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व्हाइट कॉलर आतंकवाद : कारण, चुनौतियाँ एवं उपाय

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।)

संदर्भ

हाल ही में फरीदाबाद में पकड़े गए आतंकी मॉड्यूल ने भारत में एक नई प्रवृत्ति “व्हाइट कॉलर टेररिज़्म” को उजागर किया है। इस मॉड्यूल में डॉक्टरों और इंजीनियरों सहित उच्च शिक्षित व्यक्तियों को 3,000 किलोग्राम विस्फोटक के साथ गिरफ्तार किया गया। यह घटना बताती है कि आतंकवाद अब केवल गरीबी या अशिक्षा से नहीं उपजा है, बल्कि शिक्षित वर्ग में भी इसका विस्तार हो रहा है।

क्या है व्हाइट कॉलर आतंकवाद (White Collar Terrorism)

  • व्हाइट कॉलर टेररिज़्म वह प्रकार का आतंकवाद है जिसमें उच्च शिक्षित, पेशेवर और तकनीकी रूप से दक्ष लोग जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर या सॉफ्टवेयर एक्सपर्ट; आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं। 
  • ये लोग अपनी तकनीकी और बौद्धिक क्षमता का दुरुपयोग करते हुए आतंक की योजना बनाते हैं, प्रचार करते हैं, और अक्सर समाज में सामान्य नागरिकों की तरह घुल-मिल जाते हैं।

मुख्य विशेषताएँ

  • शिक्षित उग्रवाद : शिक्षित, मध्यम वर्गीय और शहरी पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की भागीदारी।
  • वैचारिक प्रेरणा : नैतिक या धार्मिक ‘न्याय’ के नाम पर हिंसा का औचित्य स्थापित करना।
  • तकनीकी दक्षता : इंजीनियरिंग, आई.टी., मेडिकल या फाइनेंस ज्ञान का उपयोग आतंक फैलाने में।
  • डिजिटल रेडिकलाइज़ेशन : ऑनलाइन चैट समूहों, एन्क्रिप्टेड ऐप्स और सोशल मीडिया के ज़रिए भर्ती।
  • सामाजिक छलावरण : समाज में सहज रूप से घुल-मिल जाना जिससे सुरक्षा एजेंसियों को पहचानना कठिन हो।
  • नैतिक औचित्य : हिंसा को धार्मिक या नैतिक कर्तव्य के रूप में प्रस्तुत करना।

समस्या के मूल कारण

  • शिक्षित उग्रवादियों की बढ़ती संख्या: अब आतंकी संगठन डॉक्टरों, इंजीनियरों और शिक्षकों को आकर्षित कर रहे हैं।
  • मानसिक और नैतिक अपमान का भाव: कई मामलों में ये लोग स्वयं को सामाजिक या धार्मिक रूप से अपमानित महसूस करते हैं।
  • डिजिटल इको-चैम्बर्स: समान विचारधारा वाले ऑनलाइन समूहों में विचारों का पुष्टिकरण (validation) उग्रवाद को मजबूत करता है।
  • बौद्धिक अहंकार: कुछ शिक्षित लोग हिंसा को “नैतिक युद्ध” के रूप में देखते हैं।

प्रमुख उदाहरण

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर:
    • अयमान अल-जवाहिरी : सर्जन।
    • अबू बक्र अल-बगदादी : PhD धारक।
    • मो. अट्टा (9/11) : आर्किटेक्चर में डिग्रीधारी।
  • भारत में:
    • फरीदाबाद केस (2025) : डॉक्टरों और इंजीनियरों की भागीदारी।
    • पुलवामा हमलावर : संपन्न परिवार से था, परंतु वैचारिक रूप से कट्टर हुआ।

प्रभाव

  • पेशेवर विश्वास का क्षरण : डॉक्टरों, इंजीनियरों जैसे पेशेवरों की छवि पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।
  • तकनीकी आतंकवाद : इनकी तकनीकी दक्षता से विस्फोटक निर्माण और ऑनलाइन प्रचार अधिक जटिल बनता है।
  • खुफिया तंत्र के लिए चुनौती : ऐसे लोग सामान्य नागरिकों की तरह दिखते हैं, जिससे उनकी पहचान कठिन हो जाती है।
  • सामाजिक विभाजन : शिक्षित वर्ग द्वारा हिंसा को “न्याय” बताने से समाज में वैचारिक ध्रुवीकरण बढ़ता है।
  • अंतरराष्ट्रीय नेटवर्किंग : पढ़े-लिखे आतंकी वित्तीय और तकनीकी नेटवर्क का दुरुपयोग करते हैं।

संवैधानिक और विधिक पहलू

  • अनुच्छेद 19(2) : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर यथोचित प्रतिबंध लगाता है, यदि वह राष्ट्र की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के विरुद्ध हो।
  • अनुच्छेद 21: प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है, आतंकवाद इस अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।
  • गैरकानूनी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम, 1967 (UAPA): किसी भी व्यक्ति या संगठन को आतंकवादी घोषित करने और उस पर कार्रवाई का अधिकार देता है।
  • राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008: एन.आई.ए. को आतंकवादी मामलों की जांच का विशेषाधिकार देता है।
  • आईटी अधिनियम, 2000: डिजिटल आतंकवाद या ऑनलाइन उग्रवाद के विरुद्ध कार्रवाई का कानूनी आधार प्रदान करता है।
  • न्यायपालिका की भूमिका: सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है, परंतु जांच के दौरान मानवाधिकारों की रक्षा भी आवश्यक है।

समाधान के उपाय

  • नैतिक शिक्षा का समावेश : स्कूली और उच्च शिक्षा में नागरिकता, नैतिकता और संवैधानिक मूल्यों को अनिवार्य बनाया जाए।
  • डिजिटल मॉनिटरिंग : ए.आई. आधारित उपकरणों से ऑनलाइन कट्टरपंथी सामग्री पर नज़र रखी जाए, गोपनीयता की रक्षा के साथ।
  • समुदाय आधारित जागरूकता : परिवार, शिक्षण संस्थान और धार्मिक समुदाय मिलकर प्रारंभिक चेतावनी तंत्र विकसित करें।
  • डी-रेडिकलाइज़ेशन प्रोग्राम : मनोवैज्ञानिक परामर्श और पुनर्वास के माध्यम से उग्रवाद की विचारधारा को चुनौती दी जाए।
  • पेशेवर जवाबदेही : डॉक्टरों, इंजीनियरों जैसे पेशेवर समूहों में नैतिक आचार संहिता का पालन सख्ती से सुनिश्चित हो।
  • समान अवसर और संवाद : युवाओं को अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए लोकतांत्रिक मंच दिए जाएँ ताकि वे हिंसा की ओर न मुड़ें।

निष्कर्ष 

व्हाइट कॉलर टेररिज़्म यह दिखाता है कि आतंक का मूल कारण अज्ञान नहीं, बल्कि “विकृत विश्वास” है। जब शिक्षित व्यक्ति अपनी बौद्धिक क्षमता को विनाश के औजार में बदल देता है, तो यह केवल सुरक्षा नहीं बल्कि नैतिक संकट भी है। भारत को इस चुनौती से निपटने के लिए नैतिक शिक्षा, डिजिटल सतर्कता, संवैधानिक जागरूकता और नागरिक सहभागिता का समन्वित दृष्टिकोण अपनाना होगा।

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