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राज्यों द्वारा स्वायत्तता की मांग क्या है ?संवैधानिक प्रावधान , शक्तियों का विभाजन,प्रमुख समितियां

चर्चा में क्यों ?

तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।
इसका उद्देश्य राज्य की स्वायत्तता को मजबूत करना और संघीय ढांचे को अधिक संतुलित बनाना है।

समिति को सौंपे गए कार्य

  • केंद्र-राज्य संबंधों के संवैधानिक, वैधानिक और नीतिगत पहलुओं की समीक्षा करना।
  • राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित विषयों को वापस राज्य सूची में लाने के उपाय सुझाना।
  • प्रशासनिक चुनौतियों से निपटने में राज्यों की मदद हेतु सिफारिशें देना।
  • राष्ट्रीय एकता को प्रभावित किए बिना राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने हेतु सुधार प्रस्तावित करना।

भारतीय संविधान में संघीय व्यवस्था

  • भारत एक संघीय ढांचा (Federal Structure) अपनाता है, परंतु इसकी प्रकृति अर्ध-संघीय (Quasi-federal) है।
  • भारतराज्यों का संघ है, लेकिन राज्यों को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है।
  • संघ और राज्यों के बीच कई संस्थाएँ और साधन समान हैं:
    • एकल संविधान
    • एकल नागरिकता
    • अखिल भारतीय सेवाएँ
    • भारतीय निर्वाचन आयोग
    • एकीकृत न्यायपालिका

विधायी शक्तियों का विभाजन

  • अनुच्छेद 246 संसद और राज्य विधान-मंडलों को विधायी शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • ये शक्तियाँ सातवीं अनुसूची की तीन सूचियों में विभाजित हैं:
    1. केंद्रीय सूची (Union List) रक्षा, विदेश नीति, संचार इत्यादि।
    2. राज्य सूची (State List)पुलिस, स्वास्थ्य, कृषि इत्यादि।
    3. समवर्ती सूची (Concurrent List)शिक्षा, विवाह, वन, बिजली इत्यादि।
  • भारत में संविधान एक मजबूत केंद्र की वकालत करता है, जिसे राज्यों की तुलना में अधिक शक्तियाँ दी गई हैं।

इस तरह देखा जाए तो, राज्यों की स्वायत्तता की मांग भारतीय संघवाद को और संतुलित बनाने का प्रयास है, ताकि राज्यों को नीति-निर्माण और संसाधन उपयोग में अधिक स्वतंत्रता मिल सके।

केंद्र-राज्य संबंधों पर पूर्व में गठित समितियां और उनकी सिफारिशें

  1. राजमन्नार समिति (1969)
    • तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित।
    • सिफारिश: सातवीं अनुसूची के विषयों का पुनर्वितरण करने हेतु एक उच्चाधिकार प्राप्त आयोग का गठन।
  2. आनंदपुर साहिब संकल्प (1973)
    • अकाली दल द्वारा प्रस्तुत।
    • मांग: केंद्र की शक्तियाँ केवल रक्षा, विदेश मामले, संचार और मुद्रा तक सीमित हों।
    • शेष सभी शक्तियाँ राज्यों को दी जाएँ।
  3. पश्चिम बंगाल ज्ञापन (1977)
    • पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रस्तुत।
    • मांगें:
      1. अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) को हटाना।
      2. संविधान में "संघात्मक" (Federal) शब्द जोड़ना।

भारत ने केंद्रीकृत संघवाद (Centralised Federalism) क्यों अपनाया ?

  1. एकता और अखंडता की रक्षा
    • स्वतंत्रता के समय विभाजन और विभाजनकारी शक्तियों के खतरे को देखते हुए मजबूत केंद्र की आवश्यकता मानी गई।
  2. संपदा और विकास का न्यायसंगत वितरण
    • केंद्र को संतुलनकारी शक्ति के रूप में देखा गया, ताकि अमीर राज्यों से गरीब राज्यों की ओर संसाधनों का स्थानांतरण हो सके।
  3. संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा
    • संविधान का उद्देश्य न्याय, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समानता और बहुलवाद को बढ़ावा देना है।
    • इसे मजबूत केंद्र के माध्यम से सुदृढ़ किया गया।
  4. कानूनों में एकरूपता
    • पूरे देश में समान कानून और नीतियाँ लागू करने के लिए केंद्र की भूमिका प्रमुख रखी गई।

राज्यों की स्वायत्तता को कम करने वाले प्रमुख मुद्दे

  1. राज्य सूची के विषयों में केंद्र का हस्तक्षेप
    • उदाहरण: कृषि और विपणन राज्य सूची में आते हैं, लेकिन केंद्र ने तीन कृषि कानून बनाकर राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल दिया।
  2. राजकोषीय शक्तियों का केंद्रीकरण
    • GST व्यवस्था के कारण राज्यों की कराधान शक्तियाँ सीमित हो गईं।
    • राज्यों को मिलने वाले कर हस्तांतरण में देरी और अनुदान में कटौती भी एक प्रमुख समस्या है।

राज्यों की स्वायत्तता और केंद्र-राज्य संबंध

राज्यों की स्वायत्तता को कम करने वाले मुद्दे

  1. समान नीतियों का थोपना (Ignoring Diversity)
    • सभी राज्यों के लिए एक जैसी नीतियाँ लागू करना।
    • उदाहरण: तमिलनाडु ने त्रिभाषा फार्मूला का विरोध किया, क्योंकि उसे लगता है कि यह उसकी तमिल पहचान को कमजोर करेगा।
  2. संस्थागत निगरानी में कमी (Weak Institutional Mechanism)
    • अंतर्राज्यीय परिषद (अनुच्छेद 263) की बैठकें नियमित रूप से नहीं होतीं।
  3. राज्यपाल की भूमिका:
    • राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को अनुच्छेद 200 के तहत मंजूरी देने में अनावश्यक देरी।
    • इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित होती है।
  4. केंद्रीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति (Increasing Centralisation)
    • हाल ही में, तमिलनाडु विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल द्वारा मंजूरी में देरी, केंद्रीकरण के दुरुपयोग को दर्शाती है।
    • पश्चिम बंगाल का उदाहरण: बिना राज्य की सहमति के CBI द्वारा जांच पर राज्य ने आपत्ति जताई।

केंद्र-राज्य संबंधों को सुधारने की प्रमुख पहलें

  1. अंतर्राज्यीय परिषद (Inter-State Council)
    • गठन: अनुच्छेद 263 के तहत।
    • कार्य: केंद्र और राज्यों के बीच संवाद और समन्वय को बढ़ावा देना।
  2. नीति आयोग (NITI Aayog)
    • योजना आयोग की जगह गठित।
    • उद्देश्य: सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) को बढ़ावा देना और राज्यों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करना।
  3. राजस्व साझा करना (Revenue Sharing)
    • 14वें वित्त आयोग ने करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी।
  4. GST परिषद (GST Council)
    • गठन: अनुच्छेद 279A के तहत।
    • संरचना: केंद्र और राज्यों दोनों के सदस्य।
    • कार्य: GST से संबंधित नीतिगत निर्णय लेना।
  5. केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) में कमी
    • पहले 130 योजनाएँ थीं → घटाकर 75 की गईं।
    • भविष्य में इसे घटाकर 50 करने का लक्ष्य।
    • इससे राज्यों को फंड उपयोग में अधिक स्वायत्तता मिलेगी।

राज्य स्वायत्तता की मांग का प्रभावी समाधान

  • सरकारिया आयोग (1983) की प्रमुख सिफारिशें लागू करना:
    1. अवशिष्ट शक्तियाँ (Residuary Powers):
      • कराधान को छोड़कर सभी अवशिष्ट शक्तियाँ समवर्ती सूची में दी जाएँ।
    2. राज्यपाल की भूमिका को निष्पक्ष बनाया जाए।
    3. अनुच्छेद 356 का उपयोग केवल दुर्लभ परिस्थितियों में किया जाए।
    4. केंद्र और राज्यों के बीच विश्वास एवं संवाद को बढ़ाया जाए।

राज्य स्वायत्तता की मांग का प्रभावी समाधान – उपाय

  1. सरकारिया आयोग (1983) की सिफारिशें
    • अवशिष्ट शक्तियाँ:
      • कराधान को छोड़कर सभी अवशिष्ट शक्तियाँ समवर्ती सूची में लाई जाएँ।
    • विधेयक पारित करने से पूर्व परामर्श:
      • समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने से पहले केंद्र सरकार को राज्यों से परामर्श करना चाहिए।
    • न्यूनतम हस्तक्षेप:
      • संघीय कानून केवल राष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता वाले विषयों तक सीमित रहें।
      • स्थानीय मामलों को राज्यों पर छोड़ा जाए।
  2. पुंछी आयोग (2007) की सिफारिशें
    • समतामूलक विकास (Equitable Development):
      • पिछड़े राज्यों को अधिक वित्तीय हस्तांतरण।
      • भौतिक और मानव संसाधन अवसंरचना को मजबूत करने पर जोर।
  3. वेंकटचलैया आयोग की सिफारिशें
    • संस्थाओं के बीच संवाद (Institutional Dialogue):
      • अंतर्राज्यीय परिषद (Inter-State Council) को सक्रिय किया जाए।
      • इसे राज्यों से व्यक्तिगत या सामूहिक परामर्श का मंच बनाया जाए।
      • क्षेत्रीय परिषदों को पुनः सक्रिय कर सार्थक संवाद और सहयोग का मंच बनाया जाए।
  4. प्रमुख संस्थागत मंचों का सशक्त उपयोग
    • अंतर्राज्यीय परिषद
    • GST परिषद
    • नीति आयोग
    • अन्य सहकारी मंच
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