राजनीति का अपराधीकरण क्या है ?
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी चौथी रिपोर्ट, “शासन में नैतिकता” में स्पष्ट किया कि चुनावी प्रक्रिया में अपराधियों की भागीदारी को राजनीति का अपराधीकरण कहा जाता है।
- सरल शब्दों में, वह स्थिति जिसमें राजनीतिक दलों में अपराधी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक मंच का उपयोग करते हैं।

राजनीति में अपराधीकरण के कारण
राजनीति में अपराधीकरण के कई कारण हैं:
- उम्मीदवारों की जीत की संभावना: आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों की जीतने की संभावना 15.4% है, जबकि अन्य उम्मीदवारों के लिए यह केवल 4.4% है। यह दर्शाता है कि मतदाता और राजनीतिक दल अक्सर अपराधी प्रवृत्ति वाले नेताओं की जीत की संभावनाओं पर भरोसा करते हैं।
- अपराध मामलों में दोषसिद्धि में देरी: सुप्रीम कोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में विभिन्न अपराधों से संबंधित लगभग 5,000 मामले राजनेताओं के खिलाफ लंबित थे। लंबित मामलों की संख्या बढ़ने से दोषसिद्धि का समय लंबा होता है और आरोपी राजनेता आसानी से चुनाव लड़ सकते हैं।
- कानून में कमियां: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 केवल दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकता है। यानी आरोपी, जिन पर मुकदमा चल रहा है, वे आसानी से चुनाव में भाग ले सकते हैं।
- चुनाव आयोग की सीमित शक्तियां: चुनाव आयोग किसी राजनीतिक दल को पंजीकृत कर सकता है, लेकिन उसका पंजीकरण रद्द नहीं कर सकता। इसके कारण दलों के भीतर अपराधियों का प्रभुत्व जारी रहता है।
- भ्रष्टाचार और विश्वास की कमी: 2024 में भ्रष्टाचार सूचकांक के अनुसार भारत 96वें स्थान पर है। राजनीतिक दलों में अपराधियों के प्रभुत्व और धनबल, बाहुबल पर ध्यान केंद्रित करने से सामाजिक कल्याण और लोकतांत्रिक मूल्य प्रभावित होते हैं।
- राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़: राजनीतिक और अपराधी गठजोड़ जांच और अभियोजन को कमजोर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने CBI के लिए इसे “पिंजरे में बंद तोता” की संज्ञा दी थी, यह दर्शाता है कि राजनीतिक दबाव में जांच एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पातीं।
राजनीति में अपराधीकरण के प्रभाव
- लोकतंत्र का क्षरण (Erosion of Democracy): अपराधियों के राजनीति में प्रवेश से लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता घटती है और जनता का विश्वास कम होता है।
- भ्रष्टाचार और काले धन का बढ़ना: राजनीति में अपराधियों की भागीदारी से चुनावों में धनबल और बाहुबल का प्रभाव बढ़ता है, जिससे भ्रष्टाचार गहराता है।
- कानून व्यवस्था पर नकारात्मक असर: अपराधी नेता पुलिस, प्रशासन और जांच एजेंसियों पर दबाव डालकर मामलों को प्रभावित करते हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया बाधित होती है।
- सुशासन पर असर: अपराधियों के सत्ता में आने से नीतियाँ और फैसले जनहित की बजाय व्यक्तिगत और आपराधिक हितों को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं।
- राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़ का संस्थागत होना: अपराधियों और राजनेताओं के गठजोड़ से राज्यसत्ता का इस्तेमाल अपराध को बढ़ावा देने और बचाव करने के लिए होता है।
- हिंसा और असामाजिक गतिविधियों में वृद्धि: चुनावों में धमकी, बूथ कैप्चरिंग और हिंसात्मक घटनाएँ बढ़ जाती हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुचिता प्रभावित होती है।
- नीति-निर्माण पर नकारात्मक असर: अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेता अक्सर विकास की बजाय अपने व्यवसायिक और अवैध नेटवर्क को मज़बूत करने में लगे रहते हैं, जिससे सामाजिक और आर्थिक विकास बाधित होता है।
- जनप्रतिनिधित्व की गुणवत्ता में गिरावट: योग्य, शिक्षित और ईमानदार व्यक्तियों का राजनीति में प्रवेश कठिन हो जाता है, क्योंकि अपराधी उम्मीदवार धन और ताक़त के बल पर जीत हासिल कर लेते हैं।
सुधार
राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए कई कानूनी और संवैधानिक उपाय किए गए हैं:
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: धारा 8(3) के तहत दो वर्ष या उससे अधिक की सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है। अनुच्छेद 102 और 191 के तहत सदस्यता समाप्त होती है।
- ECI वेब पोर्टल: राजनीतिक दलों के वित्त-पोषण का ऑनलाइन विवरण प्रस्तुत करने के लिए पोर्टल बनाया गया है, जिससे वित्तीय पारदर्शिता बढ़ी है।
- ADR वाद (2002): मतदाताओं को उम्मीदवार की पृष्ठभूमि जानने का अधिकार मिला, जिससे वे अपराधियों वाले उम्मीदवारों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णय
- PUCL वाद (2004): धारा 33B को रद्द किया गया और उम्मीदवारों के पूर्ण प्रकटीकरण को बरकरार रखा गया।
- लिली थॉमस वाद (2013): RPA, 1951 की धारा 8(4) को असंवैधानिक माना गया। इसके तहत दो साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले सांसद या विधायक की सदस्यता तुरंत समाप्त हो जाती है।
निष्कर्ष
- राजनीति का अपराधीकरण लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है।
- अपराधियों का राजनीतिक प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करने से सामाजिक असामंजस्य, हिंसा और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
- हालांकि कानून और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने कुछ सुधार किए हैं, लेकिन लगातार निगरानी, पारदर्शिता और राजनीतिक इच्छाशक्ति ही इसे पूरी तरह नियंत्रित कर सकती है।