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चीन के साथ व्यापार पर प्रतिबंध का विचार: कितना प्रसांगिक

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास आदि से सम्बंधित विषय)

पृष्ठभूमि

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुए सीमा विवाद के कारण भारत में चीन के साथ जारी व्यापार पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया जा रहा है। गलवान घाटी में झड़प के बाद भारत में चीनी समानों (Chinese Goods) के बहिष्कार के विचार ने ज़ोर पकड़ लिया है। भारत सरकार ने चीन के साथ व्यापार सम्बंधों पर समीक्षा की शुरुआत करके सीमा विवाद पर कुछ प्रतिक्रिया देने की कोशिश की है। हालाँकि, अनुमान है कि यदि चीन से व्यापार पर प्रतिबंध लगाया जाएगा तो भारत को चीन की अपेक्षा अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। भारत की कई इकाइयों में चीन का बहुत अधिक निवेश हैं। साथ ही, भारत आयात के लिये चीन पर बहुत अधिक निर्भर है, जबकि चीन के कुल आयात का बहुत कम हिस्सा भारत से जाता है। नीचे चीन से व्यापार पर प्रतिबंध के तर्कों सहित कुछ मूलभूत प्रभावों का विश्लेषण किया गया है।

व्यापार घाटा

  • चीन से व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के मुख्य तर्कों में एक व्यापार घाटे का अधिक होना बताया जा रहा है। सामान्यतया व्यापार घाटे को सही नहीं माना जाता है। हालाँकि, तथ्य बिल्कुल अलग हैं। व्यापार घाटा / अधिशेष केवल लेखांकन करने का एक तरीका है, जिसका मतलब यह कदापि नहीं है कि किसी देश के विरुद्ध व्यापार घाटा होने से घरेलू अर्थव्यवस्था कमज़ोर या बदतर हो जाती है।
  • उदाहरण स्वरुप, यदि भारत के साथ व्यापार करने वाले शीर्ष 25 देशों को देखा जाए तो, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और नीदरलैंड के साथ भारत व्यापार अधिशेष की स्थिति में है, परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इन तीनों में से किसी से भी मज़बूत या बेहतर है।
  • इसी तरह, भारत अन्य 22 (चीन सहित) देशों के साथ व्यापार घाटे की स्थिति में है, भले ही उनका आकार व भौगोलिक स्थिति कुछ भी हो। इसमें फ्रांस, जर्मनी, नाइजीरिया व दक्षिण अफ्रीका के साथ-साथ यू.ए.ई, कतर, रूस, दक्षिण कोरिया, जापान तथा वियतनाम व इंडोनेशिया आदि शामिल हैं।
  • फिर भी, व्यापार घाटे का आवश्यक रूप से यह तात्पर्य नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यस्था से बदतर है। चीन के साथ व्यापार घाटे का मतलब केवल यह है कि चीन द्वारा भारत से खरीदे गए उत्पाद की तुलना में भारत अधिक मात्रा में चीनी उत्पाद खरीदता हैं, परंतु ऐसा होना सदैव बुरी बात नहीं है।
  • यह दर्शाता है कि भारतीय उपभोक्ताओं के साथ-साथ चीनी उत्पादकों को भी व्यापार के माध्यम से फायदा हो रहा है। यह व्यापार के माध्यम से लाभ कमाने की एक प्रक्रिया है।
  • सभी देशों में लगातार चल रहे व्यापार घाटे से दो मुख्य मुद्दे सामने आते हैं। पहला, क्या किसी देश के पास आयात के भुगतान के लिये पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। अभी भारत के पास $ 500 बिलियन से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार है, जो कि 12 महीनों के आयात के भुगतान हेतु पर्याप्त है।
  • दूसरा निष्कर्ष यह निकलता है कि भारत कुशल तरीके से अपने लोगों की ज़रूरतों का उत्पादन करने में सक्षम नहीं है। हालाँकि, कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं है, अतः व्यापार एक आवश्यक विचार है।
  • व्यापार करने के कारण कई देश किसी वस्तु के उत्पादन या सेवाओं में अन्य देशों की अपेक्षा अधिक कुशल या विशेषज्ञ हो जाते है और अच्छे उत्पादों का निर्यात करतें हैं, जबकि अन्य देश उसकी कुशलता का फायदा उठाते हुए आयात करते हैं।
  • निरंतर व्यापार घाटा यदि सरकारों (भारत) के गुण-दोष को प्रदर्शित करने वाला है तो सरकार को प्रतिस्पर्धा बढ़ाने वाली नीतियों को लागू करने के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना चाहिये। लोगों को जबरन व्यापार करने से रोकने से दक्षता में कमी आने के साथ ही उपभोक्तओं को होने वाले लाभ व विकल्पों में कमी आ जाती है जिसकी कीमत ग्राहकों को ही चुकानी पड़ती है।

भारत के गरीबों पर प्रभाव

  • चीन से व्यापार प्रतिबंध के कारण निचले तबके के गरीब उपभोक्ता सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे क्योंकि वे मूल्यों के प्रति अत्यधिक सम्वेदनशील हैं।
  • इसके अतिरिक्त, आयात के बाद भारत आ चुके चीनी उत्पादों के लिये भुगतान किया जा चुका है। उनकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाने या उसका बॉयकाट करने से भारतीय खुदरा विक्रेताओं को ही नुकसान पहुँचेगा।
  • इस प्रकार के अप्रत्याशित नुकसान से निपटने में असमर्थता के कारण आनुपातिक रूप से गरीब खुदरा व्यापारियों को ज़्यादा हानि होगीं।

भारतीय उत्पादकों व निर्यातकों पर प्रभाव

  • कुछ लोगों का तर्क है कि चीन के साथ व्यापार करने से कई भारतीय उत्पादकों को नुकसान होता है। यह सच है परंतु साथ में यह भी वास्तविकता है कि व्यापार केवल कम कुशल भारतीय उत्पादकों को नुकसान पहुँचाता है जबकि अधिक कुशल भारतीय उत्पादकों व व्यवसायों के लिये व्यापार मददगार साबित होता है।

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  • यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय उपभोक्ता चीन से न केवल अंतिम रूप से उत्पादित वस्तुओं का आयात करते हैं, बल्कि भारत में कई ऐसे व्यवसाय है जो मध्यवर्ती और कच्चे माल का आयात भी चीन से करते हैं। इसका उपयोग वस्तुओं के अंतिम उत्पादन में किया जाता है जिसका प्रभाव घरेलू भारतीय बाज़ार के साथ-साथ वैश्विक बाज़ार में भी भारतीय निर्यात पर पड़ता है।
  • आम धारणा के विपरीत, भारत में चीनी आयात का एक बड़ा हिस्सा मध्यवर्ती माल के रूप में आता है। इसमें विद्युतीय मशीनरी, परमाणु रिएक्टर, उर्वरक, ऑप्टिकल व फोटोग्राफी में प्रयुक्त उपकरण व कार्बनिक रसायन आदि शामिल हैं। ऐसे आयातों का उपयोग अंतिम वस्तुओं का उत्पादन करने के लिये किया जाता है जो या तो घरेलू बाज़ारों में बेचे जाते हैं या उनका निर्यात किया जाता है।
  • काफी आयातित उत्पाद ऐसे है, जिसके लिये भारत सबसे अधिक चीन पर निर्भर करता है। उदाहरणस्वरुप, भारत द्वारा आयातित सभी एंटीबायोटिक दवाओं का लगभग 76.3 % चीन से आता है। साथ ही, कई भारतीय इकाइयों में ($ 1 बिलियन से अधिक मूल्य के स्टार्ट-अप) भारी मात्रा में चीन का निवेश है।

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  • चीनी उत्पादों पर एकतरफा व पूर्ण प्रतिबंध उन सभी व्यवसायों को ऐसे समय में नुकसान पहुँचाएगा जो कोविड-19 के कारण पहले से ही खत्म होने की कगार पर हैं या स्वयं को बचाए रखने के लिये संघर्षरत हैं। इसके अलावा, भारत द्वारा अंतिम व तैयार माल का उत्पादन करने की क्षमता पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
  • संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि व्यापार घाटा आवश्यक रूप से बुरा नहीं है यदि वह उत्पादकों व निर्यातकों सहित भारतीय उपभोक्ताओं के लिये लाभदायक है। साथ ही, भारत का कई देशों के साथ व्यापार घाटा है तो केवल चीन को ही क्यों व्यापार से बाहर किया जाए।

चीन पर प्रभाव

  • सीमा पर हुई झड़प के विरोध में चीन से व्यापार पर प्रतिबंध का आकलन इस आधार पर भी किया जाना चाहिये कि इससे चीन को कितना नुकसान होगा। वास्तविकता ठीक इसके विपरीत है। इससे चीन को होने वाले नुकसान की अपेक्षा भारत को अधिक नुकसान होने की आशंका है।
  • भारत के निर्यात में चीन का हिस्सा लगभग 5 % है तथा भारत के आयात में चीन की हिस्सेदारी लगभग 14 % की है। US $ के पदों में, भारत द्वारा चीन से आयात (या चीन का निर्यात) चीन के कुल निर्यात का मात्र 3 % के आस-पास है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत से चीन का आयात उसके कुल आयात का 1% से भी कम है।

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  • मुद्दा यह है कि यदि भारत और चीन के बीच व्यापार बंद हो जाता है तो चीन को उसके निर्यात का केवल 3 % के आस-पास तथा आयात का 1 % से भी कम का नुकासान होगा जबकि भारत अपने निर्यात का 5 % से अधिक और आयात का लगभग 14 % हिस्सा खो देगा।
  • इसके अलावा, यदि चीन के उत्पादों का बॉयकाट करना है तो भारतीयों को उन सभी उत्पादों व सेवाओं को भी खरीदने से बचना चाहिये जिसमें चीन की बनी वस्तुओं व श्रमबल का उपयोग किया गया हो। जैसे- आईफ़ोन एक अमेरिकी कम्पनी है, परंतु भारत में बेचे जाने वाले उसके उत्पाद अधिकांशत: चीन निर्मित या चीनी मध्यवर्ती उत्पादों से निर्मित होते हैं।
  • परेशानी केवल यह नहीं है कि वैश्विक व्यापार व वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में चीन की केंद्रीय उपस्थिति के कारण व्यापार पर प्रतिबंध लगभग असम्भव सा कार्य है, बल्कि प्रशासन द्वारा सभी व्यापारों में रियल-टाइम पर आधारित चीन की भागीदारी को मैप करना भी अत्यंत कठिन कार्य है।
  • कुल मिलाकर, व्यापार के मामलें में चीन द्वारा भारत को प्रतिस्थापित करने की अपेक्षा भारत द्वारा चीन को प्रतिस्थापित करना कठिन है। छोटे और मध्यम अवधि के लिये चीनी उत्पादों को प्रतिस्थापित करना मुश्किल और महंगा दोनों होगा। यदि भारत, चीन की जगह जापान व जर्मनी जैसे देशों से आयात को प्रतिस्थापित करने की कल्पना करे तो वस्तु, सेवा और श्रमबल महँगा होने के कारण कुल व्यापार घाटे में वृद्धि ही होगी।

भारत की नीतिगत विश्वसनीयता

  • यह भी सुझाव दिया जा रहा है कि भारत को चीन के साथ मौजूदा अनुबंधों पर फिर से विचार करना चाहिये। ऐसे निर्णय अल्पकाल के लिये ही सही परंतु निवेशकों के सेंटीमेंट्स (भावनाओं) को प्रभावित करते हैं जो भारत जैसे देश के लिये बेहद हानिकारक होगा जो विदेशी निवेश को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है।
  • कोई भी निवेशक (विशेष रूप से विदेशी) निवेश से पूर्व कई पहलुओं पर विचार करता है,जिसमें नीतिगत विश्वसनीयता व निश्चितता (Policy Credibility and Certainty) महत्त्वपूर्ण है। यदि नीतियों को अचानक से बदल दिया जाए या करों को भूतलक्षी प्रभाव से लागू कर दिया जाए या सरकार द्वारा स्वयं से अनुबंधों पर रोक लगा दी जाए तो कोई भी निवेशक निवेश नहीं करेगा। यदि वे निवेश करते भी है तो बढे़ हुए जोखिम के लिये उच्च रिटर्न की माँग करेंगे।

टैरिफ में वृद्धि का प्रभाव

  • यह तर्क भी दिया गया है कि भारत को चीनी उत्पादों पर उच्च आयात शुल्क लगाना चाहिये। जबकि कुछ लोगों का सुझाव है कि भारत शून्य शुल्क (Zero Duty) पर चीन से प्राथमिक और मध्यवर्ती सामानों के आयात की अनुमति दे सकता है, परंतु अंतिम रूप से उत्पादित वस्तुओं पर निषेधात्मक शुल्क लागू कर देना चाहिये।
  • यदि विश्व व्यापार संगठन के निमयों को एक तरफ़ छोड़ दें (ऐसी स्थिति में भारत नियमों का उल्लंघन कर रहा होगा) तब भी यह एक बुरी रणनीति है क्योंकि चीन भी इसी तरह से टैरिफ में वृद्धि कर सकता है। वैश्विक व्यापार व मूल्य श्रृंखलाओं में भारत की अपेक्षाकृत महत्त्वहीन उपस्थिति भी भारत को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी।
  • दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया के लिये भारत को दरकिनार करना आसान है और यदि भारत नियमों का पालन करता है, तो व्यापार करना आसान है।

निष्कर्ष

  • इस बात को समझना होगा कि सीमा विवाद को व्यापार युद्ध में बदलने से सीमा विवाद के हल होने की सम्भावना नहीं है।
  • इससे भी बुरी बात यह है कि भारत व चीन की वैश्विक व्यापार तथा एक-दूसरे के सापेक्ष स्थिति के कारण इस व्यापार युद्ध से चीन की तुलना में भारत को कहीं अधिक नुकसान होगा
  • तीसरा, चीन के साथ सभी प्रकार के व्यापार पर अचानक प्रतिबंध लगाने का यह सबसे बुरा समय है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही कमज़ोर स्थिति में है और जी.डी.पी. तीव्र संकुचन का सामना कर रही है।
  • हालाँकि, वर्ष 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट की शुरुआत से संरक्षणवाद और वैश्वीकरण विरोधी भावनाओं में वृद्धि देखी जा रही हैं परंतु यह भी अच्छी तरह से स्थापित सत्य है कि व्यापार लोगों को बेहतर बनाता है।
  • सभी अकुशल घरेलू उद्योग आर्थिक राष्ट्रवाद के नाम पर आयात पर उच्च शुल्कों द्वारा संरक्षण चाहते हैं लेकिन यह संरक्षण केवल घरेलू उपभोक्ताओं के खर्चों में वृद्धि करेगा।
  • वास्तव में, भारत ने शुरूआती चार दशकों में आत्मनिर्भरता, आयात प्रतिस्थापन और छोटे घरेलू उद्योगों की रक्षा करने का प्रयास किया परंतु इसमें वह विफल रहा है।
  • भारत को अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ाकर वैश्विक व्यापार के एक बड़े हिस्से को आक्रामक रूप से हासिल करने की कोशिश करनी चाहिये। यदि इसमें सावधानी नहीं बरती गई तो छोटे देश कोई दूसरा रास्ता देखेंगे। उदहारण के लिये, पिछले वर्ष भारत द्वारा आर.सी.ई.पी. में शामिल न होने के निर्णय तथा समझौते में होने वाली देरी के परिणामस्वरूप वियतनाम ने इस माह के शुरुआत में यूरोपीय संघ से एक मुक्त व्यापार समझौता किया है। यूरोपीय संघ में भारतीय निर्यातकों की स्थिति पहले से ही कमज़ोर हो रही है, वियतनाम से शून्य आयात शुल्क पर समान का निर्यात किये जाने से भारत और भी प्रभावित होगा।
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