायनिक ऑक्सीजन मांग (COD) और जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) का स्तर खतरनाक स्थिति में हैं।
  • जलकुंभी का अनियंत्रित प्रसार : इस आक्रामक खरपतवार ने झील के बड़े हिस्से को ढक लिया है जिससे ऑक्सीजन की कमी और मत्स्य संकट उत्पन्न हुआ है।
  • गहराई में कमी : अवसादन और अनुपचारित अपशिष्ट के कारण झील की गहराई घटती जा रही है, जिससे इसकी जलधारण क्षमता में कमी आई है।
  • हाउसबोट और पर्यटन जनित दबाव : हाउसबोट अपशिष्ट का सीधा विसर्जन झील में होता है। इसके अलावा हाउसबोट का अवैध संचालन, पर्यावरणीय मानकों की अवहेलना आदि भी झील के क्षरण के प्रमुख जिम्मेदार कारक रहें।
  • प्रशासनिक व नीति-क्रियान्वयन संबंधी बाधाएँ : नीति समन्वय एवं डाटा-आधारित योजना का अभाव।

संरक्षण एवं पुनरुद्धार प्रयास 

वेंबनाड झील पुनरुद्धार परियोजना 

  • परिचय : वर्ष 2024 में प्रारंभ की गई यह एक महत्त्वाकांक्षी और बहु-आयामी पहल है जिसका उद्देश्य वेंबनाड की पारिस्थितिकीय स्वास्थ्य को बहाल करना है। 
  • प्रमुख उद्देश्य : झील की जलधारण क्षमता बढ़ाना, प्रदूषण कम करना, जैव विविधता की रक्षा करना और स्थानीय समुदायों की आजीविका को सुदृढ़ करना
  • नोडल निकाय : यह परियोजना अलाप्पुझा जिला प्रशासन और स्थानीय स्वशासन विभाग द्वारा शुरू की गई है और इसे ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम से प्रेरणा मिली है।
  • प्रमुख भागीदार : अलाप्पुझा जिला प्रशासन, स्थानीय पंचायतें, मछुआरा समुदाय, पर्यावरणविद् व शैक्षणिक संस्थान
  • कुल बजट: 188.25 करोड़
  • अवधि: 5 वर्ष

प्रमुख कार्य और रणनीतियाँ

  • 31 बायो-बंड्स का निर्माण : जलप्रवाह और कटाव नियंत्रण के लिए 31 ग्राम पंचायतों में 1-1 किमी लंबे बायो-बंड्स का निर्माण।
  • झील की सफाई (ड्रेजिंग) : जलधारण क्षमता को 384.66 मिलियन क्यूबिक मीटर से बढ़ाकर 817.25 मिलियन क्यूबिक मीटर करना
  • प्लास्टिक एवं जलकुंभी हटाना : 28.72 टन प्लास्टिक पहले ही हटाया जा चुका है; जलकुंभी से मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने की योजना है। 
  • जैविक खेती को बढ़ावा: रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा देना 
  • मछली पालन कार्यक्रम : मछली बीजों की पुनः स्टॉकिंग व प्रजनन कार्यक्रम
  • स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा : स्थायी पर्यटन को प्रोत्साहित करना
  • जलकुंभी से उत्पाद निर्माण : जलकुंभी का व्यावसायिक उपयोग बढ़ाना (जैसे- फर्नीचर, कागज)।

आगे की राह 

  • कानूनी प्रवर्तन सशक्त करना 
    • अवैध हाउसबोट संचालन पर जुर्माना लगाना और लाइसेंस प्रणाली सुदृढ़ करना।
    • प्लास्टिक उपयोग व विसर्जन पर निगरानी। 
  • स्थानीय सहभागिता और विकेंद्रीकरण
    • ग्राम पंचायत, मछुआरे समुदाय व स्थानीय NGOs की अनिवार्य भागीदारी।
    • समुदाय आधारित निगरानी प्रणाली की स्थापना। 
  • पारिस्थितिकीय पर्यटन को पुनर्परिभाषित करना 
    • सतत पर्यटन के लिए हरित प्रमाणन (Green Certification) मॉडल लागू करना 
    • स्थानीय पर्यटन को प्राकृतिक पूंजी का संवर्धनकर्ता बनाया जाना
  • राज्य-केंद्र समन्वय और संसाधन आवंटन
    • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से वित्तीय और तकनीकी सहयोग 
    • नीति आयोग और जल शक्ति मंत्रालय की भागीदारी सुनिश्चित हो।
  • निरंतर निगरानी और डाटा-संचालित प्रबंधन
    • GIS आधारित निगरानी प्रणाली का क्रियान्वयन 
    • समयबद्ध मूल्यांकन और सार्वजनिक रिपोर्टिंग 
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