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आधार: निजता से समझौता 

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से सबंधित प्रश्न )
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र – 2; सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय से सबंधित)

संदर्भ

हाल ही में, पुट्टास्वामी वाद-।। के 3 वर्ष पूरे हो गए, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने निजता के उल्लंघन के जोखिम के कारण ‘आधार परियोजना’ को सीमित कर दिया था।

प्रमुख बिंदु

  • तत्कालीन संवैधानिक पीठ के सदस्य डी.वाई. चंद्रचूड़ ने ‘आधार परियोजना’ को इस आधार पर असंवैधानिक बताया कि आधार परियोजना अपने ढाँचे व प्रारूप की उन कमियों को दूर करने में विफल रही जो इसे बहिष्करण की ओर ले जाती हैं।
  • इसके बावजूद सरकार ने संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन करते हुए दूरसंचार तथा बैंकिंग सेवाओं में आधार प्रमाणीकरण के उपयोग हेतु अनुमति के लिये आधार अधिनियम में संशोधन किया था,जिसे न्यायालय ने रद्द कर दिया था।
  • सरकार का दावा था कि न्यायालय की आपत्ति इसके संदर्भ में स्पष्ट कानून के अभाव को लेकर थी, जबकि इसमें प्रमुख मुद्दा निजी संस्थाओं द्वारा आधार के विस्तृत उपयोग के माध्यम से ‘निजता के अधिकार’ में दखल को लेकर था।
  • वर्ष 2019 का संशोधन अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। इसने सरकार को उन ‘उद्देश्यों’ का विस्तार करने की अनुमति दी, जिनके लिये आधार प्रमाणीकरण का उपयोग किया जा सकता था।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2020 में, सरकार ने आधार प्रमाणीकरण के दायरे को व्यापक बनाने के लिये सुशासन (समाज कल्याण, नवाचार, ज्ञान) नियम, 2020 (सुशासन नियम) के लिये आधार प्रमाणीकरण को अधिसूचित किया था।
  • उपरोक्त नियमों के तहत विधि मंत्रालय ने मतदाता सत्यापन के लिये आधार प्रमाणीकरण हेतु यू.आई.डी.ए.आई. से संपर्क किया। यह चुनाव आयोग के उस प्रस्ताव का अनुसरण करता है, जिसमें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और आधार अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों के माध्यम से मतदाता डेटाबेस के प्रतिलिपीकरण को रोकने के लिये आधार संख्या का उपयोग करने की अनुमति मांगी गई थी।
  • भारतीय चुनाव आयोग का दावा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य-सेवाओं के लिये केवल ‘आधार’ के स्वैच्छिक उपयोग की अनुमति दी है।

    चुनौतियाँ

    • पुट्टास्वामी वाद ने निजता के अधिकार का उल्लंघन करने वाली राज्य-कार्रवाई के लिये सख्त मानदंड निर्धारित किये हैं।
    • भारतीय चुनाव आयोग ने दावा किया है कि ‘आधार’ से लिंक करके मतदाता डेटाबेस के प्रतिलिपीकरण को रोकने की आवशयकता है। परंतु, आयोग यह बताने में असमर्थ रहा कि आधार से लिंकेज इसमें कैसे और किस सीमा तक मदद करेगा?
    • इसी प्रकार,वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय चुनाव रोल शुद्धिकरण और प्रमाणीकरण कार्यक्रम (Roll Purification and Authentication Programme) पर रोक लगा दी थी,जिसमें आधार को मतदाता पहचान-पत्र से जोड़ने की मांग की गई थी।
    • इस आदेश के बावजूद तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश सरकारों ने इसे जारी रखा। वर्ष 2018 में लगभग 55 लाख मतदाताओं ने पाया कि मतदाता सूची से उनका नाम मनमाने तरीके से हटा दिया गया था।
    • इससे पूर्व भी भारतीय चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में संशोधन किये है,लेकिन आयोग यह बताने में असमर्थ है कि पारंपरिक सत्यापन तंत्र सक्षम क्यों नही है तथा प्रौद्यौगिकी के माध्यम से इनमें कैसे सुधार किया जा सकता है?
    • चुनाव आयोग ने अपने प्रस्ताव में गोपनीयता के हनन या बहिष्करण की संभावना का विश्लेषण नहीं किया।

    सुझाव

    • एक कानून को आनुपातिक तभी माना जा सकता है, जब कोई अन्य कम प्रतिबंधात्मक और समान रूप से प्रभावी विकल्प न हो तथा उसका अनुपालनकर्ता पर प्रतिकूल प्रभाव भी न पड़े।
    • पूर्व सिविल सेवकों के संवैधानिक आचरण समूह ने मतदाता सूची सत्यापन के मुद्दे का अध्ययन किया तथा आधार को सम्मिलित करने वाली प्रक्रिया को पूर्णतया ख़ारिज कर दिया।
    • समूह ने इस बात पर ज़ोर दिया कि चुनाव आयोग को तत्काल सभी योग्य मतदाताओं, विशेषकर प्रवासियों और हाशिये पर रह रहे समूहों को पंजीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है,जो ‘आधार शुद्धिकरण’ प्रक्रिया द्वारा नहीं किया जा रहा है।
    • आधार और मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने के कारण होने वाली कोई भी मताधिकार क्षति कानूनी रूप से अस्वीकार्य और विशेष रूप से हाशिये के समुदायों और अल्पसंख्यक समूहों के लिये हानिकारक होगी।
    • पुट्टास्वामी वाद ने यह स्पष्ट किया कि तकनीकी सुधार सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को संबोधित करने में सक्षम नहीं हैं, इन्हें हमारे संवैधानिक अधिकारों को खतरे में डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।

    मताधिकार के संवैधानिक प्रावधान 

    • संविधान के अनुच्छेद 325 और 326 सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का वादा करते हैं। किसी भी व्यक्ति को, जो अन्यथा अयोग्य नहीं है;धर्म, जाति, जाति, लिंग या अन्य संरक्षित श्रेणियों के आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता है।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में अयोग्यता के लिये एक स्पष्ट प्रक्रिया है- वे जो भारत के नागरिक नहीं हैं, जो ‘विकृत दिमाग’ के हो सकते हैं, या चुनावी अपराधों के लिये अयोग्य हो सकते हैं।

    निष्कर्ष

    आधार को मतदाता पहचान-पत्र से जोड़ने के चुनाव आयोग के नवीनतम प्रयास को असंवैधानिक और अस्वीकार्य रूप से हमारी गोपनीयता और मतदान के लोकतांत्रिक अधिकार की क्षति के आधार पर विरोध करने की आवश्यकता है इसे लागू करने से पूर्व गोपनीयता से सबंधित मुद्दों को सुलझाया जाना आवश्यक है।

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