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भारत में जल संरक्षण:- भारत में जल उपयोग की वर्तमान स्थिति, जल संरक्षण संबंधी प्रमुख पहलें

  • भारत विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 18% हिस्सा है।
  • लेकिन भारत के पास केवल 4% वैश्विक ताजे जल संसाधनों की ही पहुंच है।
  • इसमें नदियाँ, झीलें, भूजल और वर्षा जल शामिल हैं जो कि पीने, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिए उपयुक्त हैं।
  • जनसंख्या और ताजे जल की उपलब्धता के बीच यह बड़ा अंतर गंभीर असंतुलन उत्पन्न करता है।
  • विशेष रूप से घनी आबादी और कृषि-प्रधान क्षेत्रों में जल की मांग आपूर्ति से कहीं अधिक है।
  • परिणामस्वरूप, भारत गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है।
  • देश के कई हिस्सों में विशेष रूप से गर्मियों या सूखा पड़ने वाले वर्षों में जल की भारी किल्लत होती है।
  • तेजी से शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और जनसंख्या वृद्धि इन सीमित जल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डाल रहे हैं।
  • जैसे-जैसे अधिक लोग शहरों की ओर बढ़ रहे हैं और औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है, जल की खपत बढ़ रही है जबकि प्राकृतिक स्रोत घटते जा रहे हैं।

भूजल उपयोग की स्थिति (2024 की रिपोर्ट के अनुसार)

  • 2024 की डायनामिक ग्राउंडवाटर रिसोर्स असेसमेंट रिपोर्ट जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी की गई थी, जिसमें भारत भर में भूजल संसाधनों का आकलन किया गया।
  • भूजल पुनर्भरण का रुझान: 2024 में कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण में थोड़ी कमी देखी गई है।
  • गंभीर और अत्यधिक दोहन वाले इकाइयाँ:
    • 3.05% इकाइयाँ "गंभीर" श्रेणी में हैं, जो तेज भूजल ह्रास को दर्शाता है।
    • 11.1% इकाइयाँ "अत्यधिक दोहन" श्रेणी में हैं, यानी वहां जल निकासी पुनर्भरण से अधिक है।
  • प्रमुख प्रभावित क्षेत्र:
    • उत्तर-पश्चिम भारत: पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश
    • पश्चिम भारत: राजस्थान, गुजरात
    • दक्षिण भारत: कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश

शहरी जल उपलब्धता और उपयोग

  • शहरी क्षेत्रों में 31% परिवारों के पास पाइप से जल आपूर्ति नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त, 67% परिवार पाइप से सीवेज प्रणाली से नहीं जुड़े हैं, जिससे स्वच्छता और जल गुणवत्ता की समस्याएँ पैदा होती हैं।
  • स्वास्थ्य प्रभाव: यह अधोसंरचना की कमी जल जनित रोगों को जन्म देती है और जल पुनः उपयोग की प्रक्रियाओं को जटिल बनाती है।

कृषि में जल उपयोग

  • कृषि भारत में जल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो कुल जल संसाधनों का 78% उपयोग करती है।
  • पारंपरिक बाढ़ सिंचाई पद्धतियाँ अत्यधिक जल-व्ययकारी हैं।
  • इसलिए, जल दक्षता बढ़ाने के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसे सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली की ओर स्थानांतरण आवश्यक है।

भारत में पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियाँ

भारत में पारंपरिक जल संरक्षण की समृद्ध विरासत है, जो आज भी सतत जल प्रबंधन के लिए उपयोगी है:

  • जल मंदिर (गुजरात): एक मंदिर संरचना जो जल स्रोत के चारों ओर निर्मित है। यह धार्मिक और जल संरक्षण, दोनों उद्देश्यों की पूर्ति करता है।
  • कूल (हिमाचल प्रदेश): छोटे सिंचाई नहरें, जो हिमनदों या नदियों से पानी को कृषि क्षेत्रों तक पहुँचाती हैं।
  • जाबो (नागालैंड): यह प्रणाली जल संचयन, वनों और कृषि प्रबंधन को एक साथ जोड़ती है, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा जल को संरक्षित करने और कटाव को कम करने के लिए।
  • एरी और ऊरणी (तमिलनाडु): पारंपरिक जलाशय प्रणालियाँ, जो वर्षा जल को संग्रहित कर सिंचाई, भूजल पुनर्भरण और जैव विविधता में सहायक हैं।
  • डोंग (असम): बाढ़ जल संचयन प्रणाली, जो निम्न इलाकों में मानसून के अतिरिक्त पानी को नियंत्रित करती है।
  • कटास और बंध (ओडिशा व मध्य प्रदेश): पारंपरिक तालाब और तटबंध, जो सिंचाई और पेयजल संग्रहण में प्रयुक्त होते हैं।
  • पार और जोहड़ (राजस्थान): छोटे मिट्टी के चेक डैम, जो वर्षा जल एकत्र कर भूजल पुनर्भरण में सहायक होते हैं।
  • पट (मध्य प्रदेश): छोटे नाले जो नदियों से खेतों की ओर पानी मोड़ते हैं। यह सामुदायिक रूप से प्रबंधित होते हैं और स्थानीय कृषि का समर्थन करते हैं।

ये सभी प्रणालियाँ स्थानीय जल प्रबंधन और जल संरक्षण प्रथाओं का अभिन्न हिस्सा हैं।
ये क्षेत्रीय जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप समुदायों की गहन पारिस्थितिक समझ को दर्शाती हैं।

केंद्र सरकार की जल संरक्षण संबंधी प्रमुख पहलें (Central Government Initiatives)

1. जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission - JJM)

शुरुआत: 2019 | लक्ष्य वर्ष 2024
उद्देश्य:

  • हर ग्रामीण परिवार को नल से शुद्ध पेयजल कनेक्शन प्रदान करना।
  • “Har Ghar Jal” का लक्ष्य प्राप्त करना।
  • ग्राम स्तर पर पानी की गुणवत्ता की निगरानी और स्थानीय स्तर पर जल स्रोतों का संरक्षण

विशेषताएँ:

  • सामुदायिक भागीदारी पर आधारित।
  • ग्राम जल और स्वच्छता समिति (VWSC) का गठन।
  • ग्रामीण स्तर पर जल परीक्षण प्रयोगशालाएँ

2. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana - PMKSY)

शुरुआत: 2015
उद्देश्य:

  • “हर खेत को पानी” – सभी खेतों तक सिंचाई सुविधा पहुँचाना।
  • “Per Drop More Crop” ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा देना।
  • जल दक्षता और सतत कृषि को प्रोत्साहित करना।

3. अटल भूजल योजना (Atal Bhujal Yojana)

शुरुआत: 25 दिसंबर 2019 | कार्यान्वयन अवधि: 2020–25
लागत: 6,000 करोड़ (विश्व बैंक सहायता सहित)
उद्देश्य:

  • सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से स्थायी भूजल प्रबंधन
  • भूजल स्तर की निगरानी और योजना आधारित उपयोग।
  • 7 राज्यों के 78 जिलों के 8353 ग्राम शामिल (गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तरप्रदेश)।

4. Catch the Rain Campaign

शुरुआत: 2021 (जल शक्ति मंत्रालय द्वारा)
स्लोगन: “Catch the rain, where it falls, when it falls”
उद्देश्य:

  • वर्षा जल संग्रहण को प्रोत्साहन देना।
  • लोकल वॉटर स्ट्रक्चर का पुनर्जीवन।
  • हर जिले में जलग्रहण क्षेत्र और जल संरक्षण ढाँचे विकसित करना।

5. National Framework on Safe Reuse of Treated Water (2022)

उद्देश्य:

  • उपचारित जल (treated wastewater) का सुरक्षित पुन: उपयोग।
  • सिंचाई, औद्योगिक उपयोग व शहरी गैर-पेय कार्यों के लिए दिशा-निर्देश जारी।

6. Power Tariff Policy (2016)

प्रावधान:

  • थर्मल पावर प्लांट्स को 50 किमी के दायरे में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) से उपचारित जल का उपयोग करना आवश्यक।
  • यह पीने योग्य जल की बचत में सहायक है।

7. राष्ट्रीय जल नीति (National Water Policy - 2012)

उद्देश्य:

  • पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग को प्राथमिकता देना।
  • Zero Liquid Discharge (ZLD) सिद्धांत को अपनाना।
  • जल उपयोग में मांग प्रबंधन, प्रौद्योगिकी उन्नयन, और जन-जागरूकता पर बल।

राज्य सरकारों की प्रमुख जल संरक्षण पहलें (State Government Initiatives)

1. नीरु-चेतु (Neeru-Chettu) – आंध्र प्रदेश

उद्देश्य:

  • प्राकृतिक संसाधनों की पुनःस्थापना और जल निकायों की सफाई
  • जल ग्रहण क्षेत्र विकास, वृक्षारोपण और सामुदायिक भागीदारी।

2. जल जीवन हरियाली अभियान – बिहार

लक्ष्य:

  • सभी सार्वजनिक जल स्रोतों की पहचान, संरक्षण और पुनरुद्धार
  • नहरों, तालाबों, कुओं और चेक डैम्स की मरम्मत।
  • वर्षा जल संचयन और भूजल रिचार्ज बढ़ाना।

3. जल ही जीवन है – हरियाणा

उद्देश्य:

  • फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना।
  • धान जैसी जल-गहन फसलों से हटाकर कम जल खपत वाली फसलें जैसे मक्का, अरहर आदि की खेती।
  • किसानों को प्रोत्साहन राशि और तकनीकी सहायता

4. मिशन काकतिया – तेलंगाना

उद्देश्य:

  • पारंपरिक जलाशयों की मरम्मत और पुनरुद्धार।
  • सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को सुदृढ़ करना।
  • जल स्तर में सुधार और कृषि उत्पादन बढ़ाना
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