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वारंगल चपाता मिर्च

तेलंगाना की वारंगल चपाता मिर्च को भौगोलिक संकेतक (GI Tag) प्रदान किया गया है।

वारंगल चपाता मिर्च के बारे में 

  • परिचय : यह मिर्च सोलानेसी कुल (Family) के कैप्सिकम एनम एल. से संबंधित है। टमाटर जैसी आकृति के कारण इसे ‘टमाटर मिर्च’ भी कहा जाता है। 
    • भौगोलिक संकेतक प्राप्त करने वाला यह तेलंगाना का पहला बागवानी एवं तीसरा कृषि उत्पाद है।  
  • वारंगल चपाता मिर्च के प्रकार : 
    • सिंगल पट्टी (Single Patti)
    • डबल पट्टी (Double Patti)
    • ओडालु (Odalu)

क्या आप जानते हैं?

वनस्पति विज्ञान के संदर्भ में ‘मिर्च’ को ‘फल’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता हैं। टमाटर एवं भिंडी भी फल की ही श्रेणी में आते हैं।

  • विशेषताएँ : यह मिर्च अपने चमकीले लाल रंग एवं कम तीखेपन के लिए प्रसिद्ध है।
    • इसमें अनेक एंटी-ओबेसोजेनिक, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी एवं न्यूरोप्रोटेक्टिव गुण पाए जाते हैं।  
    • इसका रंग मान 134.1 से 149.1 ASTA इकाइयों तक होता है जो इसे सिंथेटिक खाद्य रंगों का एक उत्कृष्ट प्राकृतिक विकल्प बनाता है।
      • कुछ मसालों के संदर्भ में ए.एस.टी.ए. यूनिट रंग की तीव्रता के माप को संदर्भित करता है, जिसे अमेरिकन स्पाइस ट्रेड एसोसिएशन (ASTA) की रंग माप पद्धति द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  • उपयोग : इस मिर्च का उपयोग ज्यादातर अचार बनाने में किया जाता है। मिठाइयों, सौंदर्य प्रसाधनों, पेय पदार्थों, फार्मास्यूटिकल्स एवं कपड़ा उद्योगों में रंग के लिए भी इसका उपयोग होता है।
  • खेती की शुरुआत : ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार इसकी खेती लगभग 80 वर्ष पहले जम्मीकुंटा मंडल के नागरम गाँव में शुरू हुई थी, जिसमें नादिकुडा गाँव संभवतः सबसे पुराना स्रोत है। 
    • आसपास के समुदायों में इस किस्म का प्रसार मुख्यत: वेलामा समुदाय द्वारा बीज को साझा करने के माध्यम से हुआ। 
  • कटाई एवं प्रसंस्करण 
    • कटाई का मौसम फरवरी से मार्च तक होता है ।
    • फलियों को तब तोड़ा जाता है जब वे पूरी तरह पक जाती हैं और 60-70% तक पौधे पर ही सूख जाती हैं।
    • सूखी फलियों में नमी की मात्रा अच्छी रहती है तथा भंगुरता कम होती है जिसके कारण वे निर्यात एवं प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त होती हैं। 
  • वार्षिक उत्पादन : लगभग 11,000 टन

भौगोलिक संकेतक

  • क्या है : भौगोलिक संकेतक एक बौद्धिक संपदा लेबल है जो ऐसे उत्पादों को प्रदान किया जाता है जो उत्पत्ति व गुणवत्ता को भौगोलिक स्रोत के आधार पर प्रमाणित करता है।
  • वैधता : इसका पंजीकरण 10 वर्षों के लिए वैध होता है तथा इसे नवीनीकृत किया जा सकता है । 
  • प्रदानकर्ता निकाय : वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग के अंतर्गत भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा।
  • कानूनी ढाँचा : जी.आई. टैग वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999 द्वारा शासित 
  • पहला उत्पाद : वर्ष 2004 में दार्जिलिंग चाय भौगोलिक संकेतक पाने वाला पहला भारतीय उत्पाद था।
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