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कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (CCU) क्या है ? उद्देश्य, CCU की प्रक्रिया, वैश्विक महत्व, भारत में CCU की स्थिति

चर्चा में क्यों ?

  • सितंबर 2025: भारत ने CCU परियोजनाओं के लिए बड़े वित्तीय प्रोत्साहन (Carbon Capture Incentives) की घोषणा की।
  • मार्च 2025: केंद्र ने 5 CCU टेस्टबेड्स की स्थापना को मंजूरी दी (TOI, 2025)।
  • अप्रैल 2025: वैश्विक और भारतीय इस्पात कंपनियों ने संयुक्त अध्ययन (Joint Study) शुरू किया ताकि एशिया में CCUS हब बनाया जा सके (ET, 2025)।

प्रमुख बिन्दु :-

  • जलवायु परिवर्तन से निपटने की वैश्विक लड़ाई में केवल “उत्सर्जन कम करना”ही पर्याप्त नहीं है।
  • अब प्रयास इस दिशा में हैं कि जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) पहले से वायुमंडल में जा रही है, उसे पकड़ा जाए (Capture) और उपयोग (Utilise) में लाया जाए।
  • इसी तकनीक को कहा जाता है —Carbon Capture and Utilisation (CCU)अर्थात्, “उत्सर्जित CO₂ को पकड़कर उसे उपयोगी उत्पादों में बदलना।”
  • यह तकनीक Carbon Capture, Utilisation and Storage (CCUS) का एक भाग है — जहाँ ‘Storage’ की जगह ‘Utilisation’ यानी “उपयोग” पर ध्यान दिया जाता है।

CCU का उद्देश्य (Objective)

  1. औद्योगिक और ऊर्जा उत्पादन क्षेत्रों से निकलने वाले CO₂ उत्सर्जन को कम करना।
  2. CO₂ को “कचरे” से “संसाधन” (Resource) में बदलना।
  3. वैश्विक Net Zero Emission Goals (2050–2070) को हासिल करने में सहायता देना।

CCU की प्रक्रिया (Process of CCU)

चरण

विवरण

कैप्चर (Capture)

CO₂ को स्रोत (उद्योग, बिजली संयंत्र, सीमेंट/इस्पात फैक्ट्री) से निकाला जाता है।

ट्रांसपोर्ट (Transport)

पाइपलाइन, ट्रक या जहाज द्वारा CO₂ को उपयोग स्थल तक पहुँचाया जाता है।

यूटिलाइजेशन (Utilisation)

पकड़ी गई CO₂ को उत्पादों या प्रक्रियाओं में उपयोग किया जाता है।

CO₂ का उपयोग किन-किन रूपों में किया जाता है ?

क्षेत्र

उपयोग का तरीका

रसायन उद्योग

मेथनॉल, यूरिया, मिथेन जैसे रसायनों के निर्माण में CO₂ का कच्चे माल की तरह उपयोग।

ऊर्जा क्षेत्र

CO₂ से सिंथेटिक ईंधन, ग्रीन हाइड्रोजन या ई-फ्यूल तैयार किए जा सकते हैं।

निर्माण क्षेत्र

सीमेंट और कंक्रीट में CO₂ को ठोस रूप में बाँधकर निर्माण सामग्री बनाई जाती है।

खाद्य उद्योग

पेय पदार्थों (Soda, Soft Drinks) में CO₂ का उपयोग।

बायोटेक्नोलॉजी

शैवाल (Algae) द्वारा CO₂ को जैव ईंधन (Biofuel) में परिवर्तित करना।

CCU का वैश्विक महत्व (Global Importance)

  • IEA (International Energy Agency) के अनुसार, 2050 तक वैश्विक नेट-जीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए 9% उत्सर्जन कटौती CCUS से संभव है।
  • EU, USA, चीन, जापान जैसे देशों ने बड़े पैमाने पर CCU और CCS परियोजनाएँ शुरू की हैं।
  • वैश्विक स्तर पर 200+ CCUS परियोजनाएँ विकासाधीन हैं (IEA, 2024)।

भारत में CCU की स्थिति (CCU in India)

1. नीति एवं संस्थागत पहल

  • भारत सरकार 2025 तक राष्ट्रीय CCUS नीति (National CCUS Policy) लाने की तैयारी में है।
  • नीति आयोग (NITI Aayog) की रिपोर्ट (2022): भारत के पास लगभग 291 गीगाटन (Gt) CO₂ स्टोरेज क्षमता है।
  • ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) और इस्पात मंत्रालय ने संयुक्त रूप से 5 CCU टेस्टबेड्स स्थापित करने की योजना को मंजूरी दी (TOI, 2025)।

2. औद्योगिक प्रयास

  • Tata Steel, JSW, NTPC, Indian Oil Corporation जैसी कंपनियाँ पायलट CCU प्रोजेक्ट चला रही हैं।
  • Carbon Clean (UK-based) ने नवी मुंबई में Global Innovation Centre खोला है, जो भारत को CCU टेक्नोलॉजी हब बनाने की दिशा में कदम है।

3. सरकारी निवेश

  • केंद्र सरकार ने 38,900 करोड़ का CCUS कार्यक्रम तैयार किया है (Economic Times, 2025)।
  • कोयला आधारित उद्योगों के लिए 50–100% तक सब्सिडी या टैक्स इंसेंटिव देने का प्रस्ताव है (Reuters, Sept 2025)।

भारत के लिए CCU का महत्त्व (Significance for India)

  1. Net Zero by 2070 लक्ष्य प्राप्त करने का एक सशक्त साधन।
  2. कोयला आधारित ऊर्जा संरचना को "स्वच्छ संक्रमण (Clean Transition)" का मार्ग देना।
  3. इस्पात, सीमेंट, रसायन जैसे ‘Hard-to-abate’ उद्योगों में उत्सर्जन कम करने का व्यवहारिक उपाय।
  4. नई हरित उद्योग श्रृंखला और रोजगार सृजन के अवसर।
  5. पर्यावरणीय दायित्व के साथ-साथ हरित आर्थिक विकास (Green Growth) को बढ़ावा।

चुनौतियाँ (Challenges)

चुनौती

विवरण

उच्च लागत

कार्बन कैप्चर की लागत $50–100 प्रति टन तक होती है, जो विकासशील देशों के लिए कठिन है।

प्रौद्योगिकी अवसंरचना

ट्रांसपोर्ट पाइपलाइन, स्टोरेज साइट्स, निगरानी प्रणाली का अभाव।

ऊर्जा खपत

कैप्चर और कन्वर्ज़न प्रक्रिया ऊर्जा-गहन है।

नीतिगत स्पष्टता का अभाव

CCU के लिए अलग कानूनी और वित्तीय ढांचा अभी विकासशील है।

दीर्घकालिक व्यवहार्यता

उत्पादित ईंधन या रसायन अंततः CO₂ पुनः उत्सर्जित करते हैं — इसलिए “Net benefit” सीमित हो सकता है।

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