प्रवाल (Corals) समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के अत्यंत महत्त्वपूर्ण अकशेरुकी जीव हैं, जो कैल्शियम कार्बोनेट स्रावित करने वाले पॉलिप्स की कॉलोनियों द्वारा प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) का निर्माण करते हैं। ये अपने पोषण के लिए सहजीवी शैवाल ज़ूज़ैन्थेली (Zooxanthellae) पर निर्भर होते हैं। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) की घटनाओं में तीव्र वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक समुद्री जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।

प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) क्या है?
- प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) एक पर्यावरणीय घटना है जिसमें प्रवाल (coral) अपने रंग को खो देते हैं और सफेद या पीले दिखाई देने लगते हैं।
- इसका मुख्य कारण उनके साथ रहने वाले सहजीवी शैवाल (zooxanthellae) का अपवाह या मर जाना होता है।
- ये शैवाल कोरल को रंग और ऊर्जा (photosynthesis के माध्यम से) प्रदान करते हैं।
- जब शैवाल चले जाते हैं, तो कोरल का रंग फीका पड़ जाता है और वे जीवित रहने के लिए संघर्ष करने लगते हैं।
प्रवाल का प्राकृतिक वास
- अक्षांश: 30°N से 30°S के बीच
- जल: स्वच्छ, उथला, प्रकाश युक्त
- तापमान: 16–32°C
- गहराई: 50 मीटर से कम
वैश्विक वितरण
- अधिकतम प्रवाल भित्तियाँ: ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस
- कोरल ट्रायंगल: विश्व का सबसे समृद्ध समुद्री जैव विविधता क्षेत्र
- सदस्य: इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी, तिमोर लेस्ते, सोलोमन द्वीप
प्रवाल भित्तियों का महत्त्व
(क) जैव विविधता हॉटस्पॉट
- समुद्री प्रजातियों के ~25% को आवास और भोजन प्रदान करती हैं।
(ख) तटीय संरक्षण
- प्राकृतिक ब्रेकवॉटर की तरह कार्य कर तूफान, समुद्री कटाव और बाढ़ से रक्षा करती हैं।
(ग) आर्थिक मूल्य
- पर्यटन, मत्स्यन, तटीय संरक्षण के माध्यम से ~10 ट्रिलियन डॉलर का वार्षिक वैश्विक आर्थिक योगदान।
प्रवाल भित्तियों के समक्ष प्रमुख खतरे
1. प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching)
यह वह अवस्था है जब तापीय तनाव, प्रकाश असंतुलन व पोषक तत्वों की कमी के कारण प्रवाल अपने सहजीवी शैवाल बाहर निकाल देते हैं, जिससे प्रवाल सफ़ेद पड़ जाते हैं और भूख से मरने लगते हैं।
- 2024 में चौथी वैश्विक विरंजन घटना (GCBE-4)
- विश्व की 77 से अधिक प्रवाल भित्तियाँ प्रभावित
- भारत में प्रभावित क्षेत्र:
- अंडमान-निकोबार द्वीप समूह
- लक्षद्वीप
- मन्नार की खाड़ी
- कच्छ की खाड़ी

2. अन्य खतरे
- वैश्विक ऊष्मीकरण
- निर्माण हेतु प्रवाल खनन
- एक्वेरियम व्यापार
- अत्यधिक मत्स्यन
- महासागर अम्लीकरण
- तटीय प्रदूषण, गाद जमाव
- अपतटीय निर्माण, पोत यातायात
प्रवाल संरक्षण के प्रयास
(क) भारत के प्रयास
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
- प्रवाल को अनुसूची-I में सूचीबद्ध (अत्यधिक संरक्षण)।
- आर्द्रभूमि, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों पर राष्ट्रीय समिति, 1986
- राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण रणनीतियों का समन्वय।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
- निर्माण हेतु मूंगा और रेत के उपयोग पर प्रतिबंध।
- स्थानीय पुनर्स्थापना परियोजनाएँ
- कच्छ की खाड़ी: बायोरॉक तकनीक
- तमिलनाडु: कृत्रिम रीफ्स
(ख) वैश्विक प्रयास
- ICRI (International Coral Reef Initiative)
- प्रवाल संरक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय सहयोग; भारत सदस्य।
- CITES
- प्रवाल प्रजातियाँ परिशिष्ट-II में सूचीबद्ध—व्यापार का नियमन।
- विश्व धरोहर अभिसमय (UNESCO WHC)
- महत्वपूर्ण प्रवाल भित्तियों को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा।
आगे की राह (Way Forward)
1. स्थानीय स्तर पर संरक्षण
- वर्षा जल अपवाह और पोषक तत्वों के अत्यधिक प्रवाह को कम करना
- तटीय प्रदूषण, प्लास्टिक और गाद जमाव पर नियंत्रण
- सतत मत्स्यन प्रबंधन और तटीय नियमन क्षेत्र (CRZ) का कड़ाई से पालन
2. जलवायु परिवर्तन से निपटना
- वैश्विक तापमान वृद्धि को रोकना
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी
- नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण
3. वैज्ञानिक उपाय
- क्रायोप्रिजर्वेशन
- उदाहरण: टारोंगा क्रायोडायवर्सिटी बैंक—प्रवाल जनन-कोशिका का संरक्षण
- आधारित इंजीनियरिंग समाधान
- बायोरॉक तकनीक
- कृत्रिम रीफ्स
- प्रत्यास्थ (Resilient) प्रवाल प्रजातियों का संवर्धन
4. समुदाय-आधारित प्रबंधन
- तटीय समुदायों की भागीदारी
- सतत पर्यटन
- स्थानीय संरक्षण समितियाँ
निष्कर्ष
प्रवाल भित्तियाँ पृथ्वी के सबसे उत्पादक और संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं। बढ़ती वैश्विक ऊष्मीकरण और समुद्री अम्लीकरण के कारण प्रवाल विरंजन की घटनाएँ बढ़ रही हैं, जो समुद्री जैव विविधता, तटीय जीवन और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं। सुदृढ़ नीतिगत हस्तक्षेप, जलवायु परिवर्तन से लड़ाई, वैज्ञानिक तकनीकों तथा समुदाय-स्तरीय संरक्षण प्रयासों के माध्यम से ही प्रवालों को बचाया जा सकता है।