(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
बाल विवाह (Child Marriage) भारत में लंबे समय से एक सामाजिक समस्या रही है। सरकार द्वारा कई योजनाएँ शुरू करने के बावजूद यह प्रथा पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकी है। हाल ही में सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) रिपोर्ट 2025 ने बताया है कि पश्चिम बंगाल में बाल विवाह के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए हैं।
SRS रिपोर्ट के बारे में
- सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (Sample Registration System) भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त कार्यालय द्वारा संचालित एक निरंतर जनसांख्यिकीय सर्वेक्षण है।
- इसका उद्देश्य जन्म, मृत्यु एवं सामाजिक संकेतकों, जैसे- विवाह, मातृत्व व जनसंख्या संबंधी रुझानों पर विश्वसनीय आँकड़े प्रदान करना है।
- सितंबर 2025 में प्रकाशित रिपोर्ट में बाल विवाह की स्थिति पर विशेष डाटा प्रस्तुत किया गया।
मुख्य बिंदु
- राष्ट्रीय स्तर पर 18 वर्ष से कम आयु में विवाह करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 2.1% है।
- पश्चिम बंगाल: 6.3% (सर्वाधिक)
- झारखंड: 4.6%
- केरल: 0.1% (न्यूनतम)
- ग्रामीण इलाकों में पश्चिम बंगाल 5.8% और शहरी इलाकों में 7.6% के साथ शीर्ष पर है।
- 18-20 वर्ष आयु वर्ग में विवाह का प्रतिशत भी पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक (44.9%) है।
पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक बाल विवाह का कारण
- सामाजिक-आर्थिक कारण : गरीबी, शिक्षा की निम्न दर एवं शीघ्र विवाह को सामाजिक सुरक्षा समझना
- महिला शिक्षा की कमी : उच्च शिक्षा में कम नामांकन होना
- रूढ़िवादी सोच : परिवारों द्वारा बालिकाओं की शीघ्र विवाह को परंपरा मानना
- योजनाओं की सीमित पहुँच : कन्याश्री प्रकल्प जैसी योजनाओं के बावजूद जागरूकता और क्रियान्वयन में खामियाँ
- महिला सुरक्षा की चिंता : माता-पिता द्वारा जल्दी विवाह को सुरक्षा उपाय समझना
इसके प्रभाव
- स्वास्थ्य : कम आयु में गर्भधारण से मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में वृद्धि
- शिक्षा : बालिकाओं की पढ़ाई बीच में रुक जाने से उनके कैरियर अवसर का सीमित होना
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव : गरीबी का चक्र बना रहना और महिला सशक्तिकरण बाधित होना
- मानवाधिकार हनन : बाल विवाह का अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार समझौतों के विरुद्ध होना
चुनौतियाँ
- सामाजिक मानसिकता बदलना सबसे बड़ी चुनौती
- योजनाओं के सही क्रियान्वयन और लाभार्थियों की पहचान में समस्या
- छिपे हुए रूप में शहरी क्षेत्रों में भी बाल विवाह का उच्च प्रतिशत
- रिपोर्टिंग और डाटा संग्रह में कमी से वास्तविक आंकड़े का सामने न आना
- कानून के बावजूद प्रवर्तन कमजोर और दंडात्मक कार्रवाई का पर्याप्त न होना
आगे की राह
- जागरूकता अभियान: शिक्षा, मीडिया एवं पंचायत स्तर पर व्यापक जन-जागरूकता
- कानूनी सख्ती: बाल विवाह निषेध अधिनियम का सख्त प्रवर्तन और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई
- आर्थिक प्रोत्साहन: कन्याश्री जैसी योजनाओं का विस्तार एवं निगरानी
- शिक्षा पर बल: विशेषकर माध्यमिक और उच्च शिक्षा में बालिकाओं के नामांकन को बढ़ावा
- समुदाय की भागीदारी: स्थानीय नेताओं, शिक्षकों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं को शामिल करना
- डाटा एवं निगरानी: SRS डाटा का निरंतर विश्लेषण और जिला स्तर पर लक्ष्य तय करना