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पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) क्या है ? कानूनी आधार,आवश्यकता, लाभ और चुनौतियाँ

(GS III: Environment and Ecology)

भारत जैसे विविध भू-आकृतिक और जैवविविध देश में विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती है। इसी संतुलन को साधने के लिए सरकार ने “पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र” (Ecologically Sensitive Zones – ESZs) की अवधारणा विकसित की — ताकि राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों और संरक्षित वनों के आसपास का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़े बिना नियंत्रित विकास संभव हो सके।

ESZ का उद्देश्य है —

“विकास को रोकना नहीं, बल्कि पर्यावरणीय रूप से नियंत्रित करना।”

पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) ऐसे बफर ज़ोन होते हैं जो किसी संरक्षित क्षेत्र — जैसे राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर रिज़र्व, अभयारण्य या जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र — के आसपास बनाए जाते हैं, ताकि वहाँ के कोर पारिस्थितिक क्षेत्र पर मानव गतिविधियों के प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सके। इन्हें “Shock Absorber” या “Transition Zone” भी कहा जाता है, जो संरक्षण क्षेत्र और बाहरी विकास क्षेत्रों के बीच एक सुरक्षात्मक सीमा बनाते हैं।

 

ESZ  का कानूनी आधार (Legal Framework)

हालाँकि “ESZ” शब्द किसी विशेष अधिनियम में सीधे नहीं मिलता, परंतु इसका कानूनी आधार निम्नलिखित है:

प्रावधान

विवरण

Environment (Protection) Act, 1986

धारा 3(2)(v) के अंतर्गत केंद्र सरकार को ऐसे क्षेत्रों में औद्योगिक या विकासगत गतिविधियों को नियंत्रित करने का अधिकार है जहाँ पर्यावरण को खतरा हो।

Environment (Protection) Rules, 1986 (Rule 5)

केंद्र सरकार किसी क्षेत्र में कुछ गतिविधियों को प्रतिबंधित या विनियमित कर सकती है।

MoEFCC Guidelines (2011)

पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के निर्धारण, गतिविधियों के वर्गीकरण और सीमा निर्धारण के दिशा-निर्देश जारी किए गए।

सुप्रीम कोर्ट आदेश (2022)

न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रत्येक राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के चारों ओर न्यूनतम 1 किमी ESZ अनिवार्य रूप से बनाया जाए।

 ESZ की आवश्यकता क्यों? (Need and Rationale)

  1. संरक्षित क्षेत्रों के चारों ओर बढ़ते मानव दबाव अवैध खनन, निर्माण, औद्योगिक गतिविधियाँ आदि जैवविविधता को प्रभावित कर रहे थे।
  2. वन्यजीव-मानव संघर्ष में वृद्धिसीमावर्ती गांवों में अतिक्रमण और शिकार जैसी गतिविधियाँ बढ़ रही थीं।
  3. प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षाजलस्रोत, नदियाँ, वनों की जड़ प्रणाली को बचाने के लिए बफर ज़ोन आवश्यक है।
  4. विकास-संरक्षण संतुलन ESZ के माध्यम से पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में सतत विकास को बढ़ावा देना।

सीमा निर्धारण (Extent and Coverage)

  • सामान्यतः संरक्षित क्षेत्र की सीमा से 10 किलोमीटर तक का क्षेत्र ESZ घोषित किया जा सकता है।
  • यह सीमा स्थानीय परिस्थितियों (site-specific) पर निर्भर करती है।
  • उदाहरणतः — यदि किसी स्थान की पारिस्थितिकी अत्यधिक संवेदनशील है, तो यह 10 किमी से अधिक भी हो सकता है।
  • अब तक (2025 तक) भारत में 485 संरक्षित क्षेत्रों के लिए 340 से अधिक ESZ अधिसूचनाएँ जारी की जा चुकी हैं।

ESZ में गतिविधियों का वर्गीकरण (Activities in ESZ)

प्रकार

विवरण / उदाहरण

1. प्रतिबंधित गतिविधियाँ (Prohibited)

खनन, थर्मल पावर प्लांट, बड़ी इमारतें, अपशिष्ट निपटान संयंत्र, रेडियोधर्मी पदार्थ, उच्च प्रदूषण उद्योग।

2. नियंत्रित गतिविधियाँ (Regulated)

कृषि, फिशरी, टूरिज्म, छोटे पैमाने के उद्योग — पर्यावरणीय मंजूरी के साथ।

3. अनुमोदित गतिविधियाँ (Permitted)

जैविक खेती, वृक्षारोपण, पर्यावरण शिक्षा, इको-टूरिज्म, पुनःवनरोपण, पारंपरिक आजीविका।

प्रत्येक ESZ के लिए एक “Zonal Master Plan” तैयार किया जाता है जो बताता है कि कौन-सी गतिविधि कहाँ अनुमत है।

ESZ अधिसूचना प्रक्रिया (Notification Process)

  1. राज्य सरकार द्वारा प्रस्ताव तैयार
    • संबंधित संरक्षित क्षेत्र के आस-पास का भूगोल, सामाजिक-आर्थिक डेटा, और गतिविधियों का सर्वे किया जाता है।
  2. MoEFCC को प्रस्ताव भेजा जाता है
    • केंद्र सरकार ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी करती है।
  3. जन-सुनवाई व आपत्तियाँ
    • आम जनता और स्थानीय निकायों से सुझाव/आपत्तियाँ मांगी जाती हैं।
  4. अंतिम अधिसूचना (Final Notification)
    • सुझावों पर विचार कर अंतिम सीमा और नियम तय किए जाते हैं।
  5. निगरानी समिति का गठन (Monitoring Committee)
    • जिला कलेक्टर, DFO, स्थानीय NGO और ग्राम प्रतिनिधियों को सम्मिलित कर निगरानी की व्यवस्था बनाई जाती है।

ESZ के लाभ (Significance)

  • जैवविविधता की सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता।
  • जलग्रहण क्षेत्र (Catchment Areas) की रक्षा और नदियों के स्रोतों का संरक्षण।
  • वन्यजीव आवासों के लिए बफर ज़ोन की भूमिका निभाना।
  • पर्यटन और आजीविका के पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को प्रोत्साहित करना।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में सहायता।

प्रमुख चुनौतियाँ (Challenges)

समस्या

विवरण

(1) स्थानीय विरोध और आजीविका संकट

कई गाँवों में लोग ESZ के कारण खेती, निर्माण, या पर्यटन सीमित होने से असंतुष्ट हैं।

(2) प्रशासनिक समन्वय की कमी

MoEFCC और राज्यों के बीच निर्णय-प्रक्रिया में देरी होती है।

(3) निगरानी और प्रवर्तन की कमजोरी

कई जगह ज़ोन घोषित तो हो गया, पर निगरानी समितियाँ निष्क्रिय हैं।

(4) विकास बनाम संरक्षण

अवसंरचना परियोजनाएँ (हाईवे, बांध, हाइड्रो प्रोजेक्ट) और संरक्षण नीतियाँ अक्सर टकराती हैं।

(5) नीति-अस्पष्टता

हर क्षेत्र के लिए समान मानक तय नहीं; “site-specific” अवधारणा के कारण असमानता बनी रहती है।

हाल के उदाहरण (Recent Examples / Case Studies)

क्षेत्र

विवरण

रामगढ़ विशधारी टाइगर रिज़र्व (राजस्थान)

ESZ की सीमा 1 किमी से 14.79 किमी तक प्रस्तावित; स्थानीय किसानों ने विरोध किया कि इससे भूमि उपयोग सीमित होगा।

साइलेंट वैली नेशनल पार्क (केरल)

यहाँ ESZ में इको-टूरिज्म व सामुदायिक संरक्षण परियोजनाओं को प्रोत्साहित किया गया है।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (असम)

सुप्रीम कोर्ट ने खनन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया; ESZ ने जैवविविधता के संरक्षण में मदद की।

न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Interventions)

  1. Supreme Court (June 2022): प्रत्येक संरक्षित क्षेत्र के चारों ओर 1 किमी न्यूनतम ESZ अनिवार्य।
  2. Goa Foundation v. Union of India (2006): कोर्ट ने कहा कि ESZ का उद्देश्य “विकास को रोकना नहीं बल्कि नियमन करना” है।
  3. T.N. Godavarman Case: कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय को ESZ निर्धारण की समयबद्ध प्रक्रिया सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।

भारत सरकार की हाल की पहलें

  • Green Development Plan: ESZ में स्थानीय समुदायों को जैविक खेती, सोलर ऊर्जा और इको-टूरिज्म के माध्यम से वैकल्पिक आजीविका देना।
  • Digital Mapping of ESZs: उपग्रह आधारित GIS प्रणाली द्वारा संवेदनशील क्षेत्रों की सटीक सीमांकन प्रक्रिया शुरू की गई।
  • Compensatory Afforestation Fund (CAMPA): ESZ में वृक्षारोपण और इको-रेस्टोरेशन गतिविधियों के लिए वित्तीय सहयोग।
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