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वर्चुअल डिजिटल असेट्स : चुनौतियां एवं अवसर

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।)

संदर्भ

मई 2025 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने क्रिप्टो विनियमन की कमी पर सवाल उठाते वर्चुअल डिजिटल असेट्स (VDAs) की वास्तविकता और नीति के बीच की खाई को उजागर किया है। ऐसे में यह स्थिति भारत में वर्चुअल डिजिटल असेट्स के लिए विनियामक ढांचे की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

क्या हैं वर्चुअल डिजिटल असेट्स

  • यह ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित डिजिटल संपत्तियां हैं, जो विकेन्द्रीकृत, सुरक्षित और पारदर्शी लेनदेन की सुविधा प्रदान करती हैं। इनमें क्रिप्टोकरेंसी जैसे बिटकॉइन, ईथीरियम और अन्य डिजिटल टोकन शामिल हैं।
  • VDAs किसी केंद्रीय बैंक या मौद्रिक प्राधिकरण से स्वतंत्र होती हैं और निवेश, लेनदेन, तथा नवाचार के लिए उपयोग की जाती हैं।
  • चैनालिसिस की 'जियोग्राफी ऑफ क्रिप्टो' रिपोर्ट (2024) के अनुसार, भारत लगातार दूसरे वर्ष जमीनी स्तर पर VDA अपनाने में अग्रणी है, जो इनके बढ़ते महत्व को दर्शाता है।

अर्थव्यवस्था में भूमिका

  • निवेश और पूंजी प्रवाह: VDAs ने निवेश के नए अवसर प्रदान किए हैं। NASSCOM की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय खुदरा निवेशकों ने 6.6 बिलियन डॉलर का निवेश VDAs में किया है, जो पूंजी जुटाने का एक वैकल्पिक स्रोत बन रहा है।
  • रोजगार सृजन: VDA उद्योग आर्थिक विकास को बढ़ावा दे रहा है। NASSCOM का अनुमान है कि यह उद्योग वर्ष 2030 तक आठ लाख से अधिक नौकरियां सृजित कर सकता है, खासकर वेब3 डेवलपर्स और संबंधित क्षेत्रों में।
    • वेब3 इंटरनेट का एक प्रस्तावित अगला चरण है जो विकेंद्रीकरण, ब्लॉकचेन तकनीक और टोकन अर्थशास्त्र पर जोर देता है।
  • नवाचार और तकनीकी प्रगति: VDAs और ब्लॉकचेन तकनीक ने वेब3 विकास को प्रोत्साहित किया है। भारत में तेजी से बढ़ रही वेब3 डेवलपर समुदाय नवाचार को बढ़ावा दे रहा है, जो डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है।
  • वित्तीय समावेशन: VDAs विकेन्द्रीकृत वित्त (DeFi) के माध्यम से खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उन लोगों को वित्तीय सेवाएं प्रदान कर सकते हैं जो पारंपरिक बैंकिंग से वंचित हैं। 
  • आर्थिक जोखिम : अपतटीय VDA व्यापार के कारण भारत को 60 बिलियन रुपये से अधिक का TDS (स्रोत पर कर कटौती) नुकसान हुआ। एक मजबूत नियामक ढांचा इस राजस्व को संरक्षित कर सकता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी होगा।

नियामक ढांचे की आवश्यकता

  • जोखिम प्रबंधन : VDAs की विकेन्द्रीकृत प्रकृति मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकी वित्तपोषण और साइबर धोखाधड़ी जैसे जोखिमों को बढ़ाती है। वर्ष 2024 में 230 मिलियन डॉलर की हैकिंग घटना ने साइबर सुरक्षा की कमजोरियों को उजागर किया। नियामक ढांचा इन जोखिमों को कम करने में मदद करेगा।
  • कर राजस्व संरक्षण : जुलाई 2022 से अक्टूबर 2024 तक अपतटीय प्लेटफार्मों पर भारत अधिक का TDS नुकसान हुआ। नियमन के अभाव में उपयोगकर्ता गैर-अनुपालक प्लेटफार्मों की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे राजस्व हानि हो रही है।
  • उपभोक्ता संरक्षण : बिना विनियमन के, निवेशकों को धोखाधड़ी और बाजार हेरफेर का खतरा रहता है। एक ढांचा पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा, जिससे निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा।
  • वैश्विक मानकों के साथ सामंजस्य : FATF और IMF जैसे अंतरराष्ट्रीय निकाय जोखिम-आधारित नियमन की सलाह देते हैं। भारत का अनुपालन वैश्विक विश्वसनीयता बढ़ाएगा और VDA पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करेगा।

आगे की राह

  • स्पष्ट और व्यापक कानून: VDAs को परिभाषित करने वाला एक समग्र कानून बनाया जाना चाहिए जो उपभोक्ता संरक्षण, वित्तीय स्थिरता और नवाचार को संतुलित करे। इसमें VDA प्लेटफार्मों के लिए लाइसेंसिंग और अनुपालन मानक शामिल होने चाहिए। 
  • VASP को सशक्त बनाना: घरेलू वर्चुअल असेट सर्विस प्रोवाइडर्स (VASP) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इनके माध्यम से नियामक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • कर नीतियों में सुधार : 1% TDS और 30% पूंजीगत लाभ कर को और अधिक व्यावहारिक बनाया जाए। अपतटीय व्यापार को हतोत्साहित करने के लिए कर ढांचे को सरल और प्रभावी किया जाए, ताकि राजस्व हानि कम हो।
  • साइबर सुरक्षा मानक : VASP के लिए अनिवार्य साइबर सुरक्षा दिशानिर्देश और बीमा कोष स्थापित किए जाएं, जैसा कि वर्ष 2024 की हैकिंग घटना के बाद कुछ भारतीय एक्सचेंजों ने किया। यह निवेशकों के लिए सुरक्षा बढ़ाएगा।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग : FATF, IMF और FSB जैसे वैश्विक निकायों के साथ सामंजस्य स्थापित कर जोखिम-आधारित नियमन को अपनाया जाना चाहिए जिससे भारत की वैश्विक विश्वसनीयता में वृद्धि होगी।
  • जागरूकता और शिक्षा : VDAs के लाभों और जोखिमों के बारे में जन जागरूकता अभियान चलाए जाएं। इससे उपभोक्ता शिक्षित होंगे और धोखाधड़ी का जोखिम कम होगा।

निष्कर्ष

भारत में क्रिप्टोकरेंसी का तेजी से बढ़ता बाजार और तकनीकी नवाचार इसे वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में अग्रणी बनाने की क्षमता रखता है। हालांकि, नियामक अनिश्चितताएँ और ऑफशोर प्लेटफार्मों पर निर्भरता ने जोखिमों को बढ़ाया है और कर राजस्व में भारी नुकसान हुआ है। ऐसे में एक संतुलित, जोखिम-आधारित, और अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ सामंजस्यपूर्ण नियामक ढांचा न केवल मनी लॉन्ड्रिंग, साइबर अपराध, और कर चोरी जैसे जोखिमों को कम करेगा, बल्कि रोजगार सृजन, तकनीकी प्रगति, और आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करेगा।

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